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संपादकीय : राम का नया वनवास

राम मंदिर अब भाजपा के काम का नहीं रहा। राम मंदिर का अब राजनीतिक फायदा नहीं रहा। इसलिए ऐसा लगता है कि भाजपा के ‘थिंक टैंक’ यानी समझदारी वितरण महामंडल ने इस मामले को बगल में रखने का फैसला कर लिया है। नरेंद्र मोदी २०२४ चुनाव से पहले राम मंदिर का लोकार्पण करने की जल्दी में थे। लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान वह दुनिया को बताना चाहते थे कि ‘हमने राम मंदिर बनाने का सपना पूरा कर दिया है’ और इसके लिए उन्होंने आधे-अधूरे राम मंदिर पर कब्जा कर बड़े धूमधाम के साथ लोकार्पण समारोह किया। मंदिर के इस दिव्य भव्य इवेंट में दुनियाभर के लोगों, उद्योगपतियों, अभिनेताओं आदि को आमंत्रित किया गया था, लेकिन लोकसभा चुनाव में श्रीराम की कृपा मोदी को नहीं मिल पाई। उत्तर प्रदेश में ही भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। अयोध्या में ही मोदी को हार का सामना करना पड़ा। इसलिए मोदी ने राम का नाम छोड़ अपना मोर्चा ओडिशा के भगवान जगन्नाथ की ओर मोड़ दिया। मोदी के भगवान बदलने से राम मंदिर पर असर पड़ा है और इस वजह से राम मंदिर के पूर्ण होने की कालावधि खिंच गयी है। निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा ने घोषणा की कि अयोध्या में राम मंदिर का काम जून २०२५ तक पूरा करने की योजना थी, लेकिन अब इसमें देरी होगी। मंदिर के काम के लिए कुशल श्रमिक वर्ग की आवश्यकता होती है। उनकी कमी है। दो सौ मजदूरों की कमी है। राम मंदिर के काम के लिए मजदूर नहीं मिल रहे थे और इस वजह से मंदिर निर्माण में देरी हुई। क्या किसी को यह नहीं लगता कि यह हिंदू धर्म का घोर अपमान है? भाजपा शासनकाल में हिंदू स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा ढह कर गिर जाती है और अयोध्या में राम मंदिर का काम अपने पूर्णत्व को प्राप्त नहीं हो पाता। इसे कैसा हिंदुत्व कहा जाए? राम मंदिर में देरी की वजह मजदूरों की कमी बताई जा रही है। जिस राम मंदिर के निर्माण के लिए संघ परिवार ने २५-३० साल तक पत्थर तराशने का काम अपने हाथों में लिया था, उसे मजदूरों की कमी हो रही है? अयोध्या में कारसेवा के लिए लाखों रामभक्त जुटते थे और अब मोदी काल में मंदिर के लिए २०० मजदूर नहीं मिल रहे? राम सेतु बनाने के लिए वानर आगे आए और यहां मंदिर के लिए मजदूर नहीं मिल रहे। मोदी युग में हिंदुत्व की ऐसी दशा नजर आ रही है। मंदिर का लोकार्पण होते ही पहली बारिश में गर्भगृह से पानी टपकने लगा। इसलिए मंदिर के पुजारियों को राम के ऊपर छाता लेकर खड़ा होना पड़ा। अब इस रिसाव को रोकने के लिए मंदिर की छत के पत्थरों को बदलना होगा। केवल छह महीने में ही मंदिर की यह हालत क्यों? मंदिर की अभी तक घेराबंदी नहीं की गई है। बाड़ लगाने के लिए ८.५ लाख घन फीट लाल ‘बंसी पहाड़पुर’ पत्थर पड़े हैं, लेकिन मजदूर न मिलने के कारण इन पत्थरों के ढेर ही अयोध्या में लगे पड़े हैं। मंदिर पूर्ण क्यों नहीं हुआ? इसकी वजह ये है कि भाजपा के साथ-साथ मोदी का भी मंदिर से ध्यान भटक गया है। मजदूर आदि की कमी, ये सब बहाने हैं। सभागृह, बाड़, प्रदक्षिणा मार्ग का काम शुरू ही नहीं हुआ। मूर्ति को मंदिर में लाकर एक राजनीतिक उत्सव मनाया जाना था। सिर्फ इतने के लिए ही आनन-फानन में निर्माण कार्य निपटाया गया और मोदी उस दौरान अपना काम कर गए। चारों शंकराचार्यों और धर्माचार्यों ने मंदिर के लोकार्पण का बहिष्कार किया। शंकराचार्यों ने कहा कि आधे-अधूरे बने मंदिर का लोकार्पण करना हिंदू धर्म शास्त्र के विरुद्ध है, लेकिन उस समय मोदी खुद शंकराचार्य बन गए और पूरा देश मोदी को भगवान श्रीराम की उंगली पकड़कर मंदिर तक ले जाते हुए दिखाने वाले पोस्टरों से रंग गया। भाजपा ने मंदिर ट्रस्ट पर अपने लोगों को बिठाकर अयोध्या पर कब्जा करने की भी कोशिश की, लेकिन लोकसभा चुनाव में हार के बाद मंदिर की राजनीति ध्वस्त हो गई। मंदिर निर्माण के बाद इसका प्रभाव आठ दिन भी नहीं टिक सका और लोकसभा में योगी के साथ-साथ मोदी और मंदिर की राजनीति भी चक्रव्यूह में फंस गयी। राम मंदिर पर राजनीति नहीं चलने वाली, ये कहने के बाद मोदी-शाह के मुंह से राम नाम निकलना भी बंद हो गया। लोकसभा नतीजे के बाद मोदी एक बार भी अयोध्या नहीं गए हैं। जिस राम मंदिर का जप मोदी अष्टौप्रहर कर रहे थे, उन्होंने राम का नाम ही छोड़ दिया ये कैसा असर है? राम मंदिर निर्माण में मोदी की ‘राजनीतिक दिलचस्पी’ खत्म होने का नतीजा ये हुआ कि राम मंदिर का काम रुक गया। मोदी साहब ने भगवान बदला तो भाजपा ने भगवान को बदल दिया। इससे यह भय उत्पन्न हो गया है कि कहीं श्रीराम पुन: वनवासी तो नहीं बन जाएंगे। जिन लोगों ने यह शंख फूंका था कि मोदी के कारण श्रीराम को निवास मिला, वे अब गायब हो गए हैं। राम की निवास व्यवस्था अपर्याप्त है। राम की छत टपक रही है और घर में कोई बाड़ नहीं है। दरबार का काम भी अधूरा है। अत: श्रीराम की स्थिति विकट हो गई। दिल्ली के राजा द्वारा भगवान बदलने का असर अयोध्या के राजा पर पड़ा है। भाजपा को अब श्रीराम की जरूरत नहीं रही! क्या राम का नया वनवास शुरू हो गया है?

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