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संपादकीय : गंगा-यमुना का उपहास …योगी-मोदी, आचमन करें!

योगी जी आदित्यनाथ एक अद्भुत व्यक्ति हैं। वे कट्टर हिंदू हैं, लेकिन क्या उनमें भगवान शंकर की तरह विष यानी हलाहल पीने की शक्ति है? यह संदेह है। इस समय प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है। अब तक ५० करोड़ श्रद्धालु गंगा स्नान करके मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं या पुण्य प्राप्त कर चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि जनता को ये पुण्य उनकी वजह से मिला है इसलिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी महाराज ने अधिक से अधिक लोगों को कुंभ में आने और स्नान करने के लिए आमंत्रित किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री मोदी, उपराष्ट्रपति धनखड़, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री, उद्योगपति अंबानी, अडानी, देवेंद्र फडणवीस और कई राज्यों के मुख्यमंत्री गंगा में डुबकी लगाकर पुण्य कमा चुके हैं। कई लोगों ने पानी का आचमन किया है। अब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को स्पष्ट किया है कि जिस गंगा में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री मोदी, अडानी ने स्नान किया था, उसका पानी ‘मल-दूषित’ है। यानी सीवर में ‘मैला’ और बाकी सारी गंदगी, बैक्टीरिया उस पानी में पाए गए। लगभग ५० करोड़ लोग इस ‘जल-मल संक्रमित’ धारा में डुबकी लगाकर पुण्य प्राप्त कर चुके हैं। इससे विवाद खड़ा हो गया है। प्रयागराज संगम का पानी स्नान के लिए असुरक्षित है। इसमें न केवल मल-मूत्र है, बल्कि इसमें ऑक्सीजन की भी कमी होती है। चिंता की बात यह है कि पानी में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया भी पाए गए, लेकिन मुख्यमंत्री योगी ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया। विधानसभा में हंगामा हआ। इसके उलट, योगी ने घोषणा की, ‘यह रिपोर्ट झूठी है। प्रयाग संगम का पानी न केवल नहाने योग्य है,
बल्कि पीने योग्य भी है।
आप इस पानी को आराम से पी सकते हैं।’ योगी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को झूठा ठहरा दिया। इस ट्रिब्यूनल को न्यायालय का दर्जा प्राप्त है। बावजूद इसके, योगी ने कोर्ट द्वारा दी गई रिपोर्ट को बकवास करार देते हुए गंगा जल को स्वच्छता का सर्टिफिकेट दे दिया। योगी ने यह घोषणा की कि पानी में मल-मूत्र वगैरह नहीं है और वह ऑक्सीजन से भरपूर है, लेकिन किस आधार पर? इस पर कई पर्यावरणविदों ने चुनौती दी, ‘योगी जी, आपके कहने से सहमत हैं। आइए, दूध का दूध पानी का पानी हो जाए। योगी जी, आप अपनी पूरी वैâबिनेट के साथ प्रयागराज संगम पर आएं और जनता के सामने हर एक संगम के लोटाभर जल का आचमन करें। दुनिया को दिखा दें कि गंगा साफ है। क्या आप तैयार हैं?’ लेकिन योगी और उनकी वैâबिनेट इस चुनौती को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। महादेव ने समुद्र मंथन से प्राप्त विष पी लिया, लेकिन योगी लोटाभर गंगा जल पीने को तैयार नहीं थे। गंगा के शुद्धिकरण के लिए अब तक लाखों करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। मोदी ने इसके लिए एक अलग मंत्रालय की स्थापना की। मोदी की वाराणसी को जापान के ‘क्योटो’ शहर की तरह बदलने की भी योजना थी। उसके लिए हजारों हिंदू मंदिरों पर बुलडोजर चलाया गया, लेकिन क्या हासिल हुआ? गंगा मैली रही और वाराणसी भी तंग-भीड़भरा और अनियोजित रहा। प्रयागराज के कुंभ समारोह पर १० हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए। यदि सचमुच इतना खर्च किया गया होता तो श्रद्धालुओं पर मल-मूत्र युक्त जल में डुबकी लगाकर पुण्य लाभ कमाने की नौबत नहीं आती। कुंभ जा रहे कई श्रद्धालुओं की रेलवे स्टेशनों पर कुचलकर मौत हो गई, जो लोग प्रयागराज पहुंचने में कामयाब रहे उनमें से सैकड़ों की भगदड़ में मौत हो गई।
भोंदू बाबा लोग
कह रहे हैं कि इन सभी मृतकों को अब मोक्ष मिल गया है। सरकार श्रद्धालुओं को पीने के लिए सादा पानी तक उपलब्ध नहीं करा सकी, वह नदियों की सफाई क्या करेगी? कुंभ में आए पांच हजार से ज्यादा लोग अब भी लापता हैं। छोटे बच्चे खो गए हैं। उनकी माताएं विलाप कर रही हैं। क्या इसे मोक्ष पाना कहा जाए? इस अव्यवस्था के लिए सरकार जिम्मेदार है। सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। सरकार ही गंगा-यमुना की राजनीति कर हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचा रही है। कोविड काल में हजारों लाशें गंगा में बहा दी गर्इं। इसे पूरी दुनिया ने देखा। अब कुंभ के दौरान गंगा में मल-मूत्र तैर रहा है और हमारे हिंदू श्रद्धालु उसमें डुबकी लगा रहे हैं, इस स्थिति को हम क्या कहें? नदियों को साफ करना राज्यों की ही जिम्मेदारी है, लेकिन राज्यों ने इस जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। जब केजरीवाल कहते रहे कि दिल्ली में यमुना नदी का पानी जहरीला है और पीने लायक नहीं है तो केंद्र सरकार यह मानने को तैयार नहीं थी। हरियाणा के मुख्यमंत्री दिल्ली में यमुना के तट आए और उस पानी का आचमन कर तुरंत उस पानी को थूकते हुए उनकी तस्वीर सामने आई। जैसे ही केजरीवाल हारे, दिल्ली के उपराज्यपाल ने यमुना जाकर निरीक्षण करने का नाटक किया और नदी-जल शोधन मशीनें और यंत्र आदि लाकर यमुना को साफ करने का अभियान शुरू कर दिया। वे ऐसा पहले भी कर सकते थे, लेकिन भाजपा केजरीवाल सरकार को बदनाम करना चाहती थी इसलिए दिल्लीवासियों को गंदा पानी पीने दिया। अगर यही प्रधानमंत्री मोदी का ‘सबका साथ सबका विकास’ है तो उन्होंने गंगा-यमुना का भी उपहास ही किया है। महाकुंभ में ५० करोड़ लोगों के मल-मूत्र युक्त पानी से नहाने की तस्वीर भयावह है। हिंदुओं का अपमान है। पुण्य की प्राप्ति, मोक्ष प्राप्ति ढोंग है। इस पाखंड के लिए कोई क्षमा नहीं है। कतई नहीं!

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