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संपादकीय : शिवसेनाप्रमुख नहीं होते तो…

महाराष्ट्र को गौरवान्वित करने वाला व्यक्तित्व शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे का था। वे सिर्फ नाम से नहीं बल्कि कर्म से हिंदूहृदयसम्राट थे। इसलिए उनकी कीर्ति के चर्चे भारत और भारत के बाहर भी थे। भारत के इतिहास में महात्मा गांधी, नेहरू, वीर सावरकर, लोहिया, तिलक, श्रीपाद अमृत डांगे और विश्व के इतिहास में सिसरो, बर्क, शेरिडन जैसे वत्तृâत्व कला के मशहूर रत्न हुए हैं। उसी क्रम में ‘ठाकरे’ एक चमकते तेजस्वी रत्न थे। उनका जन्म एक सामान्य लेकिन महाराष्ट्रभक्त परिवार में हुआ था और उन्होंने जीवनभर आम लोगों के न्यायोचित अधिकारों के लिए संघर्ष किया। बाल गंगाधर तिलक और बाल केशव ठाकरे को देशभर में मिली लोकमान्यता आश्चर्यजनक है। प्रारंभ में, बालासाहेब ने मराठी नेतृत्व के लिए लड़ाई लड़ी। उसके लिए उन्होंने ब्रश, वाणी और कलम को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। बालासाहेब का महाराष्ट्र को सबसे बड़ा उपहार यह है कि उन्होंने छत्रपति शिवराय के बाद मराठी माणुस को अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। मराठी स्वाभिमान की मशाल जलाई। पांच साल के संघर्ष के बाद मुंबई समेत महाराष्ट्र पाने के बाद भी मराठी माणुस अन्याय की मार खाकर ठंडा होकर हथबल हो गया था। उसके मन में असंतोष की चिंगारी पैदा करने का काम बालासाहेब ने किया। कवि कुलभूषण छत्रपति शिवराय के बारे में लिखते हैं,

काशी की कला जाती, मथुरा की मस्जिद होती
अगर शिवाजी न होते, तो सुन्नत सबकी होती

अगर बालासाहेब ठाकरे न होते और उन्होंने शिवसेना को जन्म न दिया होता तो क्या होता?

महाराष्ट्राचे दिल्लीच्या वाटेवरील पायपुसणे झाले असते,
मराठी माणूस लाचार आणि हतबल झाला असता,
महाराष्ट्र हा शिवरायांचे मर्‍हाठी राष्ट्र राहिले नसते
आणि महाराष्ट्राच्या शौर्याची आणि मर्दानगीची
‘सुंता’ झाली असती…
अर्थात
दिल्ली के रास्ते का महाराष्ट्र पायदान होता,
मराठी मानुष लाचार और हताश हो गया होता,
शिवराया का महाराष्ट्र मर्‍हाठी राष्ट्र नहीं रहता
और महाराष्ट्र के शौर्य की और मर्दानगी का ‘खतना’ कर दिया गया होता…

