मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय : रतन टाटा अमर हैं... देवदूत का देवलोक प्रयाण!

संपादकीय : रतन टाटा अमर हैं… देवदूत का देवलोक प्रयाण!

हिंदुस्थान के ताज का सबसे मूल्यवान रत्न खो गया है। हां, उद्योगपति रतन टाटा हिंदुस्थान के ताज का सबसे कीमती रत्न थे, एक असाधारण, अनमोल रत्न। बुधवार रात रतन टाटा के निधन की खबर आई, गुरुवार को उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया; लेकिन मन अब भी इस बात पर यकीन करने की हिम्मत नहीं कर पाता कि रतन टाटा चले गए। हिम्मत वैâसे करें? क्योंकि टाटा का दूसरा पर्याय है विश्वास! इसी विश्वास की ही मौत हो गई है हम यह वैâसे मान लें? घरों तक पहुंचे टाटा ने हिंदुस्थान की जनता की पूरी दुनिया को समाहित कर लिया था। इसीलिए आज सारा देश गमगीन है। यह यूं ही नहीं है। देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत रतन टाटा ने न सिर्फ अपने व्यवहार से देशवासियों का दिल जीता है, बल्कि विश्वास के प्रतीक दो अक्षर ‘टाटा’ सभी हिंदुस्थानियों के दिलो-दिमाग पर छाए हुए हैं। उनमें से हर एक मन आज व्याकुल है। अन्यथा किसी उद्योगपति की मौत पर कोई दो-चार आंसू क्यों बहाएगा? यह सौभाग्य रतन टाटा जैसा ईमानदार, अत्यंत सज्जन और सदाचारी उद्यमी ही प्राप्त कर सकता है। रतन टाटा ने जेआरडी टाटा द्वारा स्थापित औद्योगिक साम्राज्य की इमारत को एक सुंदर परिणति प्रदान करते हुए शिखर तक पहुंचने की अपार उपलब्धि हासिल की है। अहम बात यह है कि टाटा ने उद्योग जगत में इस प्रगति के लिए कभी शॉर्टकट नहीं अपनाया। उन्होंने कभी जी-हजूरी नहीं की, शासक के सामने नहीं झुके। सरकार किसी भी दल की रही हो वे उनके सामने कभी भी रेंगते नजर नहीं आए। टाटा ने अपने पूरे जीवन में कभी भी नैतिकता को खूंटी पर लटकाकर अपने उद्योगों का विस्तार करने का गंदा कारोबार नहीं किया। रतन टाटा ने देश के सामने यह आदर्श पेश किया कि धोखाधड़ी और झूठ बोले बिना भी उद्योग सफल हो सकते हैं। ईमानदार उद्यमी यही उनकी सर्वोच्च पहचान थी। इसी निष्ठा के कारण ही वे एक अत्यंत ईमानदार औद्योगिक समूह के रूप में विश्व में अपना समग्र औद्योगिक साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुए हैं। रतन टाटा ने हर जगह अपना व्यापारिक साम्राज्य पैâलाया। टाटा मोटर्स, एयर इंडिया, ताज होटल्स, ताज विवांता, टाटा वैâपिटल, क्रोमा, टाटा एआईजी, टाइटन, तनिष्क, टाटा आईप्लस, फास्ट्रैक, स्टारबक्स, टाटा कॉफी, बिग बास्केट, टाटा टी, टाटा साल्ट आदि जैसे अनेक ब्रांड को लोकप्रिय बनाने में रतन टाटा की महत्वपूर्ण भूमिका रही। आज टाटा देश का सबसे बड़ा व्यापारिक और औद्योगिक समूह है। नमक, चाय से लेकर हवाई जहाज तक, ट्रकों और बसों से लेकर कारों तक, आभूषणों से लेकर कपड़ों तक, रसोई के मसालों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक और कलाई घड़ियों से लेकर आईटी कंपनियों तक सभी क्षेत्रों को कवर करते हुए, टाटा देश के हर घर तक पहुंच गए। टाटा ने हिंदुस्थान ही नहीं, पूरी दुनिया में अपने ब्रांड का दबदबा बनाया। हिंदुस्थान का टाटा उद्योग समूह दुनिया भर में नौ लाख लोगों को रोजगार देता है, यह कितनी गौरवास्पद बात है! दूरदर्शी रतन टाटा ने पहले ही भांप लिया था कि सूचना प्रौद्योगिकी का क्षेत्र भविष्य में क्रांति लाएगा और उन्होंने एक आईटी कंपनी टीसीएस यानी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज की स्थापना की। आज टीसीएस दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है। आज अकेले टीसीएस कंपनी में छह लाख से ज्यादा इंजीनियर और कर्मचारी काम कर रहे हैं। करोड़ों लोगों का घर-संसार चलाने वाले रतन टाटा की जगह कोई और होता तो गर्व से सीना चौड़ा कर उपकार करने की बातें करता रहता। लेकिन विनम्र टाटा को कभी भी गर्व जैसे शब्द ने छुआ ही नहीं था। पिछले साल टाटा उद्योग समूह ने एक वित्तीय वर्ष में १० लाख करोड़ रुपए का राजस्व अर्जित कर कमाई के मामले में रिकॉर्ड बनाया था। एक उद्योगपति केवल दो शब्द जानता है नफा और नुकसान, लेकिन सिर्फ मुनाफाखोरी टाटा का उद्देश्य कभी नहीं था। अपने ८६ वर्ष के जीवन में यह देशभक्त उद्यमी स्वतंत्रता संग्राम में योगदान से लेकर सामाजिक कार्यों तक हमेशा सबसे आगे रहे। वे दान करते थे, लेकिन इस तरह कि दान की खबर एक हाथ से दूसरे हाथ तक को नहीं लगती थी। देश की जनता के साथ करुणा और स्नेह का रिश्ता रखनेवाले टाटा ने कोरोना संकट के दौरान हजारों करोड़ रुपए का दान दिया। उन्होंने मुंबई में टाटा मेमोरियल जैसा देश का सबसे बड़ा वैंâसर स्पेशलिटी अस्पताल स्थापित किया। आज देश के कुल वैंâसर रोगियों में से १० प्रतिशत का इलाज अकेले टाटा अस्पताल में होता है। रतन टाटा न केवल एक उद्यमी और एक इंसान के रूप में महान थे, बल्कि कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी से जूझ रहे मरीजों के लिए भी वह देवदूत थे। वह देवदूत ही अब स्वयं देवधाम चला गया है। अपने उद्योगों की यशोपताका को पूरी दुनिया में पैâलाने वाले रतन टाटा अगर चाहते तो वे दशकों पहले ही दुनिया के सबसे अमीर आदमी बन गए होते, लेकिन इस अमीरी के बाजारू और दिखावटी प्रदर्शन पर उनका मन कभी नहीं भटका। देश के संसाधनों पर भी वे कभी भकोस बनकर नहीं टूट पड़े। रतन टाटा ने ईमानदारी, विश्वास और सत्यनिष्ठा के त्रिसूत्र पर ही अपने व्यापारिक साम्राज्य का विस्तार किया। रतन टाटा चले गए यानी विश्वास खत्म हो गया। टाटा के जाने से विश्वास का अधिराज्य ही खत्म हो गया है। इसलिए कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरा देश जाति-धर्म की सारी दीवारें लांघकर शोक में डूब गया है। हिंदुस्थान का वह देशभक्त देवदूत, जिसका हृदय अंदर और बाहर से पवित्र था, खो गया। मृत्यु के बाद भी प्रेरणादायक रतन टाटा अमर हैं!

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