हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत से भाजपा में मोदी की जय जयकार शुरू हो गई है, लेकिन जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में प्रधानमंत्री मोदी भाजपा को जीत नहीं दिला पाए। ऐसे में भाजपा का पाखंड उजागर हो गया है। हरियाणा में जीत की जलेबियां खाते-खाते अब जम्मू-कश्मीर में मिट्टी खाने की नौबत क्यों आई? इसका विश्लेषण भाजपा के अंध पंडितों को करने की जरूरत है। हरियाणा के नतीजों का असर महाराष्ट्र पर पड़ेगा। भाजपा और उसका शिंदे गुट दावा करने लगा है कि हरियाणा जीत गए, अब महाराष्ट्र भी जीतेंगे ही। हरियाणा और महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति की तुलना करना पूरी तरह से गलत है। महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य का गणित हरियाणा के गणित से अलग है। हरियाणा में ९० सदस्यीय विधानसभा है। महाराष्ट्र २८८ विधायकों और ४८ सांसदों का राज्य है। महाराष्ट्र का अपना मन और मत है। यह सच है कि भाजपा ने हरियाणा में चुनाव जीता, लेकिन क्या उन्होंने यह जीत सत्य मार्ग से हासिल की? यह अब एक चर्चा का विषय है। जम्मू-कश्मीर की हार पर चर्चा नहीं हो रही है, लेकिन हरियाणा की जीत के ढोल बजाए जा रहे हैं। अब फडणवीस आदि ‘राग’ अलाप रहे हैं कि महाराष्ट्र का हाल भी हरियाणा जैसा होगा। तो क्या बात है फडणवीस, अपनी उस हरियाणा जीत को फिलहाल किनारे रख दीजिए। आप और हम ऐसा क्यों नहीं कहें कि महाराष्ट्र में भी जम्मू-कश्मीर जैसा ही नतीजा आएगा? जम्मू-कश्मीर में इंडिया गठबंधन की जीत हुई। उसी तरह महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी की ही जीत होगी। हरियाणा में जाट बनाम गैर-जाट मुकाबला हुआ। महाराष्ट्र में भाजपा इसी जातीय गणित को पेश कर चुनाव लड़ना चाहती है। राज्य में मराठा, धनगर, ओबीसी आरक्षण की त्रिकोणीय लड़ाई चल रही है। और वे अपने-अपने तरीके से इस आंदोलन की धार को आगे बढ़ा रहे हैं। और फिर चुनाव के मद्देनजर सरकार की तिजोरी (भले ही वह खाली हो) किसके लिए खाली हो जाएगी इसकी कोई थाह नहीं। लेकिन इतनी जद्दोजहद के बावजूद यह तय है कि महाराष्ट्र की जनता मौजूदा शासकों को उनकी जगह दिखा देगी। क्योंकि महाराष्ट्र की जनता में मोदी-शाह के खिलाफ बेहद गुस्सा है। खुद फडणवीस की साख काफी गिर गई है। मुख्यमंत्री शिंदे दिल्ली में अपने पातशाहों को सीधे थैलियां पहुंचाते हैं और ये थैलियां फडणवीस और अन्य लोगों की तुलना में अधिक हैं। मुंबई-महाराष्ट्र को लूट कर दिल्ली के पातशाहों पर वसूलियां उड़ेली जा रही हैं। जिससे मर्हाठी जनता का नुकसान हो रहा है। ये सब मराठी जनता देख रही है। महाराष्ट्र में गद्दारों का शासन है और मोदी-शाह ने महाराष्ट्र की छाती पर इस अवैध, बेईमान सरकार को बिठाया है। यह राज्य की जनता को स्वीकार्य नहीं है। इस गुस्से का प्रतिबिंब लोकसभा चुनाव में दिखा। हरियाणा के नतीजों की तुलना महाराष्ट्र से करने वालों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए। फिर महाराष्ट्र में श्री उद्धव ठाकरे और शरद पवार जैसे जनोन्मुख नेता और उनकी फौजें जागरूक हैं। हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस के सारे सूत्र एक व्यक्ति के हाथ में थे। आज महाराष्ट्र में ऐसी तस्वीर देखने को नहीं मिलती। इसलिए यह कहा जाना चाहिए कि हरियाणा की तरह महाराष्ट्र में भी ऐसा होगा, यह भाजपा और उसके शिंदे का सपना है। महाराष्ट्र में आघाड़ी की राजनीति है और भाजपा इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती। कांग्रेस की ओर से शिकायत की गई कि हरियाणा में ‘ईवीएम’ मशीन घोटाला हुआ है। हमें कितनी बार कहना होगा कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं रहा है? हरियाणा में जब वोटों की गिनती शुरू हुई तो कांग्रेस ७२ सीटों पर आगे चल रही थी। यानी यह जनमत का जनादेश था। लेकिन बाद में यह जनादेश बदल गया। राजस्थान और मध्य प्रदेश चुनावों में भी शुरुआत में जनमत भाजपा विरोधी था। कांग्रेस के रेस में आते ही नतीजे पलट गए। जनादेश इतनी जल्दी वैâसे बदल सकते हैं? महाराष्ट्र में भाजपा और उसके शिंदे का फॉर्मूला ज्यादा से ज्यादा ‘निर्दलीय’ उम्मीदवार उतारकर जातिगत वोटों को बांटने का लगता है। भाजपा ने हरियाणा में निर्दलीयों का ये दांव जरूर खेला है। महाराष्ट्र में भी मत विभाजन का ‘खेला’ कर और तोड़-फोड़ व फूट डालकर चुनाव जीतने की साजिश है। इसीलिए फडणवीस जैसे लोग कहते हैं कि महाराष्ट्र में भी हरियाणा जैसा ही होगा। लेकिन मराठी आदमी दिल से कमजोर नहीं है। वह विचारों से पक्का है। जो लोग हरियाणा के नतीजे से निराश हैं, उन्हें जम्मू-कश्मीर की जीत की ओर आशा भरी निगाहों से देखना चाहिए। जो लोग दावा करते हैं कि हम हरियाणा की तरह जीतेंगे, उन्हें जम्मू-कश्मीर में मोदी-शाह की हार को भी उसी सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए। भाजपा की शहनाई कितनी भी बजे, चिंता की कोई वजह नहीं है!