यह सब रोका शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे द्वारा निर्मित शिवसेनारूपी कवच कुंडल ने, लेकिन आज महाराष्ट्र की हालत यूं लगती है जैसे उसने अपना स्वाभिमान गवां दिया है। महाराष्ट्र का
स्वाभिमान
खत्म हो गया है। हिमालय की सहायता के लिए जाने वाले सह्याद्रि के शिखर और पांव को दिल्लीश्वरों ने काट दिया है। अमित शाह जैसे लोग महाराष्ट्र आते हैं। भाषण देते हैं। वे अपने भाषण में शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे का नाम मजबूरीवश लेते हैं, लेकिन इन्हीं अमित शाह ने महाराष्ट्र की रक्षा के लिए बालासाहेब द्वारा बनाए गए शिवसेना रूपी कवचकुंडल ​​को ‘तोड़’ कर किसी नकली शिंदे को सौंप दिया। पानीपत में युद्ध के मैदान में पराजित होने के बाद, कुछ सरदारों ने फर्जी सदाशिवरावभाऊ को खड़ा किया था और उसने राज्य का दावा किया था। यह फर्जीवाड़ा बाद में उजागर हुआ। अमित शाह ने बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना को (शह) देने के लिए एकनाथ शिंदे जैसे ‘फर्जी’ सदाशिवभाई तैयार किए। शिवसेना को तोड़ने की बारभाई की साजिश ने महाराष्ट्र को पंगु और कमजोर बना दिया, लेकिन यह एक अस्थायी हालत है। पानीपत की राख से, महाराष्ट्र और मरहाठा फिर से उठे और लड़ते रहे। महाराष्ट्र में दगाबाजों का राज्य बनाने वालों को याद रखना चाहिए कि उनका शौर्य इतिहास आज भी गर्व के साथ याद करता है। महाराष्ट्र आज बालासाहेब ठाकरे को रह-रहकर याद कर रहा है। आज महाराष्ट्र लुटेरों के हाथ में है। १०५ शहीदों के बलिदान और शिवसेनाप्रमुख के संघर्ष से बना और टिका हुआ मराठी राज्य क्या यही है? मराठी माणुस जातियों और उपजातियों में बंट गए हैं। यह इतना बंट गया है कि इसे रफू भी नहीं किया जा सकता। जिन्हें मराठी के रूप में एकजुट किया वे मराठा-गैर मराठा, ओबीसी, धनगर, माली, वंजारी, दलित जैसे टुकड़ों में बंट गए हैं और एक-दूसरे से दुश्मनी लेकर लड़ रहे हैं। बालासाहेब ठाकरे, जिन्होंने एक मराठी के रूप में मजबूत एकता का निर्माण किया, के महाराष्ट्र को भाजपा के शाह-फडणवीस जैसे राजनेताओं ने मन से कमजोर और बदनाम कर दिया। महाराष्ट्र में किसान मर रहे हैं। मराठी युवा बेरोजगारी की खाई में डूब रहे हैं। महिलाओं पर बलात्कार और जानलेवा हमले जारी हैं। महाराष्ट्र के उद्योग को लूटकर
पड़ोसी राज्य गुजरात में
ले जाया जा रहा है और खुद को शासक कहने वाले ‘मराठे’, शिवराया के महाराष्ट्र की लूट को खुली आंखों से देख रहे हैं। बालासाहेब ठाकरे ने महाराष्ट्र की रगों में जो स्वाभिमान और वीरता भरी थी, उसे दिल्ली के गुजराती शासकों ने मानो ‘पंक्चर’ कर दिया। ‘जय श्रीराम’ बोलो और स्वाभिमान भूल जाओ। चूल्हे में मराठीपन डालें। धर्म का चिलम फूंकते हुए महाराष्ट्र की गरिमा और मानसम्मान को धुएं के छल्ले में उड़ा दो, लेकिन वह ‘जय श्री राम’ का नारा और गर्व से हिंदू के तौर पर गौरवान्वित होने की विरासत उन्हीं हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे ने दिया था। आज दिल्ली की भाजपा नाग की तरह उस विरासत पर बैठी है। त्याग, स्वाभिमान और राजनीतिक चरित्र महाराष्ट्र के गुण हैं जो अब बरबाद हो गए हैं। वह देखकर क्या स्व. बालासाहेब की आत्मा आज के महाराष्ट्र पर फूल बरसाएगी या महाराष्ट्र का सिर दिल्ली के सामने झुकाने वालों को श्राप देगी? बालासाहेब की तपस्या और परिश्रम को मौजूदा हुक्मरानों ने मिट्टी में मिला दिया है। सत्ता और पैसे के लिए स्वाभिमान को तो गिरवी रख ही दिया गया, महाराष्ट्र की प्रतिष्ठा को भी खूंटी पर लटका दिया गया। चुनाव जीतने के लिए कोई कानूनी बंदिशें नहीं हैं। महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी सुई जितनी भी नहीं थी। भाजपा को सिर पर खड़ा करने की दरियादिली जिन बालासाहेब ने दिखाई उन बालासाहेब की शिवसेना को चोट पहुंचाने वालों के चरणों में शिवसेना के ही बेईमान बैठे नजर आते हैं तो इतिहास के उन औलादों की याद आती है, जिन्होंने शिवराय के साथ बेईमानी की थी। महाराष्ट्र की धूमिल हुई प्रतिष्ठा, मराठी माणुस का गिरवी रखा हुआ स्वाभिमान और मेहनतकशों की उडी हुई धूल को साफ कर फिर से नए महाराष्ट्र का पुनर्निर्माण ही शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। अन्यथा ‘शब्दों के बुलबुले फूटना’ हो जाएगा। आइए, उस बेलभंडारा को उठाएं और एक स्वाभिमानी महाराष्ट्र का निर्माण शुरू करें!

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