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संपादकीय : मोदी और उनके बाद…

मोदी के सार्वजनिक जीवन की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य से हुई। वे संघ के प्रचारक के तौर पर काम कर रहे थे। संघ के यही प्रचारक बाद में २०१४ में भारत के प्रधानमंत्री बने। उसके बाद के दस वर्षों में मोदी कभी भी नागपुर में संघ मुख्यालय के आसपास नहीं गए, लेकिन कल गुढी पाडवा के दिन मोदी नागपुर में संघ मुख्यालय पहुंचे। उन्होंने कुछ कार्यक्रमों में भाग लिया। अहम बात यह कि उन्होंने सरसंघचालक मोहन भागवत से बंद कमरे में चर्चा की। इसलिए नई चर्चाओं को पंख लग गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को संघ का स्वयंसेवक घोषित किया और लंबे समय बाद संघ की तारीफ की है। मोदी नागपुर गए और संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार के स्मारक के दर्शन किए। मोदी ने बाद में कहा, ‘देश इतने वर्षों तक मानसिक गुलामी में था। अब वह इससे बाहर आ रहा है। युवा पीढ़ी में यह भावना है कि हम देश के लिए जीना चाहते हैं। डॉ. हेडगेवार और गोलवलकर गुरुजी की प्रेरणा से ही विकसित भारत का संकल्प पूरा होगा।’ मोदी ने यह कहा और इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन जब मोदी कहते हैं कि संघ ने मानसिक गुलामी की बेड़ियां तोड़ दी हैं तो उनका वास्तव में क्या मतलब है? संघ सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में तो आगे है ही, पिछले दस वर्षों में संघ ने राजनीतिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। आज मोदी सत्ता में हैं तो इसमें संघ के स्वयंसेवकों का त्याग और परिश्रम सबसे अधिक है। पिछले १० सालों में मोदी ने देश में ‘मोदी की जय’ बोलने वाले अंधभक्तों की बाढ़ ला दी है। यह मानसिक गुलामी है। संघ इस मानसिक गुलामी की बेड़ियां तोड़ना चाहता है और शायद यही संघ मुख्यालय में सरसंघचालक और मोदी
मुलाकात का प्रयोजन रहा हो
ऐसा लगता है। संघ भाजपा का मातृ संगठन है। १९७८ में इसी मातृ संगठन विवाद के कारण जनता पार्टी की सरकार गिर गई। मोरारजी मंत्रिमंडल में होते हुए भी वाजपेयी-आडवाणी और अन्य नेता अपने मातृ संगठन, यानी रा. स्व. संघ के साथ संवाद और संबंध तोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। इन सभी ने सत्ता छोड़ दी, लेकिन मातृ संस्था की प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने दी। लेकिन अब संघ को नोक पर रखने का काम किया जा रहा है। जेपी नड्डा जैसे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहना शुरू कर दिया कि ‘हमें संघ की आवश्यकता नहीं है। हम उनके बिना ४०० पार कर सकते हैं’ और संघ ने लोकसभा चुनाव में मोदी की तूफानी हवा को २४० पर रोक दिया। नड्डा अध्यक्ष हैं और अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल कब का खत्म हो चुका है। बावजूद, भाजपा अब तक अपना नया अध्यक्ष नहीं चुन पाई है। जाहिर है कि संघ ने सर्वशक्तिमान मोदी और अमित शाह जैसे भाजपा के बाहुबलियों को नया अध्यक्ष नियुक्त करने से रोक दिया है। संघ सीधे तौर पर अपने आदमी को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना चाहता है। अब उनका आदमी कौन है और क्या वह आदमी मोदी-शाह को पसंद आएगा? भाजपा इसी चक्रव्यूह में फंस गई है। नितिन गडकरी २०१०-२०१३ तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। परदे के पीछे से गडकरी को अध्यक्ष पद का दूसरा ‘टर्म’ मिलने से रोकने के लिए उनके खिलाफ साजिशें रची गर्इं। गड़करी को रोकने के लिए उनके ‘पूर्ति’ औद्योगिक समूह पर छापे मारे गए और उन्हें बदनाम किया गया। यह अरुण जेटली के जरिए किया गया और साजिश का केंद्र गुजरात ही था। अगर गडकरी दोबारा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते तो नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय राजनीति में उभर नहीं पाते और आज जो राजनीति हम देख रहे हैं वह देश में देखने को नहीं मिलती। गडकरी सीधे तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ द्वारा नियुक्त किए गए
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, लेकिन उन्हें ही हटा दिया गया। ये टीस आज भी संघ के दिल में है। इसलिए इस बार भाजपा अध्यक्ष शत-प्रतिशत नागपुर से होगा। संघ अपना अध्यक्ष बनाएगा तो मोदी-शाह के दिल में यह टीस चुभेगी। तो क्या इसी की वजह से मोदी संघ मुख्यालय आए थे? मोदी ने खुद नियम बनाया है कि किसी को ७५ साल की उम्र तक ही राजनीतिक पद पर रहना चाहिए। इसीलिए मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत कई बुजुर्गों को दरकिनार कर दिया। ‘नियम तो नियम हैं, इनसे कोई नहीं बच पाएगा’ मोदी का आदर्श वाक्य है। सितंबर महीने में मोदी ७५ साल पूरे कर लेंगे और अपने ही नियमों के मुताबिक रिटायर हो जाएंगे। अपनी सेवानिवृत्ति के बाद, मोदी शायद संघ मुख्यालय में इस बात पर परामर्श करने गए होंगे कि क्या उन्हें फिर से संघ स्वयंसेवक के रूप में काम करना चाहिए या संघ के किसी प्रोजेक्ट की कमान संभालनी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी की विदाई का समय आ गया है। मोदी भगवान का अवतार हैं। इसलिए भले ही उनके अंधभक्त कहेंगे कि वे रिटायर होने के लिए बाध्य नहीं हैं, लेकिन उन्हें हिंदू धर्म का ठीक से अध्ययन करना चाहिए। मोदी ने नागपुर में ‘राम से राष्ट्र’ का मंत्र दिया। ‘राम-कृष्ण के बाद क्या दुनिया रुक गई?’ यही हिंदू धर्म है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देशभक्तों का संगठन है। हिंदू धर्म के प्रति उनकी भावनाएं प्रबल हैं। पिछले दस सालों में संघ की दिशा भटकाने की कोशिश की गई। आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक जागरूकता से बने इस संगठन को दस वर्षों में मानसिक गुलामी की बेड़ियों में जकड़ने की कोशिश की गई। यदि वे बंधन टूटने वाले हैं तो स्वागत है!

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