सिर्फ मुंबई ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य में कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ गई हैं। अभिनेता सैफ अली खान और उनकी पत्नी करीना कपूर बांद्रा की सबसे सुरक्षित बिल्डिंग में रहते हैं। एक व्यक्ति इमारत में घुसता है, अभिनेता सैफ के घर तक पहुंच जाता है, सैफ और उनके सहकर्मियों पर अंधाधुंध चाकू से हमला कर भाग जाता है, जिसका मतलब है कि हमलावर सैफ और उनके परिवार के लिए अनजाना नहीं था। तो क्या सैफ पर हमले को कानून-व्यवस्था से जुड़ा मान लिया जाए? इसको लेकर असमंजस की स्थिति है। सैफ पर हुए हमले पर विपक्ष ने सवाल उठाए तो मुख्यमंत्री फडणवीस ने टका सा जवाब दिया। ‘पुलिस जांच कर रही है, हम गहराई से जांच करेंगे, हम किसी को नहीं छोड़ेंगे, यूं ही मुंबई को बदनाम मत करो’, ये उनके जवाब हैं। उनका कुल मिलाकर रुख यह है कि ऐसी घटनाएं मुंबई जैसे शहरों में होती हैं, लेकिन मुंबई में ऐसी घटनाएं हर दिन होने लगी हैं और किसी को भी कानून का डर नहीं रहा। बैंक प्रâॉड व अन्य अपराधों का एक आरोपी फडणवीस के ‘सागर’ बंगले में आता है और महागठबंधन की जीत की खुशी में फडणवीस को अपने कंधों पर उठा लेता है। फडणवीस उसे पेड़ा खिलाते हैं। वही अपराधी सोशल मीडिया में एक्टिव गजाभाऊ नामक एक मराठी माणुस को उठाने की बात करता है और फडणवीस दिखावा करते हैं कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं। बीड़ में मोका आरोपी के समर्थन में लोग सड़कों पर उतरते हैं, धमकियां देते हैं और उस सरपंच देशमुख की हत्या का मास्टरमाइंड कैबिनेट में बैठता है, ऐसी तस्वीर कानून के डर का नहीं होना जैसा है। इसलिए मुंबई में जो किया जा रहा है वह
महाराष्ट्र की छवि
के अनुकूल नहीं है। बाबा सिद्दीकी की मुंबई की सड़कों पर हत्या कर दी गई। बलात्कार, कोयता गैंग ने पुणे के जनजीवन को आतंकित कर दिया। नागपुर में यौन उत्पीड़न के मामले बढ़े हैं। ये सब देखकर क्या फडणवीस के भीतर का गृहमंत्री नहीं जागता? सैफ अली खान पर हुआ रहस्यमयी हमला मुंबई की खस्ताहाल व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है। सैफ के मामले में जो हुआ वह मुंबई के चॉल और झोपड़पट्टियों में हर दिन हो रहा है, लेकिन चूंकि सैफ तैमूर के पिता हैं, इसलिए इस घटना की छुरी हर किसी के कलेजे में घुस गई। १५ दिन पहले कपूर परिवार और उनके दामाद सैफ ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की और बातचीत की। मोदी ने चिरंजीव तैमूर के बारे में खास पूछताछ की। सैफ मोदी से मिलकर खुश थे, लेकिन १५ दिन के अंदर ही सैफ पर जानलेवा हमला हुआ। एक दिन पहले प्रधानमंत्री मुंबई में थे और उसी वक्त सैफ खून से लथपथ होकर गिर पड़े। क्या कोई मुंबई के सिने जगत को दहलाने की कोशिश कर रहा है? या सैफ पर हमला निजी कारणों से हुआ था। भाजपा के लोग सैफ पर ‘लव जिहाद’ का हमला कर ही रहे थे, लेकिन जैसे ही प्रधानमंत्री ने ही सैफ, करीना और तैमूर को भर-भराकर आशीर्वाद दिया, ‘लव जिहाद’ सुखद परिणाम में बदल गया और मंत्री आशीष शेलार खुद सैफ से मिलने और सब कुछ ठीक-ठाक करने के लिए अस्पताल गए। क्योंकि सवाल है तैमूर और उनके पिता की सुरक्षा का। आखिर, मुंबई में क्या चल रहा है? क्या मुंबई सुरक्षित है? एक बार लोगों को समझने दें कि मुंबई की सुरक्षा रामभरोसे है। सैफ अली खान पर हमला पुलिस की
कार्यकुशलता पर संदेह
पैदा करता है। पुलिस बल में नियुक्तियां पुलिस की कार्यकुशलता के बजाय इस आधार पर दी जाती है कि वे भाजपा के करीबी हैं या नहीं। इसलिए मुंबई के साफ-साफ बारह बज गए हैं। सैफ अली खान पर हुए हमले से कानून-व्यवस्था कितनी हिल गई ये तो पता नहीं, लेकिन मुंबई सुरक्षित नहीं है इस बात पर मोहर लग गई है। मुंबई का आधे से ज्यादा पुलिस फोर्स गद्दार विधायकों और उनकी सुरक्षा व्यवस्था में तैनात है। और फिर, केंद्र की ‘वीआईपी’ मंडली हर दिन मुंबई का दौरा करती है, जिससे पुलिस पर दबाव बढ़ जाता है। पुलिस को न छुट्टी है, न आराम। गधे की तरह उनका बोझ लादकर मुंबई की रक्षा करने के लिए कहना सही नहीं है। गृहमंत्री बुद्धिमान हैं और बुद्धिमानों से अच्छे काम की उम्मीद की जा सकती है। सैफ अली पर हमला तो एक निमित्त है। इसके चलते पुलिस को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करना होगा। यदि पुलिस का मनोबल बढ़ाना है तो गृहमंत्री को सबसे पहले अपने आसपास के राजनीतिक अंडरवर्ल्ड को दूर करना चाहिए और मंत्रियों, विधायकों (स्वपक्षीय) को भी ऐसा करने के लिए कड़ी ताकीद देनी चाहिए। सैफ एक अभिनेता हैं। उनके पिता मंसूर अली पटौदी भारतीय क्रिकेट का गौरव थे। मां शर्मिला टैगोर भी भारतीय सिनेमा में एक बड़ा नाम हैं। सैफ को खुद भारत सरकार ने ‘पद्म’ पुरस्कार से सम्मानित किया है। खुद प्रधानमंत्री मोदी भी उनके दीवाने थे। सैफ के घर में उन्हें चाकू मारने की घटना जितनी चौंकाने वाली है उतनी ही रहस्यमयी है। जानलेवा हमलावर का सभी सुरक्षा प्रणालियों को भेदकर घर में घुसना फिर भाग जाना और गायब हो जाना इस सस्पेंस को और बढ़ा देता है। पुलिस को इस सस्पेंस को खत्म करना है। दया करो, कुछ तो करो!