महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और गृहमंत्री भले ही देवेंद्र फडणवीस हैं, लेकिन राज्य के कई गली गुंडे उनकी कैबिनेट में हैं, क्या कानून व पुलिस इन ‘आकाओं’ की कोठी पर नाच रही है? जनता ये सवाल पूछ रही है। सातारा के मंत्री जयकुमार गोरे ने गुंडागर्दी का कहर बरपाया है। सत्ता और पुलिस बल का दुरुपयोग करके, गोरे ने झूठे मामले दर्ज करके स्थानीय पत्रकार तुषार खरात की गिरफ्तारी को मजबूर किया। तुषार खरात ने गोरे के एक गंदे मामले का भंडाफोड़ किया। सातारा की एक गृहिणी ने गोरे को लेकर पुलिस और राजभवन में शिकायत दर्ज कराई थी। महिला के मुताबिक, गोरे ने उसे उसके मोबाइल फोन पर अपनी नग्न तस्वीरें भेजकर एक तरह से उसका उत्पीड़न किया। जब महिला अदालत गई, तो गोरे ने अदालत में दंडवत कर माफी मांग मामला वापस लेने की भीख मांगी। दोबारा परेशान न करने का वादा करने पर महिला ने केस वापस ले लिया। इसका मतलब यह नहीं है कि जयकुमार गोरे इस उत्पीड़न मामले में बरी हो गए हैं। जबकि अदालत के आदेश में यह नहीं कहा गया कि गोरे निर्दोष है, गोरे ने विधानसभा को झूठ कहकर संप्रभु सदन को गुमराह किया कि वह इस मामले में बरी हो गया है इसलिए गोरे पर विशेषाधिकार के हनन का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। फिर इस पीड़िता का तुषार खरात ने इंटरव्यू किया और गोरे के झूठ का पर्दाफाश किया। ये महिला १७ मार्च को राजभवन के सामने भूख हड़ताल पर बैठेगी। क्योंकि गोरे ने उस महिला का उत्पीड़न जारी रखा। यह ऐसा मामला है कि गोरे को धक्के मारकर वैâबिनेट से बाहर किया जाना चाहिए, लेकिन महाराष्ट्र में इसके विपरीत हुआ। गोरे ने अपने मंत्री पद का दुरुपयोग किया और खरात पर जबरन वसूली, छेड़छाड़, एट्रोसिटी जैसे अपराधों का आरोप लगाया और उन्हें गिरफ्तार करवाया। क्या गोरे के सरकार प्रायोजित गुंडागर्दी को मुख्यमंत्री फडणवीस की मंजूरी है? पुलिस का इस तरह
खुलेआम दुरुपयोग
महाराष्ट्र में जगह-जगह पर किया जा रहा है और वह आंच अब स्वतंत्रता संग्राम में अग्रसर रहनेवाले छत्रपति के सातारा तक पहुंच गई है। गोरे की हरकतें बीड़ के वाल्मीक कराड की तरह ही हैं और यह कराड सीधे-सीधे सत्ता में है। तुषार खरात एक युवा पत्रकार हैं जो खुद का ‘लय भारी’ नामक यूट्यूब चैनल चलाते हैं। सातारा के कई मामलों में उन्होंने बढ़िया रिपोर्टिंग की है। अगर खरात ने कुछ गलत किया है तो संबंधित व्यक्ति उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है। मानहानि का मुकदमा दायर कर सकता है। गोरे ने खरात पर सीधे विशेषाधिकार हनन का मामला बना दिया। चलो यह भी मान लिया, लेकिन गोरे की बदले की आग इस हद तक भड़क गई कि उन्होंने खरात के खिलाफ कई मुकदमे दायर कर दिए और ऐसी धाराएं लगा दीं कि खरात कभी रिहा नहीं हो पाए। यह एक युवा पत्रकार की जिंदगी को खत्म करने का घृणित प्रयास है। इसके पहले गोरे ने सातारा के एक शिक्षण संस्था और उसके कॉलेज को हड़पने के लिए देशमुख और उनके परिवार पर आपराधिक मामले दायर कर उन्हें जेल में सड़ा दिया था। गोरे ने देशमुख के घर की महिलाओं और बच्चों को भी नहीं बख्शा। गोरे की हरकतें महाराष्ट्र और मानवता