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संपादकीय : स्वागत अभूतपूर्व, लेकिन…

विश्वविजेता भारतीय क्रिकेट टीम का मुंबई में अभूतपूर्व स्वागत किया गया। भारतीय क्रिकेट टीम ‘टी-२०’ वर्ल्ड कप जीतकर स्वदेश लौट आई। टीम के भारत पहुंचने पर पहले उन्हें दिल्ली में उतरवाकर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उनका स्वागत किया गया। बाद में विजेता टीम मुंबई आई। कई लोगों को आश्चर्य हुआ होगा कि इस बार दिल्ली से टीम की उड़ान को गुजरात क्यों नहीं भेजा गया; लेकिन खबर है कि टीम के जलसे के लिए गुजरात से खासतौर पर डबल डेकर बस (ओपन) मंगवाई गई। ‘बेस्ट’ की डबल डेकर बसें मुंबई में सबसे अच्छी हैं और ऐसी बसों में पहले भी ऐसे उत्सव और जुलूस मनाए जाते रहे हैं। फिर भी बस गुजरात से आई, यह मजेदार है। नरीमन पॉइंट पर समुद्र के साक्ष्य में विजयी क्रिकेट टीम का स्वागत करने और उसे देखने के लिए लाखों की संख्या में लोग उमड़ पड़े। जिस तरह से भीड़ में लोगों का उत्साह और खुशी उमड़ रही थी, उसे देखकर लगा कि देश की सारी समस्याएं खत्म हो गई हैं। क्या ऐसा मान लें कि ‘टी-२०’ वर्ल्ड कप जीतने से भारत की महंगाई और बेरोजगारी की समस्या हल हो गई है? एक तरफ विशाल अरब सागर और उसके किनारे पर उमड़ा मुंबईकर क्रिकेट प्रशंसकों का महासागर चकित कर देने वाला था। मुंबई भारतीय क्रिकेट का उद्गम स्थल है। मुंबई क्रिकेट की दीवानी है। तभी तो विश्व विजेता भारतीय टीम के अभूतपूर्व स्वागत के लिए हजारों मुंबईवासियों के कदम मरीन लाइन्स की ओर दौड़ पड़े। लेकिन इस बिरादरी भीड़ में भी, हर्षोल्लास के माहौल के बावजूद, मुंबईकरों ने अपनी संवेदनशीलता और ‘मुंबई स्पिरिट’ की एक झलक दुनिया को दिखाई। जब चींटी के लिए भी जगह नहीं बची थी तो मुंबईकरों ने एंबुलेंस के लिए रास्ता साफ कर दिया। बेशक, ये सब तो ठीक है, लेकिन कई लोगों के मन में ये सवाल जरूर आया होगा कि इस भीड़ का सटीक गणित क्या है? जब देश और समाज पर हमला हो रहा होता है तो ये भीड़ कहां चली जाती है? यदि मुंबई में कल की उमड़ती भीड़ का पंद्रह प्रतिशत भी देश की समस्याओं के प्रति जाग उठे और सड़कों पर उतर आए तो अत्याचारी शासन को आत्मसमर्पण करना पड़ेगा। मुंबई की इस भीड़ में कितने फीसदी लोग मणिपुर के बेघर और बेसहारा लोगों को न्याय दिलाने के लिए सड़कों पर उतरे? अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त स्वर्ण पदक विजेता महिला पहलवान दिल्ली के जंतर-मंतर पर दिन-रात संघर्ष कर रही थीं। पुलिस उन्हें उठाकर बाहर फेंक रही थी। उस वक्त ये भीड़ लाशों की तरह घर के अंदर ही पड़ी रही। अगर भीड़ का पांच फीसदी हिस्सा भी सड़कों पर उतरकर महिला पहलवानों के साथ हो रहे अन्याय की खिलाफत करता तो उन महिला एथलीटों को न्याय मिल जाता। ‘नीट’ परीक्षा घोटाले में हजारों छात्रों का भविष्य दांव पर है। उन पेपर्स की खुलेआम बिक्री हुई। सरकार की उदासीनता से छात्र और अभिभावक घबरा गए हैं, लेकिन देश अजगर की भांति निश्चेष्ट पड़ा है। भारतीयों में क्रिकेट के प्रति अपार जुनून और प्रेम है। भारतीय क्रिकेट ने इस दुनिया को कई सितारे दिए। एक समय में सुनील गावस्कर, कपिलदेव, गुंडप्पा विश्वनाथ, दिलीप सरदेसाई, अजीत वाडेकर, दिलीप वेंगसरकर, बिशन बेदी जैसे कई नाम लिए जा सकते हैं। हाल ही में सचिन तेंदुलकर तो क्रिकेट के भगवान ही बन गए। लेकिन द्रविड़, कोहली, सहवाग, गांगुली, रोहित शर्मा आदि ने मैदान में जो शानदार प्रदर्शन किया, उसकी वजह से क्रिकेट के क्षेत्र में भारत का नाम मशहूर हो गया, ये सच है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि जितनी रईसी और दौलत क्रिकेट में है, वह अन्य खेलों में नहीं। दुनिया में भारतीय क्रिकेट बोर्ड सबसे धनवान है इसीलिए अमित शाह ने अपने पुत्र जय शाह को भारतीय क्रिकेट बोर्ड का सर्वेसर्वा बना दिया और यह महाशय डबल डेकर बस पर इस तरह घूम रहे थे जैसे कि भारत को जीत और वर्ल्डकप जय शाह की वजह से ही मिला हो। क्रिकेट प्रशासन में राजनेताओं ने अपने-अपने लोगों को घुसाकर व बिठाकर वहां की तिजोरी को सांप की तरह कुंडली मार रखी है। उसके लिए क्रिकेट के लिए उमड़ने वाली भारी भीड़ ही जिम्मेदार है। हमारे देश में केवल दो जगह भीड़ उमड़ती है। पहले बाबा-महाराज-बुवा के लिए और दूसरी भीड़ उमड़ती है क्रिकेट के लिए। जो कल नरीमन पॉइंट, मरीन लाइन्स ने अनुभव किया है। ऐसा सिर्फ हमारे भारत में ही हो सकता है। पिछले साल ऑस्ट्रेलिया ने अमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में भारतीय टीम को हराकर वर्ल्डकप जीता। फिर पैट कमिंस ‘ट्रॉफी’ के साथ ऑस्ट्रेलिया के एयरपोर्ट पर उतरा। जब वह एयरपोर्ट पर उतरा तो इस विश्व विजेता को किसी ने नहीं पूछा, ‘क्या भाई, तुम कहां से आए हो? तुम वैâसे हो? यह ट्रॉफी कौन सी है?’ कमिंस ने अपना सामान खुद उठाया और चुपचाप घर जाकर सो गए। भारत की एक अलग तस्वीर है। हवाई अड्डे से ही विजेता टीम का जुलूस शुरू होता है। उस भीड़ में सारे दुख, कुछ सवाल कुछ वक्त के लिए खत्म हो जाते हैं। इसीलिए भारत अलग है!

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