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संपादकीय : संदिग्ध और रहस्यमय! …आखिरकार, महाराष्ट्र को पायदान बना ही दिया!!

सब ही मान चुके हैं कि महाराष्ट्र के नतीजे अनाकलनीय हैं। इन सब में खुद देवेंद्र फडणवीस भी शामिल हैं। फडणवीस ने स्वीकार किया कि वे भी भाजपा और उसके सहयोगियों को मिली छप्परफाड़ सीटें देखकर हैरान थे। महाराष्ट्र की ‘विजय’ उन सभी के लिए अभूतपूर्व है, लेकिन क्या विजयवीर इस विजय को विनम्रता से झेल पाएंगे? नतीजे संदिग्ध और रहस्यमय हैं, फिर भी उसे लोकतंत्र के कौल यानी जनादेश आदि मानकर स्वीकार करना पड़ता है। भाजपा ने १४९ सीटों पर चुनाव लड़ा और १३२ सीटें जीतीं। उनका स्ट्राइक रेट क्या कहते हैं वो सनसनीखेज है। राजनीति के विद्वानों को इस पर विशेष शोध करना होगा। लोकसभा में भाजपा का यह ‘रेट’ करीब ३२ फीसदी था, जो चार महीने में बढ़कर ८८.५९ फीसदी हो गया। यह वैसा ही है जैसे जब अमेरिका में भ्रष्टाचार और लोफरगीरी के अपराध में अदालत ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया तो मुंबई के शेयर बाजार में अडानी के भाव बढ़ गए, चूंकि मोदी है तो सब कुछ मुमकिन है इसलिए इन रहस्यमय नतीजों को स्वीकार करना पड़ता है। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की रसद तैनात की गई और संघ ने महाराष्ट्र चुनाव के सूत्र अपने हाथों में ले लिए। इसके अलावा, भाजपा ने गुजरात से महाराष्ट्र में ९० हजार लोगों की फौज उतारकर जीत के लिए गुजरात मॉडल का इस्तेमाल किया। ये खुलासा खुद पंकजा मुंडे ने किया है। महाराष्ट्र में पडोसी राज्य गुजरात से लाखों लोग आते हैं और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में ताल ठोक कर जम जाते हैं। इसका अर्थ क्या समझा जाए? (कुछ लोग कहते हैं कि यहां के चुनाव में इस्तेमाल की गई ‘ईवीएम’ भी गुजरात से लाई गई थी।) दो राज्यों में चुनाव हुए। झारखंड का पैâसला हेमंत सोरेन के पक्ष में हुआ और मोदी-शाह की बिजनेस लॉबी ने महाराष्ट्र जैसे बड़े और राजनीतिक व आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य पर ‘कब्जा’ कर लिया है। कोई भी विश्वास नहीं करेगा कि इस मंडली ने लोकतांत्रिक तरीकों से महाराष्ट्र राज्य जीता। प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली में भाजपा दफ्तर जाकर जयघोष किया। वे कहते हैं, ‘महाराष्ट्र में नकारात्मक राजनीति की हार हुई है। सच्चे सामाजिक न्याय की जीत हुई है। झूठ, कपट, विभाजनकारी ताकतें, वंशवाद की हार हुई है।’ प्रधानमंत्री मोदी का ये बयान वास्तव में किसके लिए है? मूलत: इस चुनाव में भाजपा के कई घराने मैदान में थे। अगर प्रधानमंत्री मोदी को वंशवाद की सूची चाहिए तो उन्हें नारायण राणे, उदय सामंत, आशीष शेलार आदि जैसे अपने लोगों से लेनी चाहिए। मोदी और उनके लोगों ने महाराष्ट्र में नकारात्मक प्रचार किया। संघ के प्रचारक घर-घर जाकर लोगों के मन में नफरत का जहर घोल रहे थे। प्रचार का स्तर बुरी तरह गिराकर महाराष्ट्र की छवि खराब की गई। यह कहना कि महाराष्ट्र मोदी के साथ खड़ा है, भ्रामक है। वहीं प्रियंका गांधी ने केरल के वायनाड में चार लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की, वहां मोदी का जादू क्यों नहीं चला? वहां के मतदाता भी तो भाजपा के ही नागरिक हैं न? पड़ोसी राज्य कर्नाटक में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने सभी सीटें जीत लीं। नांदेड़ लोकसभा उपचुनाव में भी कांग्रेस ने जीत हासिल की। वहां उनका जादू क्यों नहीं चला? मोदी-शाह-फडणवीस ने महाराष्ट्र में नफरत के बीज बोए, जाति-धर्म में खाई पैदा की और वोट बांटने के लिए छोटी-छोटी पार्टियों को सुपारी देकर अपना काम साधा। इसे ही भाजपा की जीत का ‘फॉर्मूला’ कहा जा सकता है। साथ में ढेर सारा पैसा और सरकारी मशीनरी थी इसलिए जीत की राह के गड्ढे दूर हो गए। बालासाहेब थोरात, पृथ्वीराज चव्हाण, यशोमति ठाकुर, आडाम मास्टर, कॉमरेड जीवा पांडु गावित, वैभव नाईक, राजन सालवी जैसे जनोन्मुखी उम्मीदवार और नेता हार जाते हैं और कई ‘ऐरे- गैरे’ उम्मीदवार जिताए जाते हैं। ये कमजोर मान मर्यादा वाले जिनमें स्वाभिमान की कोई भावना नहीं है, उन्हें मोदी समर्थक के रूप में चुना गया। वे महाराष्ट्र के संकट से वैâसे सामना करेंगे? महाराष्ट्र की हालत गुजरात के रास्ते में पायदान सी हो गई है और ऐसे कई पायदान पैसे की ताकत से चुने गए हैं। भारतीय जनता पार्टी और उसके शिंदे जैसे घातियों को इसमें सूरमापन लग रहा है और उनके चेहरे पर उस तरह की संतुष्टि झलक रही है। मोदी कहते हैं कि भाजपा ने महाराष्ट्र में ऐतिहासिक आदि कार्य किया है। अगर किसी को इस बात की खुशी है कि महाराष्ट्र की मर्दानगी और स्वाभिमान को खत्म कर शिवराया के महाराष्ट्र को थैलीवालों के पैरों का दास बना दिया गया है तो वे खुशी से जीत की जलेबियां खाएं, लेकिन महाराष्ट्र अपना लड़ाकू तेवर और आन-बान नहीं छोड़ेगा। फिलहाल इतना ही!

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