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संपादकीय : खोकेबाज नरकासुर को गाड़ देंगे …पटाखे बचा कर रखें!

सदियों से आनंदित करने वाली, खुशियों की रोशनी से मन व जग को आह्लादित करने वाली चैतन्यदायी उल्लास और उजास का पर्व दीपावली मनाई जा रही है। सभी हिंदुओं के घर दीयों की रोशनी से रोशन हैं। गांवों से लेकर महानगरों तक घरों के आंगन और बालकनियों को कंदीलों से सजाया गया है। रंगीन रंगोलियों ने आंगनों की सुंदरता को बढ़ा दिया है। साधारण मध्यमवर्गीय परिवार का घर हो, अमीरों का बंगला हो या गरीबों की झोपड़ी, हर छोटे-बड़े घर की दहलीज दीयों से प्रकाशमान है। दिवाली से पहले घरों के साथ-साथ आसपास के परिसरों की भी सफाई की जाती है। यह एक ऐसा त्योहार है, जो न सिर्फ घर को बल्कि रिश्तों और मन में जमा कूड़े-कचरे और गंदगी को भी साफ कर देता है। इस साल की दिवाली छह दिनों की है। इसलिए एक हफ्ते तक घर में न सिर्फ बच्चों और माता-पिता का साथ, बल्कि दादा-दादी की खुशियां भी उमड़ पड़ी है। दीपोत्सव का त्योहार २८ अक्टूबर को ‘वसुबारस’ के दिन पटाखों की गूंज के साथ शुरू हुआ। २९ अक्टूबर को धनतेरस और ३१ अक्टूबर को नरक चतुर्दशी मनाई गई। शुक्रवार की शाम जोरदार आतिशबाजी के साथ लक्ष्मीपूजन किया गया। अब दिवाली के दो और महत्वपूर्ण दिन बचे हैं, शनिवार को दिवाली पाड़वा यानी बलिप्रतिपदा-गोवर्धन पूजा और रविवार को भैयादूज। हिंदू धर्म में त्योहारों और उत्सवों की इतनी विविधता नहीं होती। लेकिन दिवाली की एक अलग ही जगह है। दिवाली को अंधकार पर विजय पाने और कठिनाइयों से बाहर निकलने का नया प्रकाशमय रास्ता खोजने के त्योहार के रूप में देखा जाता है। हालात चाहे जो भी हो, अमीर हो या गरीब, राजा हो या रंक, हर किसी के घर में दिवाली के आगमन को लेकर एक जैसा उत्साह, उल्हास और उत्सुकता होती है। सभी त्योहारों का मुख्य उद्देश्य आनंद की अनुभूति करना है। हर व्यक्ति सुख और आनंद के पलों को अपने परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों में तलाशता है। इसीलिए मीठे और नमकीन खाने का सिलसिला घर तक ही सीमित नहीं रहता, मेहमानों को नाश्ते के लिए निमंत्रण दिया जाता है। दिवाली का त्यौहार व्यापारी वर्ग के लिए एक बड़ा उत्सव होता है। चूंकि दिवाली के दौरान नए कपड़े और नई वस्तुएं बड़े पैमाने पर खरीदी जाती हैं, इसलिए हर साल की तरह बाजार भी जगमगा उठे हैं। धनतेरस के दिन सोना खरीदने के लिए ज्वेलर्स की दुकानों पर भारी भीड़ थी। अब बलिप्रतिपदा में वाहन और इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ-साथ मकान की खरीदारी भी बड़े पैमाने पर की जाएगी। चाहे कितनी भी महंगाई बढ़ जाए, चाहे कितने भी संकट आ जाएं लेकिन मार्ग निकलकर दिवाली तो हर कोई धूमधाम से मनाता है। दिवाली को सबसे अधिक हर्षोल्लास एवं मंगलमय के त्योहार के रूप में देखा जाता है। हालांकि आसपास ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है, जिसे उत्साहजनक कहा जाए फिर भी महाराष्ट्र और देश के लोग दीपोत्सव के इस त्योहार में खुशियां ढूंढने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। दिवाली के साथ-साथ महाराष्ट्र में चुनाव की सरगर्मी भी जारी है। शासकों के रूप में खोकेबाज नरकासुरों ने महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर तांडव मचा रखा है। हर जगह विश्वासघात और गद्दारी के मकड़जाल लटके हुए हैं। महाराष्ट्र की जनता के मुंह से निवाला छीनकर महाराष्ट्र के उद्योगों को राज्य से ले जाया जा रहा है। दिल्ली के इशारे पर ८ लाख करोड़ का कर्ज लेकर महाराष्ट्र को दिवालिया बनाने की कोशिश चल रही है। महाराष्ट्र को खरोंचने वाले नरकासुरों को दफनाने के लिए महाराष्ट्र की जनता और मराठी लोगों को दिवाली के बाद चुनावों में एक बड़ी साफ-सफाई करनी होगी। इसके लिए दिवाली के बाद भी पटाखे बचाकर रखने होंगे। खोकेबाज सरकार की कुर्सी तले ‘आवाज’ निकालनी होगी!

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