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संपादकीय : चौंकाने वाली, ट्रंप की जीत

डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर विराजेंगे। वे जनवरी २०२५ में एक बार फिर अमेरिका जैसे वैश्विक महासत्ता के ४७वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगे। कहा जा रहा था कि डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस से उनकी कड़ी टक्कर होगी, लेकिन वोटों की गिनती की शुरुआत से ही ट्रंप ने हैरिस पर विजयी बढ़त बना ली और यह अंत तक बनी रही। यहां तक ​​कि अमेरिका के जिन सात राज्यों को ‘स्विंग स्टेट्स’ कहा जाता है, वहां भी कमला हैरिस का जादू कुछ खास नहीं चल पाया। इसके उलट, रिपब्लिकन पार्टी ने पेंसिल्वेनिया और जॉर्जिया के दो राज्यों पर डेमोक्रेटिक पार्टी का नियंत्रण खत्म कर दिया। यह सच है कि कमला हैरिस ने आक्रामक तरीके से प्रचार किया, लेकिन यह कहना होगा कि अमेरिकी मतदाताओं को उनके मुकाबले श्रीमान ट्रंप के मुद्दे अधिक भाए। श्रीमान ट्रंप ने अंतत: २०२० की हार का बदला ले ही लिया। उस वक्त उन्हें डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडेन से हार का सामना करना पड़ा था। इस बार भी शुरुआत में ऐसा लगा था कि दोनों पूर्व राष्ट्रपतियों बाइडेन और ट्रंप के बीच मुकाबला होगा। लेकिन जुलाई में, श्री बाइडेन ने चुनावी मैदान से हटने और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ाने की समझदारी दिखाई। बेशक, यह साफ था कि बाइडेन का यह देर से आया ज्ञान हैरिस के लिए दिक्कत साबित होगा। ‘मुखदुर्बल’ बाइडेन ने तब तक प्रचार के दौरान कई गलतियां कीं। उनकी शारीरिक और मानसिक कमजोरी अमेरिकी मतदाताओं और दुनिया के सामने सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित थी। यहां तक ​​कि सबसे महत्वपूर्ण ‘चर्चा दौर’ में भी उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी अनभिज्ञता प्रदर्शित की। इससे रिपब्लिकन पार्टी की नकारात्मक छवि बनी। कमला हैरिस के सामने इस अंतर को भरने और ट्रंप पर बढ़त बनाने की चुनौती थी, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो सकीं। इसमें ट्रंप ने अपने ऊपर हुए घातक हमले और उनके बच निकलने का उचित राजनीतिक लाभ उठाया। हैरिस और उनकी पार्टी ट्रंप द्वारा गरमाए गए आव्रजन मुद्दे को प्रभावी ढंग से ठंडा नहीं कर पाई है। कमला हैरिस का स्वयं एक भारतीय होना, यानी उनकी ‘अप्रवासी’ के रूप में छवि, शायद हैरिस के आड़े रही। भूमिपुत्र और उनके अधिकार, बाहरी लोगों की आफत जैसे भावनात्मक मुद्दों ने ट्रंप की राह को आसान बना दिया। अमेरिका में महंगाई की आग का खामियाजा सत्तारूढ़ कमला हैरिस को भी भुगतना पड़ा। दरअसल, अगर कमला हैरिस जीत जातीं तो उन्हें अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति होने का गौरव मिलता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। २०१६ के राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी क्लिंटन ने ट्रंप को कड़ी टक्कर दी, लेकिन उन्हें हार स्वीकारना पड़ा। अब २०२४ में कमला हैरिस को भी उन्हीं ट्रंप ने हरा दिया। अमेरिकी लोकतंत्र और उसके मतदाताओं के बारे में कहा जाता है कि वे बहुत परिपक्व हैं, लेकिन जिस ट्रंप को अमेरिकी जनता ने पहले कार्यकाल में एक लफ्फाज के तौर पर इकराम किया था, उन्हीं लोगों ने बहुमत के साथ उन्हें राष्ट्रपति पद सौंप दिया। पिछली बार हार सामने आते ही डोनाल्ड ट्रंप पर चुनाव प्रक्रिया में धांधली कर नतीजों को पलटने की कोशिश करने का आरोप लगा था। पिछले साल एक पोर्न स्टार को गुप्त रूप से भुगतान करने के आरोप में सज्जन को जेल की नौबत आ गई थी। २०२० में अपनी हार के बाद ६ जनवरी २०२१ को ट्रंप समर्थकों ने ‘यूएस वैâपिटल बिल्डिंग’ पर हमला कर दिया, जिसका ट्रंप ने समर्थन किया था। इतना ही नहीं, ट्रंप ने प्रचार अभियान के दौरान सार्वजनिक रूप से यह वादा भी किया था कि वह चुने जाने के बाद पहले ही दिन उस मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों को ‘मुक्त’ कर देंगे। अमेरिकी मतदाताओं ने उसी ट्रंप के लिए व्हाइट हाउस के दरवाजे दूसरी बार खोल दिए हैं। ट्रंप, जो लफ्फाज, घमंडी, तानाशाह, अक्खड़, सनकी और उथले जैसे कई विशेषणों से नवाजे जा चुके हैं। जनवरी, २०२५ में संयुक्त राज्य अमेरिका के ४७ वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगे। भले ही यह मान लिया जाए कि लोकतंत्र में मतदाताओं का जनादेश ही अंतिम होता है, लेकिन ट्रंप की जीत का जिक्र अमेरिका के राजनीतिक इतिहास में चौंकाने वाले नतीजे के तौर पर ही होगा!

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