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संपादकीय : मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं! …लफ्फाजी और बुलबुले

पिछले साल जब विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे थे तो मौजूदा हुक्मरानों ने बजट में अपना हाथ बहुत ढीला छोड़ दिया था। उन ढीले हाथों की अंजुलियों को भर-भरकर वोट मिले। उनका काम पूरा हो गया और फिर सत्ता में आने के बाद पहले बजट में ही इस मंडली ने हाथ खड़े कर दिए। किसी की झोली में कुछ नहीं डाला। यही अपेक्षित ही था। पहले ही बजट में अपना असली चेहरा दिखा दिया। वित्त मंत्री अजीत पवार ने सोमवार को ग्यारहवां बजट पेश किया। ये एक रिकॉर्ड है। होगा भी, लेकिन महाराष्ट्र को उनके रिकॉर्ड पर गर्व हो उन्होंने इस बजट में महाराष्ट्र को ऐसा क्या दिया? कुछ भी नहीं। ग्यारहवें बजट में भी अजीत पवार ने करोड़ों की उड़ान भरी। घोषणाओं और योजनाओं की बरसात हुई। अगले पांच साल में महाराष्ट्र कैसे आगे बढ़ेगा इसका ‘गुलाबी’ सपना बिना गुलाबी जैकेट पहने जनता को दिखाया गया। इसके लिए बीच-बीच में कविताओं की पंक्तियों का सहारा लिया। लेकिन इन सपनों को पूरा करने के लिए बजट में ‘अर्थ’ और ‘संकल्प’ का मेल कहां था? यह सच है कि वित्तमंत्री ने अपने भाषण में करोड़ों रुपए के प्रावधानों का खूब शहद घोला, लेकिन क्या सरकार के पास वास्तव में यह पैसा है? यदि हां, तो कितना? यदि नहीं, तो सरकार इसे कहां से लाएगी? ४५ हजार करोड़ के घाटे की भरपाई कैसे करेगी सरकार? कृषि के अलावा उद्योग और सेवा के अहम क्षेत्रों में लगे भारी झटके की भरपाई क्या महाराष्ट्र कर पाएगा? ऐसे बहुत से
सवालों के जवाबों
की वित्तमंत्री से अपेक्षा थी। लेकिन वित्तमंत्री ने न तो वह जिम्मेदारी स्वीकारी और न ही उपाय सुझाए। उन्होंने केवल घोषणाओं, योजनाओं और प्रावधानों का हमेशा की तरह दिखावटी खेल खेला। यानी घर में नहीं है दाने अम्मा चली भुनाने! वित्तमंत्री ने राज्य में सात स्थानों पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र, महाराष्ट्र टेक्निकल टेक्सटाइल मिशन, उद्यमियों को परमिट के लिए ‘मैत्री’ वेब पोर्टल, नई मुंबई में नवीनता नगर इनोवेशन सेंटर, मुंबई को गतिशील बनाने के लिए ६४ हजार ७८७ करोड़ की परियोजनाएं, मुंबई समेत नई मुंबई, ठाणे, पुणे में मेट्रो परियोजनाएं, ३ अक्टूबर को ‘मराठी सम्मान दिवस’ के रूप में मनाने जैसी कई घोषणाएं कीं। उन्होंने आगरा में छत्रपति शिवाजी महाराज का स्मारक और कोकण के संगमेश्वर में स्वराज के लिए बलिदान देनेवाले छत्रपति संभाजी महाराज का भव्य स्मारक बनाने की घोषणा की। उन्होंने यह भी कहा कि मराठाओं के शौर्य के प्रतीक के रूप में पानीपत में एक स्मारक बनाया जाएगा। ये स्मारक जो न केवल महाराष्ट्र के हैं, बल्कि देश के गौरवशाली इतिहास के हैं, तो उनका निर्माण किया ही जाना चाहिए, लेकिन साथ ही जरा अरब सागर में उस भव्य शिव स्मारक को भी देखिए, जिसकी घोषणा तो आपने की, लेकिन जिसे आप भूल गए हैं! वित्तमंत्री इसी तरह किसानों और उनकी लाडली बहनों को भी भूल गए। उन्होंने यह जरूर कहा कि किसान हमारे पालनहार हैं, लेकिन कृषि क्षेत्र के लिए सामान्य योजना और उसके लिए ९,७१० करोड़ के प्रावधान के अलावा उन्होंने बलिराजा की अंजुलि में कुछ नहीं डाला। उन्होंने दिन में बिजली उपलब्ध कराने और अगले पांच वर्षों में बिजली दरें सस्ती करने का
लॉलीपॉप
थमाया। उन्होंने यह भी घोषणा की कि कृषि क्षेत्र में ‘एआई’ के उपयोग के लिए एक नीति बनाई जाएगी। ‘एआई’ एक अत्याधुनिक तकनीक है इसलिए इसका उपयोग किया जाना चाहिए, लेकिन किसानों के गले में कर्ज का फंदा बरकरार रखा गया, उनके पूर्ण कर्जमाफी के बारे में एक शब्द तक नहीं कहा गया, हालांकि उन्हें पालनहार शब्द से नवाजा गया। ये तो ढोंग है। वित्तमंत्री ने ‘लाडली बहनों’ के हाथ से भी निवाला छीन लिया। उनकी ही सरकार ने लाडली बहनों को २,१०० रुपए प्रतिमाह देने का वादा किया था। इस बजट में उस वादे पर भी पानी फिर गया। इसके बदले वित्तमंत्री ने एक नया शिगूफा छोड़ा कि हम महिलाओं को ‘लखपति’ बनाएंगे। वित्तमंत्री के भाषण ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकार स्थानीय भूमिपुत्रों की आजीविका पर ७६,००० करोड़ के बंदरगाह विकास का बुलडोजर चलाएगी। चूंकि यह मौजूदा सरकार का पहला बजट था, इसलिए भोली-भाली जनता को उम्मीद थी कि इसमें पहले किए गए वादों और पांच साल में किए जानेवाले नए कार्यों का लेखा-जोखा होगा। लेकिन शासकों ने पहले ही बजट में ‘मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं’ की मानसिकता दिखा दी। उन्होंने न केवल राज्य की जनता के हित में कुछ नहीं किया, बल्कि किसानों और लाडली बहनों के मुंह से निवाला छीनने का कृतघ्न कार्य किया। वित्तमंत्री ने अपने भाषण में जरूर काव्यात्मक भाव में कहा, ‘हमें सत्ता क्यों मिली, हमें इस बात का ज्ञान है… हमें क्या करना है, इस बात का भान है।’ लेकिन बजट में न तो दिए गए आश्वासनों का भान दिखा और न ही वचनों का ज्ञान। दिखी तो सिर्फ लफ्फाजी और उनके द्वारा हवा में छोड़े गए खोखले संकल्पों के बुलबुले!

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