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संपादकीय : स्वबल की नई परीक्षा …आप, तृणमूल व अन्य

‘इंडिया’ गठबंधन के प्रमुख सदस्य ‘आम आदमी पार्टी’ यानी ‘आप’ ने दिल्ली विधानसभा के लिए ‘स्वबल’ का नारा दिया है। दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनाव वह अकेले लड़ेगी। ‘आप’ के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल की भूमिका है कि वे किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। इसका मतलब है कि ‘आप’ ने विधानसभा के लिए कांग्रेस पार्टी से तलाक ले लिया। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आप के बीच दिल्ली, हरियाणा, गुजरात में गठबंधन हुआ, लेकिन ये दोनों दिल्ली में एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत सके। हरियाणा और गुजरात में भी कांग्रेस की मदद से ‘आप’ ने एक-एक सीट पर लड़ने की कोशिश की। वोट तो भरपूर मिले, लेकिन सीटें नहीं जीती जा सकीं। कांग्रेस के साथ गठबंधन का लोकसभा में कोई फायदा नहीं हुआ और ऐन चुनाव में ही कांग्रेस और आप के बीच मनमुटाव बढ़ गया। स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व ने ‘आप’ पर हमला जारी रखा। कांग्रेस ने अपने शीर्ष नेताओं को दिल्ली में उतारा और वे हार गए। इसमें आप की गलती क्या है? कन्हैया कुमार भी दिल्ली से उम्मीदवार थे। उनकी हवा अच्छी बनी थी। फिर भी जैसे कन्हैया कुमार गिरे, वैसे ही आप के नेता भी गिरे। इसलिए एक-दूसरे के माथे खप्पर फोड़कर क्या होगा? ‘आम आदमी पार्टी’ दिल्ली विधानसभा और दिल्ली महानगरपालिका चुनाव जीतती है, लेकिन लोकसभा चुनाव हार जाती है। ‘आप’ का प्रचार तंत्र, कार्यकर्ताओं की मेहनत में भी वे पीछे नहीं हैं। फिर भी भाजपा ने उन्हें लोकसभा चुनाव में हरा दिया। ऐसा लगता है कि दिल्लीवासियों ने तय कर लिया है कि लोकसभा में भाजपा और विधानसभा और महानगरपालिका में आम आदमी पार्टी को जिताना है। इन सबके बीच कांग्रेस पार्टी मुश्किल में फंसती नजर आ रही है। यदि ‘आप’ जैसा ‘इंडिया’ गठबंधन का घटक दल स्वबल का नारा बुलंद कर रहा है तो कांग्रेस नेतृत्व को ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि यह स्वबल की बीमारी अन्य राज्यों तक न पैâले। ‘आप’ नेता अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह के मामले में ईडी, सीबीआई का जमकर इस्तेमाल किया गया। हालांकि, ‘आप’ के नेतृत्व ने आत्मसमर्पण नहीं किया और उन्होंने तानाशाही के खिलाफ अपनी लड़ाई बरकरार रखी। केजरीवाल ने मोदी की नीतियों पर तीखे हमले जारी रखे हैं और दबाव के बाद भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते दिल्ली की कानून व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए केजरीवाल यह कहने से बिल्कुल नहीं हिचकिचाते कि दिल्ली के अपराधीकरण के लिए अमित शाह खुद जिम्मेदार हैं। केजरीवाल जेल से बाहर आए और अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसका बढ़िया असर हुआ। इससे शराब घोटाले की बदनामी कम हुई और उस शराब का सुरूर भाजपा को चढ़ गया। दिल्ली क्षेत्र में प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य क्षेत्र में ‘आप’ सरकार द्वारा किए गए कार्य काबिल-ए-तारीफ हैं। ‘आप’ ने उसी के दम पर ‘पंजाब’ जैसे राज्य पर भी कब्जा कर लिया। उन्होंने पंजाब में कांग्रेस को हराया और दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस को पछाड़ते हुए राज्य जीता। लोगों के सहयोग के बिना ऐसी सफलता हासिल नहीं की जा सकती। इसलिए ‘आप’ जैसे ‘मित्र’ का होना भाजपा विरोधी गठबंधन की जरूरत है। गुजरात राज्य में ‘आप’ का जाल फैल गया है। अगर ‘आप’ और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो गुजरात में अच्छे नतीजे तय हैं। ‘आप’ अब क्षेत्रीय पार्टी नहीं रही और कई राज्यों में उभर चुकी है। इसलिए ‘आप’ को विधानसभा में मतभेद को छोड़कर ‘राष्ट्रीय’ गठबंधन में रहना चाहिए। यही राष्ट्रहित में है। पश्चिम बंगाल में सुश्री ममता बनर्जी कांग्रेस से दो हाथ दूर रहकर अपनी राजनीति करने की कोशिश कर रही हैं। अब ‘आप’ के केजरीवाल ने भी यही शंख फूंका है। यह कांग्रेस पार्टी के लिए चिंतन-मंथन करने और एकजुटता के लिए पहल करने का मामला है। हमें चिंता है ‘इंडिया’ गठबंधन की एकता की। केजरीवाल के मन को बदलवाना ही होगा!

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