राज्य में महाविकास आघाड़ी की हार हुई। उस हार की मीमांसा अपने-अपने तरीके से चल रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा दिया। इस नारे ने मतों का ध्रुवीकरण कर दिया। इसलिए, चुनाव के विचार ने एक अलग मोड़ ले लिया, ऐसा श्री शरद पवार ने कहा है। पवार जैसे वरिष्ठ नेता भी यह राय व्यक्त करें यह आश्चर्य की बात है। भाजपा और उसके लोगों ने हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कर चुनाव को प्रभावित किया। उसके चलते जो हुआ सो हुआ। अब इस पर सिर फोड़ने से क्या फायदा? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों ने २८८ विधानसभा क्षेत्रों में ९० हजार बैठकें कीं और हिंदुओं के मन में भय और असुरक्षा पैदा करने का कार्यक्रम पूरा किया। जहां शत-प्रतिशत हिंदू मतदाता हैं, वहां हिंदुओं को डरने की कोई जरूरत नहीं थी। लेकिन डर ऐसा मामला है जो महामारी की तरह फैलता है। महाराष्ट्र में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा चला। तो फिर योगी का ‘कटेंगे’ का नारा झारखंड जैसे आदिवासी राज्य में काम क्यों नहीं आया? झारखंड में आदिवासी हैं और कई इलाकों में वे जंगलों में रहते हैं। ‘बंटेंगे कटेंगे’ का डोज इन कम पढ़े-लिखे लोगों पर बेअसर रहा। मोदी सरकार द्वारा हेमंत सोरेन के साथ किए गए अन्याय के खिलाफ झारखंड की जनता एकजुट हुई और मोदी-शाह के योगी आदित्यनाथ को हरा दिया, लेकिन महाराष्ट्र की पढ़ी-लिखी जनता ‘डर’ गई। ये डर आखिर किससे था? योगी ने हिंदुओं से कहा, एकजुट होकर भाजपा को वोट दो, नहीं तो कत्ल कर दिए जाओगे, ये डर योगी जैसे नेता ने पैदा किया और मोदी ने उस पर ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसा जुमला लगाकर मुकम्मल कर दिया। इस तरह महाराष्ट्र में मतदाताओं को डराया गया। यही प्रयोग झारखंड में किया गया। वहां झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस पार्टी के बीच गठबंधन था। यह गठबंधन विजयी रहा। महाराष्ट्र की जनता को ‘बंटेंगे’ को लेकर कौन सा डर लगा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों को ९० हजार बैठकें लेने की जरूरत क्यों पड़ी? यह एक शोध का विषय है। भाजपा ने सज्जाद नोमानिस के हाथ थामे उद्धव ठाकरे और शरद पवार को लेकर एक वीडियो जारी किया। वह पूरी तरह से झूठ और गुमराह करने वाला था। महाविकास आघाड़ी को हराने के लिए भाजपा को ऐसे खोखला कारोबार करना पड़ा। इसका मतलब साफ है कि भाजपा को जीत का भरोसा नहीं था, लेकिन उन्हें ऐसी कारस्तानियां करनी पड़ी और अंत में धर्म का सहारा लेना पड़ा। यह उनकी विफलता है। कार्ल मार्क्स ने कहा था कि धर्म एक नशा है, एक अफीम की गोली है। संघ के स्वयंसेवकों ने उस अफीम को ९० हजार बैठकों में बांटा। इसमें विभिन्न प्रकार की अफीम की पुड़िया और चूर्ण वितरित किए गए। योगी उत्तर प्रदेश से आए और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अफीम के बीज डाल गए। इसमें नुकसान उठाना पड़ा महाराष्ट्र को। २०१९ में पुलवामा नरसंहार हुआ। इसमें ४० जवानों की जान चली गई। इस हत्याकांड को भी मोदी ने धार्मिक स्वरूप दिया, लेकिन पुलवामा के पीछे असली अपराधी कौन है? वे इसे ढूंढ नहीं सके। कश्मीर के पंडितों की घर वापसी नहीं हो सकी और ऐसा दिखाई भी नहीं देता कि योगी महाराज पंडितों को आधार देने कश्मीर गए, बल्कि ये सभी लोग अफीम के खोके लेकर महाराष्ट्र आए और लोगों का दिमाग खराब कर दिया। देश में हिंदुओं की एकता राज्य में चुनाव का विषय नहीं हो सकती। अगर देश में हिंदू सचमुच असुरक्षित हैं तो उसके लिए मोदी और शाह जिम्मेदार हैं। राज्य उनका है और उन्होंने इसे हिंदुओं को अफीम की गोलियां खिलाकर प्राप्त किया है, लेकिन जब चुनाव आते हैं तो ‘हिंदू असुरक्षित’ या ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का डर दिखाने वाले चुनाव के बाद कहां गायब हो जाते हैं? देश अखंड और एक है। वर्तमान में केरल, आंध्र, तेलंगाना, जम्मू, कर्नाटक, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, असम, दिल्ली, हरियाणा में हिंदू असुरक्षित नहीं हैं। वहां चुनावों की घोषणा होने से करीब एक महीने पहले हिंदू अचानक असुरक्षित हो जाएंगे और संघ की फौजें चुनाव क्षेत्रों में घूम-घूमकर बताएंगी कि अगर हिंदुओं को सुरक्षित जीना हैं तो भाजपा को वोट दें। अगर कोई इस तरह से देश के ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति, प्रगति और एकता का फायदा उठाकर चुनाव जीतेगा तो इस देश का संविधान खतरे में है। यदि महाराष्ट्र में पाशवी बहुमत हिंदुओं को आतंकित करके प्राप्त किया गया है तो हिंदुओं को फिजूल में वीरता की बातें नहीं करनी चाहिए। वीर पुरुषों को जन्म देने वाले हिंदुओं को अफीम की गोलियां देकर नपुंसक बनाया जा रहा है। इसलिए हिंदू खतरे में है। जब तक हिंदुओं को यह एहसास होगा कि भाजपा हिंदुओं को बांटने का काम कर रही है, तब तक हाथ से वक्त गुजर चुका होगा।