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संपादकीय : रुपए की चड्ढी खिसकी!

जब देश में कांग्रेस का शासन था तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी से रुपए का अवमूल्यन देखा नहीं जा रहा था। डॉलर के मुकाबले रुपए का अवमूल्यन देख उनका राष्ट्रवाद उछाल मारने लगता था। मोदी कहते थे, ‘जैसे-जैसे रुपए की कीमत गिरती है, भारत की प्रतिष्ठा भी गिरती है, लेकिन कांग्रेस को भारत की प्रतिष्ठा की चिंता नहीं है।’ जब मोदी रुपए की गिरावट से चिंतित थे, तब वैश्विक बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया ६० पर था और आज मोदी युग में डॉलर के मुकाबले रुपया ८७ पर पहुंच गया है। इसका मतलब है कि कांग्रेस के मुकाबले मोदी काल में भारत की साख और रुपया सबसे ज्यादा गिरा है। फिर भी मोदी के अंधभक्त डंका पीट रहे हैं कि वे विश्व गुरु हैं। मोदी के अंधभक्त हर क्षेत्र में हैं। इनमें अक्षय कुमार, अनुपम खेर, जूही चावला जैसे फिल्म कलाकार भी शामिल हैं। २०१३ में १ डॉलर ६० रुपए के बराबर था और रुपए की गिरावट देखकर जूही चावला बेजार थीं। उस वक्त जूही चावला ने रुपए को लेकर चिंता जताते हुए एक जोरदार ट्वीट किया था। ‘भगवान का शुक्र है, हमारे अंडरवियर (यानी चड्ढी) का नाम ‘डॉलर’ है। अगर चड्ढी का नाम ‘रुपया’ होता, तो यह बार-बार नीचे गिरता रहता।’ आज एक डॉलर की कीमत ८६.६० पर पहुंच गई है। यह सबसे कम है। जूही चावला अब कहां हैं? अब नहीं गिर रही सिनेमा वालों की ‘चड्ढी’? एक अन्य ट्वीट में जूही चावला ने चुटकी लेते हुए कहा कि रुपया का खुद को बचाने का एकमात्र तरीका डॉलर को राखी बांधना है। तो अब जूही चावला सबसे कम स्तर पर पहुंचे रुपए को बचाने के लिए डॉलर को संक्राति के पतंग का मांझा बांधने के लिए कहेंगी? देश की आजादी के बाद एक
डॉलर की कीमत
एक रुपए के बराबर थी। आज एक डॉलर के लिए करीब ८७ रुपए देने पड़ रहे हैं। इसका मतलब है कि भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है और देश में वित्तीय अराजकता मची है। यह सीधा-सादा अर्थशास्त्र है कि जब देश पर कर्ज बढ़ जाता है और खजाना खाली हो जाता है तो वैश्विक बाजार में रुपया गिर जाता है। रुपए के अस्थिर होने का सीधा मतलब यह है कि भारत में विकास की गति धीमी हो गई है और सरकार विकास कार्य करने में पीछे रह गई है। कहा जा रहा है कि भारत भविष्य में पांच ट्रिलियन डॉलर की सुपर इकोनॉमी बन जाएगा। भारत में विदेशी निवेश आएगा और रोजगार बढ़ेगा और गरीबी दूर होगी, ऐसे भाषणों से कान पक गए हैं। केंद्र सरकार जब देश के ८५ करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देती है तो उनका दो वक्त का चूल्हा जलता है। नौकरियां तो बाजार से उठ ही गई हैं। पंजाब के किसानों ने कृषि उपज का बाजार मूल्य पाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया है। यह माहौल उत्साहवर्धक नहीं है। केवल एक-दो उद्योगपति ही सरकार की कृपा से फल-फूल रहे हैं और बाकी की आर्थिक नाड़ियां कसी जा रही हैं। देश का वातावरण उद्योग व्यापार के लिए स्वच्छ एवं स्वतंत्र नहीं रहा। पिछले दस वर्षों में भारत से पांच लाख मझोले उद्यमी और निवेशक विदेशों में जाकर बस गए हैं इसलिए यह कहना गलत है कि निवेश विदेश से आ रहा है। इन सबका असर रुपए पर पड़ता है और उसका अवमूल्यन होता है। यह दावा कि वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से रुपए पर असर पड़ता है, सच नहीं है। तेल की कीमतें स्थिर होने के बावजूद रुपए की कीमत में बढ़ोतरी नहीं हुई। रुपया कमजोर होने से ‘आयात’ महंगा हो गया। डॉ. मनमोहन सिंह के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को ठीक करनेवाला कोई योद्धा नहीं हुआ। दस साल में मोदी ने
कमजोर लोगों
को वित्तमंत्री के पद पर विराजमान किया। उन्होंने अर्थव्यवस्था का सत्यानाश कर दिया। मोदी द्वारा लागू की गई नोटबंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया में हंसी का पात्र बना दिया और रुपए की कीमत हमेशा के लिए खराब हो गई। भारतीय मुद्रा में अभी भी बड़े पैमाने पर नकली नोटों का चलन है और विदेशी बैंकों में काला धन बड़ी मात्रा में है। देश की अर्थव्यवस्था प्रवाही नहीं रही, बल्कि पोखर बन गई है। जो कोई भी यह दावा करता है कि यह पोखर पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है, वे मूर्खों के नंदनवन में हैं। कुंभ समारोह, राम मंदिर के उद्घाटन, मस्जिदों की खुदाई पर हजारों करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। चुनाव जीतने के लिए हजारों-करोड़ की ‘मुफ्त रेवड़ी’ योजनाओं की घोषणा की जाती है। इसमें ‘लाडली बहन’ जैसी योजनाएं हैं। इन सभी योजनाओं के लिए ऋण की आवश्यकता होती है। उस कर्ज पर देश की गाड़ी हांकी जा रही है। रुपए के अवमूल्यन का यही मुख्य कारण है। भारत में विदेशी निवेश बंद हो गया है और जिन लोगों ने निवेश किया था, उन्होंने इसे वापस ले लिया है और फिर से अमेरिकी खजाना भरने में लग गए हैं। अगर रुपए की कीमत इसी तरह गिरती रही तो भारतीय उद्यमियों के लिए विदेशी मुद्रा हासिल करना मुश्किल हो जाएगा। जिनके बच्चे विदेश में पढ़ रहे हैं, उनका बजट बिगड़ जाएगा। विदेश के छात्रों को भारत से अधिक रकम भेजनी पड़ेगी। पीएम मोदी अपने विदेशी दौरे जारी रखेंगे, लेकिन आम भारतीयों की हालत और खराब हो जाएगी। रुपए का अवमूल्यन चिंताजनक है, यह कोई तो जूही चावला को बताए, जिन्होंने २०१३ में रुपए की गिरावट को लेकर ‘ट्वीट-ट्वीट’ खेला था और ‘डॉलर’ अंडरवियर का उदाहरण देकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार की आलोचना की थी। क्या ‘डॉलर’ अंडरवियर का उत्पादन बंद हो गया है? ये जूही चावला को स्पष्ट करना चाहिए! देश की अर्थव्यवस्था की ‘चड्ढी’ साफ तौर पर खिसक गई है। ये संकेत हैं कि देश टूट रहा है!

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