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संपादकीय : पेड़ों का कत्ल …असली सच क्या है?

अदालतें फैसले लेते समय या सुनवाई के दौरान अक्सर ‘सशक्त राय’ व्यक्त करती हैं। फिर उस पर हमारे देश के प्रसार माध्यमों और सोशल मीडिया में चर्चाओं का दौर शुरू हो जाता है। न्यायपालिका के इस ‘रामशास्त्री बाणों’ से आम जनता भी अभिभूत हो जाती है। लेकिन अदालतों के कुछ फैसले ऐसे आते हैं जिनसे अभिभूत जनता के मन में यह सवाल उठता है कि उनके द्वारा पहले व्यक्त की गई राय और बाद में दिए गए फैसलों को तार्किक रूप से कैसे जोड़ा जाए। सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने आगरा में ताजमहल के ‘संरक्षित’ क्षेत्र में पेड़ों की कटाई को लेकर फैसला सुनाते हुए ऐसी ही राय व्यक्त की है। न्यायाधीश ने कहा, ‘बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई मानव हत्या से भी भयावह है।’ प्रदूषण के कारण ताजमहल को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ताजमहल के आसपास की कुछ जगह को ‘संरक्षित’ कर दिया है। इस संरक्षित जोन में पेड़ों की कटाई प्रतिबंधित है। लेकिन बिना किसी अनुमति के शिवशंकर अग्रवाल नामक व्यक्ति ने इस प्रतिबंधित क्षेत्र में ४५४ पेड़ों की हत्या कर दी। इसी से संबंधित एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी’ द्वारा दायर रिपोर्ट के आधार पर बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई की तुलना मानव हत्या से की। इसके साथ ही
पर्यावरण से संबंधित
मामले में माफी नहीं, ऐसे शब्दों में आरोपी शिवशंकर अग्रवाल के कान खींचे। फिर इसके अलावा उन पर साढ़े चार करोड़ रुपए तक का जुर्माना भी लगाया गया। ताजमहल देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की एक अनमोल विरासत है। इसका अच्छी स्थिति में संरक्षण होना ही चाहिए। इसलिए वहां पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यक्त किया गया सात्विक आक्रोश समझ में आता है। सवाल सिर्फ इतना है कि अन्य कई मामलों में जब अदालतों का यह सात्विक गुस्सा और राणाभीमादेवी का तीर पिघलकर गिर जाता है, तब आम जनता इससे वैâसे जुड़ सकती है? न्यायालय कहता है, ‘बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई मानव हत्या से भी भयावह है।’ तो मुंबई मेट्रो के लिए आरे जंगल में जिन हजारों पेड़ों की सरकार प्रायोजित हत्या हुई, उसका क्या? अदालत इन ‘हत्याओं’ को क्यों नहीं रोक पाई? अब दहिसर से मीरा-भाइंदर मेट्रो-९ के रूट पर उत्तन, डोंगरी में कारशेड के निर्माण के लिए करीब ११,००० से अधिक पेड़ों पर सरकार कुल्हाड़ी चलानेवाली है। पहले यह संख्या बमुश्किल डेढ़ हजार थी। उसमें सीधे ९ हजार ९०० पेड़ और जोड़े गए हैं। हालांकि, पर्यावरणविदों का विरोध जारी है, लेकिन ‘आरे’ के हजारों पेड़ों की तरह ये ११ हजार पेड़ भी ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ साबित होंगे, ऐसी स्थिति है। ‘आरे’ में पेड़ों की कटाई को लेकर हाई कोर्ट ने
मेट्रोरेल प्रशासन को ‘राहत’
दे दी थी। मेट्रो-३ के लिए हुए पेड़ों की कटाई के संदर्भ में भी यही हुआ। पहले लगी रोक को कोर्ट ने यह कहते हुए हटा दिया था कि ‘दक्षिण मुंबई में ट्रैफिक समस्या के समाधान के लिए मुंबई मेट्रो-३ अनिवार्य है।’ राज्य और देश में कई बड़ी परियोजनाओं के लिए अब तक इसी तरह लाखों पेड़ों की बलि ली जा चुकी है। इस कारण पर्यावरण की ऐसी की तैसी हो गई है। ‘बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई मानव हत्या से भी भयानक है’, ऐसा ताजमहल पेड़ कटाई मामले में दृढ़तापूर्वक कहनेवाली न्यायपालिका सरकार प्रायोजित पेड़ों की सामूहिक हत्या के समय एक अलग रुख अपनाती नजर आती है। राजनेताओं का विकास का ‘दावा’ और उसके लिए पेड़ों की कटाई जरूरी होने का ‘बहाना’ पर न्यायव्यवस्था विश्वास कर लेती है। इसीलिए पेड़ों की कटाई को ‘आवश्यक’ और ‘क्षम्य’ माना जाता है। कटे हुए पेड़ों का पुनर्रोपण और वैकल्पिक वृक्षारोपण के माध्यम से पर्यावरण की रक्षा करने के सरकार के ‘तर्क’ को ग्राह्य माना जाता है। मिलॉर्ड, यह सच है कि पेड़ों की कटाई मानव हत्या से भी भयावह है। आपने भी यही कहा, लेकिन असली सच क्या है? आपकी अनुमति से विकास के नाम पर हजारों पेड़ों की अनियंत्रित हत्या या ताजमहल पेड़ कटाई मामले में आपके द्वारा व्यक्त किया गया सात्विक आक्रोश?

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