प्रधानमंत्री मोदी के भाषण एक जैसे होते जा रहे हैं न कोई आग न कोई पीछा। उन्हें मुद्दे से भटकने और विषय से हटकर बात करने के मामले में उनका कोई हाथ नहीं पड़ सकता। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस का जवाब देते हुए मोदी ने इसी तरह का विषयांतर किया। बीते दिन मोदी गंगा में डुबकी लगाकर आए थे तो लगा था कि गंगा की पवित्रता उनके विचारों में आ जाएगी और वे शांति से अपनी बात रखेंगे, लेकिन संसद में उन्होंने जबर्दस्त तरीके से विषय ही बदल दिया। राष्ट्रपति भाषण में अपनी सरकार का लेखा-जोखा देते हैं। भविष्य की नीतियों का मसौदा पेश करते हैं। जिस पर चर्चा संसद में होती है। विपक्ष द्वारा सुझाव दिए जाते हैं। इस चर्चा के अंत में प्रधानमंत्री सभी मसलों पर जवाब देते हैं। यह एक परंपरा है। पिछले दस वर्षों में राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार की चमचागीरी करनेवाला रहा है और उस पर सत्ता पक्ष के भाषण और प्रधानमंत्री के जवाब (बकवास) के अलावा कुछ नहीं रहे हैं। विपक्ष को खुलकर बोलने नहीं दिया जाता। प्रधानमंत्री ने इस बार भी निराश नहीं किया। कांग्रेस और विपक्ष की जमकर आलोचना की। कांग्रेस ने देश की महान विभूतियों को बंधक बनाया। उन्हें बेड़ियां पहनाई। देश को जेलखाना बना दिया इसलिए प्रधानमंत्री ने यह कहा कि ‘संविधान’ शब्द कांग्रेस को शोभा नहीं देता और सत्ताधारी दल ने बेंच बजाकर उन्हें प्रोत्साहित किया। इन बेंचों को बजानेवालों में से अधिकांश पूर्व कांग्रेसी थे। वे अपने स्वार्थ के लिए या जेल जाने से बचने के लिए अचानक मोदी भजन करने लगे। राष्ट्रपति अभिभाषण चर्चा का उत्तर देते हुए मोदी ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की लोकसभा में हार और आपातकाल के दौरान अत्याचार आदि उन्हीं विषयों को दोहराया। मोदी के भाषण में कम से कम ९९ फीसदी मुद्दे झूठे होते हैं और वह बार-बार वही झूठी बातें दोहराते हैं। उस वक्त कांग्रेस ने देश को जेलखाना बनाया तो अब देश में क्या अलग चल रहा है?
राजनीतिक विरोधियों को
उठाकर जेल में डाला जा रहा है। क्या आज कार्टूनिस्टों, लेखकों, कवियों, कलाकार और मिमीक्री आर्टिस्ट की अभिव्यक्ति की आजादी बची है? मोदी का कार्टून बनाने पर कलाकारों को जेल में डाल दिया गया और भीतर सड़ने छोड़ दिया गया। ‘मीडिया’ को मोदी ने अपने चरणों पर बिठा रखा है और सच दिखाने पर रोक लगा दी है। प्रेस की आजादी अब कोई दवा लायक नहीं रही। इसे जेलखाना नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे? मोदी ने इस बात पर दुख जताया कि आजादी के बाद कांग्रेस ने संविधान निर्माताओं की भावनाओं को कुचला, लेकिन सच तो यह है कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी ४०० सांसदों की संख्या के आधार पर देश के मूल संविधान को बदलना चाहती थी और आज भी मोदी ने अदालतों, राजभवन, चुनाव आयोग आदि संवैधानिक पदों पर लाचार और गुलाम मानसिकता वाले लोगों को थोपकर संविधान की ऐसी की तैसी कर दी है। चुने हुए मुख्यमंत्री को उठाकर जेल में डाल देना। एमएलए-एम पी को खरीदना। मतदाता सूची में हेरा-फेरी करके, ईवीएम मैनेज करके और चुनाव जीतना और जीत का ढोल पीटना श्री मोदी ने कौन-सा नया संविधान लागू किया? मोदी द्वारा अपने भाषण में बलराज साहनी और पंडित हृदयनाथ मंगेशकर का उदाहरण देना निरर्थक है। कांग्रेस के बलराज साहनी को जेल में डालने और मंगेशकर को वीर सावरकर के गीत को संगीत देने की वजह से आकाशवाणी द्वारा नौकरी से निकाले जाने की लफ्फाजी प्रधानमंत्री महोदय संसद में करें इससे ज्यादा दुर्भाग्य क्या हो सकता है। मोदी को उचित जानकारी के साथ बात करनी चाहिए थी, क्योंकि वह प्रधानमंत्री हैं। बलराज साहनी एक दमदार अभिनेता थे, लेकिन उनका जुड़ाव कम्युनिस्ट यानी वामपंथी आंदोलन से था। वह आंदोलन में सक्रिय थे। वे प्रोगेसिव रायटर्स संघ के आधारस्तंभ थे। उन्हें के. आसिफ की फिल्म ‘हलचल’ में ‘जेलर’ का किरदार निभाना था और इसके लिए वे
असल में जेल जाकर
अनुभव करना चाहते थे, लेकिन योग ऐसा बना कि उसी समय मुंबई में वामपंथ का जोरदार आंदोलन हुआ था। दंगे भड़क उठे और आगजनी हुई। इसके कारण सामूहिक गिरफ्तारियां हुर्इं। इसमें बलराज साहनी थे। साहनी को तब अभिनेता के तौर पर ज्यादा प्रसिद्ध नहीं थे। उन्हें आर्थर रोड जेल ले जाया गया। कुछ दिनों बाद निर्माता के. आसिफ उनसे जेल में मिलने आया और पुलिस व जेलर को हकीकत बताई। हालांकि, यह सच है कि न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने तक कोई रिहाई नहीं होती, लेकिन बलराज साहनी जेल में थे और सरकार ने उन्हें ‘हलचल’ की शूटिंग के लिए हर दिन जेल से बाहर निकलने की अनुमति दी थी। चालीस दिन की शूटिंग साहनी ने जेल में रहते हुए पूरी की थी। क्या ये बात हमारे प्रधानमंत्री को किसी ने नहीं बताई? मंगेशकर के मामले में भी आधा सच है। हृदयनाथ ने वीर सावरकर के गीत ‘ने मजसी ने परत मातृभूमीला, सागरा प्राण तळमळला’ को संगीतबद्ध किया, लेकिन क्या इस गाने की वजह से उनकी नौकरी चली गई, इसका पैâसला कौन करेगा? लेकिन वीर सावरकर का गीत ‘सागरा प्राण तळमळला’ आकाशवाणी द्वारा हजारों बार बजाया गया और आकाशवाणी के कारण ही इस गीत को लोकप्रिय पहचान मिली। लेकिन पीएम मोदी इस विषय पर ‘मन की बात’ कह रहे हैं। झूठी कहानियां पेश कर लोगों को गुमराह करने का इनका धंधा खतरनाक है। अमेरिका ने ६०० भारतीयों को बेड़ियों में जकड़कर वापस भेज दिया, मोदी उस अपमान पर बात नहीं कर रहे हैं। कुंभ मेले में मौतों की वास्तविक संख्या पर भी वे चुप हैं, लेकिन वे फिजूल विषय पर बात कर रहे हैं। गंगा में पवित्र स्नान करने से वास्तव में क्या लाभ हुआ? मोदी बोलते हैं और भक्त ताली बजाते हैं। उसके लिए संसद को परेशान क्यों कर रहे हो?