वैसे देखा जाए तो आजकल के दिन ‘ईयर एंड’ और क्रिसमस के त्योहार के मूड के हैं, लेकिन महंगाई और जीवनावश्यक वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी ने जनता के उत्साह पर पानी फेर दिया है। सब्जी तरकारी महंगी तो हुई ही हैं, लेकिन रोजमर्रा के भोजन में जरूरी लहसुन आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गया है। लहसुन की कीमत ४०० रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई है। यानी जो लहसुन पहले रु ४० प्रति किलो मिल रहा था उसके लिए अब सामान्य ग्रहणियों पर रु.४०० गिनने की नौबत आ गई है। रसोई गैस महंगी, सब्जियां १०० से १२५ रुपए किलो, लहसुन ४०० रुपए किलो और दूध, मसाले, खाद्य तेलों के दाम आसमान छू रहे हैं। रोजाना खाना पकाने के लिए जरूरी हर सामान की कीमतों में बढ़ोतरी थमने का नाम नहीं ले रही है। देशभर की गृहणियां इस दुविधा में पड़ गई हैं कि पेट के लिए दो वक्त का भोजन वैâसे बनाएं। हालांकि, केंद्र और राज्य के शासक सत्ता की डकार लेते हुए सुकुन में हैं। प्रधानमंत्री मुस्लिम देशों के सर्वोच्च पुरस्कार लेते घूम रहे हैं और राज्य के मुख्यमंत्री पाशवी बहुमत को सहलाते हुए राज्य की उपेक्षा कर रहे हैं। केंद्र सरकार जहां यह कहकर अपनी पीठ थपथपा रही है कि हम ‘गरीबों को मुफ्त अनाज’ देते हैं, वहीं राज्य सरकार लाडली बहनों को १,५०० रुपए प्रति माह देने का
ढोल पीट
रही है। केंद्र की नीति अब इस तरह है कि हमने मुफ्त अनाज दे दिया। अब आपको उसे कैसे पकाना है, उसमें तेल, मिर्च, मसाले, प्याज- लहसुन डालना है या उसके बिना खाना है, सब्जियां कैसे खरीदनी हैं, यह आप ही देख लें। तो अब रु.१५०० में रोजाना खाना पकाने का जुगाड़ कैसे करना है? यह खुद को ही देखना है, तय करना है। राज्य सरकार का नियम है कि आधा पेट खाओ या भूखे मरो। पिछले वर्ष सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें दोगुनी हो गई हैं। २०१४ में महंगाई के कारण तत्कालीन कांग्रेस सरकार को आरोप के पिंजरे में बंद करनेवालों के १० साल के शासनकाल में इंसान के जीने के लिए जरूरी हर चीज महंगी हो रही है। मोदी सरकार के काल में आम आदमी का जीना ही महंगा हो गया है। मोदी के ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ की बुलेट ट्रेन जब दौड़नी होगी तब दौड़ेगी, लेकिन मोदी राज में महंगाई की बुलेट ट्रेन पूरी रफ्तार से दौड़ रही है। पिछले दस वर्षों में महंगाई की दर लगभग तीन गुना हो गई है और उस पर १५ दिन पहले खुद आरबीआई ने महंगाई और बढ़ने की आशंका जताई थी। सितंबर में महंगाई दर ५.४९ फीसदी थी। अक्टूबर में यह बढ़कर ६.२१ फीसदी हो गई।
आरबीआई की चेतावनी
के मुताबिक, यह रेट और बढ़ने की आशंका है। मोदी सरकार ने देश के आम आदमी की हालत इस तरह की कर दी है कि वह पेट भर भोजन का सिर्फ सपना ही देखता रहे। सभी जीवनावश्यक वस्तुएं, अनाज, सब्जियां ही नहीं लहसुन भी थाली से बाहर हो जाए इतना महंगा कर दिया गया है। एक तरफ प्याज की कम कीमत से किसान खाक छानने लगे हैं तो दूसरी तरफ महंगाई असहनीय हो जाने से आम आदमी हताश हो गया है। लेकिन केंद्र और राज्य में बैठे हुक्मरान इतने लापरवाह हैं कि उन्हें महंगाई के ‘म’ से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें मौजूदा वक्त में केवल ‘कटेंगे’ के ‘क’ और ‘बंटेंगे’ के ‘ब’ अक्षरों में रस है। वे जनता को भी इसमें गाफिल करने की कोशिश कर रहे हैं इसीलिए वे महंगाई के ‘म’ और लगातार बढ़ती दर के ‘द’ पर एक भी शब्द बोलने को तैयार नहीं हैं, जिस महंगाई के खिलाफ ताल ठोंक कर वे १० साल पहले सत्ता में आए थे। जिस तरह मणिपुर के ‘म’ पर मोदी की जुबान बंद है उसी तरह महंगाई के ‘म’ पर भी उनकी जुबान सिली हुई है। चूंकि मोदी सरकार लोकसभा में ‘चार सौ पार’ नहीं कर पाई क्या इसीलिए लहसुन का भाव ‘चार सौ पार’ कर वह देश की जनता से बदला ले रही है?