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संपादकीय :  सैयद आदिल हुसैन शाह …जय हिंद!

सैयद आदिल हुसैन शाह कश्मीर में हिंदू पर्यटकों की जान बचाते हुए शहीद हो गए। सैयद के पिता ने कहा, ‘मेरा बेटा चला गया। उसका परिवार बेसहारा हो गया है। देखते हैं हमारी आगे की जिंदगी में क्या होता है, लेकिन मेरे बेटे ने जिस वजह से अपनी जान कुर्बान कर दी, उसका हमें फख्र है।’ सैयद आदिल हुसैन शाह इंसानियत और देशभक्ति की बेहतरीन मिसाल हैं। सैयद के छोटे बच्चे यतीम हो गए हैं। वे घोड़े पर सैलानियों को सैर कराने का काम करते थे और उसी से उनका घर चल रहा था। सैलानियों की खिदमत करना उनका धर्म था, मजहब था और ऐसे कई सैयद कश्मीर घाटी में कड़ी मेहनत कर अपनी जिंदगी ईमान-ए-एतबार के साथ बिता रहे हैं। सैयद ‘कलमा’ पढ़ सकते थे और पहलगाम हमले में एक ‘मुसलमान’ के रूप में वे आसानी से अपनी जान बचा सकते थे। उन्होंने कोई स्वार्थ या गद्दारी नहीं की और एक सच्चे देशभक्त के तौर पर सभी हिंदू पर्यटकों की जान बचाने के लिए उन कट्टर आतंकियों से लड़ते रहे। सैयद ने वही किया, जो एक भारतीय जवान सीमा पर करता है। इसमें उनकी जान चली गई। यदि सैयद शहीद न हुए होते और उनकी शहादत की कहानी हिंदू सैलानियों की जुबां से न निकली होती तो भाजपा, बजरंगी आदि देश के मुसलमानों के खिलाफ आग भड़काने लगते। सैयद की शहादत ऐसे वक्त सामने आई, जब पहलगाम में हुए हमले को हिंदू-मुस्लिम रंग देने का काम सोशल मीडिया पर चल रहा था। सैयद की शहादत कौमी एकता के लिए नेमत है। कश्मीर घाटी के मुसलमानों पर पाकपरस्त होने का आरोप लगाया जाता है। गला फाड़कर उन्हें आतंकियों का हिमायती बताया गया। इन सभी आरोपों की मीनारें
सैयद की कुर्बानी से
ढह गईं। हाल के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बेबुनियाद बयान दिया कि मुसलमान गद्दार हैं, गाय चुराते हैं और खुलेआम हिंदू महिलाओं के मंगलसूत्र चुराते हैं। उस बदनामी का जवाब सैयद ने भारी कीमत चुकाकर दिया। भाजपा के एक घटिया सांसद निशिकांत दुबे मोदी-शाह के करीबी हैं। उन्होंने इस संजीदा हालात में राष्ट्रीय एकता की परवाह किए बिना बकवास किया। वे कहते हैं, ‘मैंने अब कलमा सीखना शुरू कर दिया है। क्या पता, जान बचाने के लिए कलमा पढ़ने का वक्त कभी भी आ सकता है!’ यह सैयद के बलिदान का मजाक है और केवल भाजपा के लोग ही ऐसा कर सकते हैं। दुबे की जानकारी के लिए उग्रवादियों के गोलीबारी शुरू करते ही कुछ महिलाओं ने पतियों की जान की भीख मांगी। अपने माथे पर लगी टिकली (बिंदी) हटा दी। ‘अल्लाह हो अकबर’ कहने लगीं। फिर भी आतंकवादियों का दिल नहीं पसीजा। उन्होंने हिंसा का तांडव शुरू कर दिया और जब सैयद उनकी जान बचाने के लिए बीच में आए तो आतंकवादियों ने धर्म की परवाह किए बिना सैयद को मार डाला। दुबे जैसे लोगों को वैâसे बताया जा सकता है कि भारत ही सैयद का धर्म था और उन्होंने इसके लिए अपनी जान गवां दी? सैयद की तरह कई मुस्लिम सुरक्षा गार्ड, पुलिस कश्मीर घाटी में आतंकवादियों से लड़ते हुए मारे गए। इसमें बहुत सारे मुसलमान हैं। राष्ट्रपति भवन में वीरता पदक वितरण के दौरान जब कश्मीर के शहीद मुस्लिम पुलिसकर्मियों के माता-पिता और पत्नियां आती हैं, तब उनके बलिदान से
भारतमाता भी रोमांचित
हो जाती होंगी। ऐसे अनेक सैयद भारत माता की गोद में पैदा होते हैं, देश के लिए जीते हैं और समय आने पर कुर्बान हो जाते हैं इसीलिए सैकड़ों हिंदू सैलानियों ने सैयद की इंसानियत को याद किया। सैयद का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए और उनके परिवार को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। सरकार को उनके बलिदान का सम्मान करना चाहिए और उनके परिवार को आधार देना चाहिए। इससे भारत माता की रक्षा करनेवाले अनेक सैयद पैदा होंगे। कश्मीरी छात्र देशभर में पढ़ रहे हैं। यह खबर चौंकानेवाली है कि वे अब असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और कश्मीर लौटने लगे हैं। इंशाह अल्ताफ ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां करते हुए कहा, ‘मैं एक कश्मीरी हूं। फिलहाल दिल्ली में रहता हूं। आज सुबह मैं दुकान पर सामान लेने आया था। दुकानदार ने मुझसे पूछा कि आप लोग भारतीयों पर हमला क्यों कर रहे हैं? यह सवाल मेरे लिए धक्कादायक है। उनके दिमाग में यह जहर किसने डाला कि हम कश्मीरी भारतीय नहीं हैं? मेरे दिमाग को जैसे असंख्य बिच्छुओं ने डंक मार दिया। मैं बिना सामान खरीदे वापस आ गया और उदास होकर बैठ गया।’ धर्म के नाम पर लगातार हो रही राजनीति ने माहौल खराब कर दिया है और भारत और कश्मीर के बीच खाई पैदा कर दी है। कश्मीर सिर्फ भारत-पाकिस्तान, हिंदू-मुसलमान जैसे चुनावी प्रचारों का विषय बनकर रह गया। सैयद के महान बलिदान से यह सब खत्म हो जाना चाहिए, लेकिन क्या भाजपा इस अच्छाई को होने देगी? प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात करते हैं, लेकिन देश के लिए बलिदान देनेवाले सैयद का गौरव के साथ जिक्र करने तैयार नहीं। यह अमानवीय है। सैयद को देश और हिंदू सदैव याद रखेंगे!

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