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संपादकीय : अब फडणवीस जारी करेंगे ‘क्लिप्स’! …विकृति और औकात

पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख को १०० करोड़ की वसूली मामले में सीधे तौर पर फंसाया गया और अगर वह इससे छुटकारा पाना चाहते हैं, तो हम उनसे जिन हलफनामों पर हस्ताक्षर करने के लिए कहते हैं उन हलफनामों पर हस्ताक्षर करें, ऐसा देवेंद्र फडणवीस की तरफ से कहा गया, इस तरह का खुलासा देशमुख ने किया। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, तत्कालीन पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे, मंत्री अनिल परब, अजीत पवार को झूठे मामलों में फंसा कर और खुद को बरी करने का एक प्रस्ताव देशमुख के सामने रखा गया था। देशमुख ने उसे ठुकरा कर जेल जाना पसंद किया। वे फडणवीस और अन्य लोगों के दबाव के आगे नहीं झुके। ‘हमारे पास फडणवीस ने जो किया उसका ‘पेन ड्राइव’ सबूत है। हम इसे सामने लाएंगे,’ देशमुख के यह कहते ही, फडणवीस ने धमकाते हुए कहा, ‘हमारे पास भी देशमुख की कई क्लिप्स हैं, उसे हम जारी करेंगे। फिर देखते हैं।’ यानी फडणवीस ने भाजपा की असली संस्कृति दिखा दी है। विरोधियों के फोन हैक करना, फोन रिकॉर्ड करना, सरकारी तंत्र का इस्तेमाल कर वीडियो क्लिप बनाना और फिर उसके जरिए अपने राजनीतिक विरोधियों को ब्लैकमेल करना हाल के दिनों का मूल व्यवसाय बन गया है। ऐसे क्लिप्स का इस्तेमाल कर मोदी-शाह-फडणवीस ने पार्टी के भीतरी विरोधियों को खामोश कर दिया। यह महाराष्ट्र की संस्कृति के अनुकूल नहीं है। अनिल देशमुख के खिलाफ ईडी, सीबीआई लगाने वाले मास्टरमाइंड फडणवीस ही हो सकते हैं। ठाकरे सरकार को उखाड़ फेंक कुर्सी पर चढ़ने की उन्हें इतनी जल्दी मची थी कि वे किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। सौदा यह था, ‘मुख्यमंत्री ठाकरे और अन्य तीन के खिलाफ हम जो आरोप कहते हैं, वे उन पर वो आरोप लगाएं, ऐसे हलफनामों पर हस्ताक्षर करें। फिर हम इस सरकार को गिरा देंगे और आप गिरफ्तारी से बच जाएंगे।’ इसके लिए १०० करोड़ रुपए की वसूली का फर्जी मामला खड़ा किया गया। उस मामले की जांच ईडी को सौंपी गई और देशमुख को गिरफ्तार कर लिया गया। इसी दौरान अंबानी के घर के पास फुसका बम रखने के मामले को अंजाम दिया गया। दोनों मामलों को एक दूसरे से जोड़ दिया गया, लेकिन इन दोनों अपराधों के असली मास्टरमाइंड तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह थे, लेकिन परमबीर सिंह की ओर से देशमुख पर आरोप लगाए गए और बदले में परमबीर को अभय दिया गया। १०० करोड़ की वसूली का मामला फर्जी था, लेकिन एंटीलिया के सामने बम रखकर हंगामा खड़ा करने के मामले में पुलिस कमिश्नर और उसका वसूलीबाज गिरोह शामिल था। पुलिस कमिश्नर के कक्ष में साजिश रची गई। उस साजिश में एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या हुई। इस हत्या को अंजाम देने और हत्या को दबाने की साजिश पुलिस कमिश्नर के कक्ष में रची गई थी। फिर भी, खुद दिल्ली ने पुलिस कमिश्नर को बचाया और देशमुख को पकड़ा। इस मामले में शामिल एक अन्य पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा को भी लाचार शिंदे सरकार ने जेल से रिहा किया। ये सब देखने पर समझ में आता है कि इस मंडली ने कानून, न्याय व्यवस्था का किस तरह खुलकर दुरुपयोग किया। राज्य की मौजूदा पुलिस महानिदेशक रश्मि शुक्ला, जब वे राज्य की खुफिया विभाग की प्रमुख थीं, उन्होंने फडणवीस के लिए कम से कम बीसेक राजनीतिक विरोधियों के फोन कॉल ‘चोरी’ से सुने और इस जघन्य अपराध की जांच ठाकरे सरकार के दौरान शुरू हुई। शुक्ला के खिलाफ मामला दर्ज किया गया, लेकिन भाजपा ने विधायकों को खरीदकर महाविकास आघाड़ी सरकार गिरा दी। इसके बाद सत्ता में आए शिंदे -फडणवीस ने आपराधिक स्वरूप कृत्य करने वाली श्रीमती शुक्ला को सीधे राज्य का पुलिस महानिदेशक नियुक्त कर दिया। उह वक्त रश्मि शुक्ला जैसे अधिकारी विपक्ष के ऑडियो क्लिप्स तैयार कर उन्हें फडणवीस को मुहैया कराने का काम कर रहे थे। इसलिए फडणवीस को ‘क्लिप्स’ आदि में काफी रस है। उन्होंने भाजपा अंतर्गत कई लोगों की क्लिप्स बनाई और उनको खत्म कर दिया। यह दुनिया जानती है कि संघ नेता संजय जोशी की फर्जी विवादास्पद क्लिप्स किसने बनाई और प्रसारित की। ‘क्लिप्स’ बनाना और लोगों को ब्लैकमेल करना भाजपा का व्यवसाय है और उनकी राजनीति उसी व्यवसाय पर टिकी हुई है। अनिल देशमुख ने ऐसे क्लिप्स की राजनीति को चुनौती दी है। इतना ही नहीं, हमने फडणवीस पर जो आरोप लगाए हैं, उन्हें साबित करने के लिए हमारे पास वीडियो रिकॉर्डिंग भी हैं। अगर किसी ने हमें चुनौती दी तो हम हर चीज का खुलासा कर देंगे, ऐसी गंभीर चेतावनी भी देशमुख ने दी है। गृहमंत्री फडणवीस के पास देशमुख की कौन सी क्लिप्स हैं उसे उन्हें जारी करनी ही चाहिए। एक बार महाराष्ट्र को भाजपा की विकृति और औकात का पता लगना चाहिए!

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