के चेहरे पर कालिख पोतने वाली हैं और फिर उनका दबाव यह है कि उनके इन कुकृत्यों को प्रचारित न करें। ये हमारा महाराष्ट्र है जो तिलक, आगरकर, जांभेकर, आचार्य अत्रे की पत्रकारिता की विरासत को बताता है। अगर उस महाराष्ट्र में सच बोलने पर एक युवा पत्रकार को बदले की आग में जल रहे मंत्री द्वारा जेल में डाला जा रहा है तो यह मान लेना चाहिए कि यह राज शिवराय का नहीं, बल्कि मोदी का हो गया है। देश में मोदी की आलोचना करनेवालों के खिलाफ इसी तरह की बदले की कार्रवाई चल रही है। इससे कार्टूनिस्ट, पत्रकार, लेखक दहशत में हैं। महाराष्ट्र में भी इसी तरह की घटिया हरकतें शुरू हो गई हैं। युवा पत्रकार तुषार खरात की गिरफ्तारी ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इनमें सबसे पहला और महत्वपूर्ण है कि क्या महाराष्ट्र में अघोषित आपातकाल और
पत्रकारिता पर सेंसरशिप
लागू हो गया है? अगर कोई सामने आकर सबूतों के साथ सत्ताधारी दल के नेताओं और मंत्रियों पर भ्रष्टाचार, बलात्कार और गुंडागर्दी के आरोप लगाता है तो क्या पत्रकारों को उस पर आंखें मूंद लेने का फरमान है? क्या मुख्यमंत्री फडणवीस ने महाराष्ट्र में मंत्रियों को किसी भी तरह की हरकतें करने, सच बोलने वालों को धमकाने का लाइसेंस दे दिया है? इन सवालों का जवाब मुख्यमंत्री को विधानसभा में देना चाहिए। यदि विपक्षी दलों में लोकतंत्र की भावना और अन्याय के खिलाफ लड़ने की ऊर्जा बची है, तो तुषार खरात की गिरफ्तारी को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और विधानसभा में मंत्री जयकुमार गोरे की गुंडागर्दी पर सरकार को आड़े हाथों लेना चाहिए। सातारा में शिवराय के दो वंशज फडणवीस सरकार के समर्थक हैं। क्या सातारा के दोनों श्रीमंत छत्रपति इन सभी मामलों में चुप रहनेवाले हैं? भले कोई भी चुप रहे, महाराष्ट्र के सभी पत्रकारों, लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए लड़ने वाले लोगों को जयकुमार गोरे के दमनतंत्र के खिलाफ डटकर खड़ा होना होगा। अगर महाराष्ट्र में सच बोलना और लिखना अपराध हो गया तो यह राज्य गूंगों-बहरों का गुजरात बन जाएगा। राज्य मंत्री जयकुमार गोरे को झूठे मामले दर्ज कर पत्रकार तुषार खरात को गिरफ्तार करने की बजाय ‘आरोप’ लगाने वाली उस पीड़ित महिला के खिलाफ मानहानि और विशेषाधिकार उल्लंघन का मामला दर्ज करने का साहस दिखाना चाहिए। गोरे ने वैसा नहीं किया। क्योंकि संबंधित महिला को भेजी गई ३०० निजी और अश्लील तस्वीरें अभी भी कोर्ट की कस्टडी में हैं। गोरे द्वारा की गई ये सभी तस्वीरें और अश्लील चैट्स को जनहित में कोर्ट द्वारा ही सामने लाया जाना चाहिए। शैतान को नंगा करना ही होगा। मंत्री जयकुमार गोरे ने अपने साथ-साथ मुख्यमंत्री फडणवीस की भी पोल खोल दी। मुंडे, गोरे, रावल, राठौड़ जैसे फालतू लोगों की मंडली फडणवीस के मंत्रिमंडल में है। उनमें से मुंडे गए। औरों को भी जाना है। पत्रकार तुषार खरात की गिरफ्तारी स्वतंत्रता और लोकतंत्र में विश्वास रखनेवाले लोगों के लिए एक आघात है। तुषार खरात के साथ खड़ा होना चाहिए। तुषार खरात के साथ रोहित पवार खड़े हो गए हैं। उनका अभिनंदन! लेकिन दूसरों के बारे में क्या?