सीमा सुरक्षा के मामले में भारत भाग्यशाली नहीं है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने राय व्यक्त की है कि हमें सीमाओं पर लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मध्य प्रदेश के महू में सेना के जवानों को संबोधित करते हुए राजनाथ सिंह ने सीमा सुरक्षा को लेकर यह अहम बयान दिया। रक्षामंत्री ने जो कहा वह सच है। इतिहास गवाह है कि विदेशी आक्रमणकारियों ने भारतीय सीमाओं पर आक्रमण किए हैं। घुसपैठ की। आजादी के बाद भी भारतीय सीमाएं ‘शांत, लेकिन तनावपूर्ण’ रहीं। चीन जैसा देश तो लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक की सीमा पर लगातार कारस्तानी करता रहता है। पाकिस्तान के साथ भी यही बात है। अब बांग्लादेश में सत्तांतरण के बाद न तो हिंदू सुरक्षित हैं और न ही सीमाएं। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह कहने में कोई चूक नहीं है कि भारत की उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं को लगातार विदेशी चुनौतियों और संकटों का सामना करना पड़ता है। सवाल सिर्फ इतना है कि पिछले दस-ग्यारह साल से मोदी शासन की सफल विदेश और रक्षा नीति को लेकर जो शेखियां बघारी जा रही हैं उनका क्या? इसका मतलब अब यह समझें लें कि
खोदा पहाड़ निकली चुहिया?
पिछले १० वर्षों से कांग्रेस शासन की विदेश नीति का आनंद लेने वाले ही सत्ता में हैं। तो इन दस वर्षों में भारतीय सीमाएं सुरक्षित और संरक्षित क्यों नहीं हो सकीं? भाजपाई हमेशा कहते हैं कि मोदी सरकार के पड़ोसी देशों से रिश्ते बेहद मैत्रीपूर्ण हैं, तो फिर ये मैत्रीपूर्ण रिश्ते सीमा पर तनाव कम क्यों नहीं कर पा रहे हैं? जब चीनी राष्ट्रपति ने साबरमती नदी के किनारे झूले पर बैठकर ढोकला-जलेबी खाई है तो भारत के प्रति चीन की नीति ‘केम छो’ क्यों नहीं बन गई? मोदी भक्त ढोल पीटते रहे कि मोदी के विश्व गुरु बन जाने से चीनी ड्रैगन भी भारत के सामने ‘म्याऊं-म्याऊं’ कर रहा है, लेकिन चीन द्वारा लद्दाख क्षेत्र पर कब्जा करने, पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमले कम न करने और बांग्लादेश द्वारा हिंदुओं पर अत्याचार न रोकने से ये ढोल फूट गए। नेपाल जैसे देश भी आज भारत को आंखें दिखाने लगे हैं। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का यह कहना सही है कि सुरक्षा के मामले में भारत भाग्यशाली नहीं है और पिछले दस सालों से जो लोग सत्ता में हैं, वे भी इस
‘दुर्भाग्य’
को नहीं बदल सके हैं यह एक सच्चाई है। असली सवाल यह है कि क्या मौजूदा सत्ताधारी दल ही उसकी जिम्मेदारी स्वीकार करेगा? सत्ताधारी दल दावा करता रहा है कि देश के सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचे का विकास इतना कभी नहीं हुआ, जितना मोदी शासनकाल में हुआ। तो हमारी सीमाएं अब भी असुरक्षित क्यों हैं? चीन अपनी सीमाओं पर हजारों कृत्रिम गांव बसा रहा है और हमारे हुक्मरान देश के सभी सीमावर्ती गांवों के लिए ‘वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम’ के गुब्बारे उड़ा रहे हैं। सीमा सुरक्षा के लिए एक व्यापक ‘एंटी-ड्रोन यूनिट’ बनाने की बात चल रही है। दो महीने पहले हुए भारत और चीन सैन्य वापसी समझौते के नशे से बाहर आने को तैयार नहीं हैं। पिछले दस वर्षों से एक ‘मुखौटा’ तैयार किया गया है कि मोदी शासन ही भारतीय सीमा सुरक्षा की ‘भाग्य रेखा’ है। तो फिर देश के रक्षामंत्री को इस बात पर अफसोस क्यों जताना पड़ा कि ‘भारत सुरक्षा के मामले में भाग्यशाली नहीं है’? हमारे प्रधानमंत्री रूस-यूक्रेन युद्ध रोक सकते हैं, लेकिन सीमा सुरक्षा के बाबत भारत को ‘भाग्यशाली’ क्यों नहीं बना सकते? ये वो सवाल हैं जो देश की आम जनता के हैं। जिसका जवाब सीमा सुरक्षा का ‘मुखौटा’ पहने हुए लोगों को देना ही है!