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संपादकीय : उनके राष्ट्रवाद का उबाल!

पहलगाम आतंकवादी हमले से भारत में सत्तारूढ़ दलों का राष्ट्रवाद का लावा फूट-फूटकर बाहर आ रहा है और वे दूसरों के राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर सवाल उठाने लगे हैं। इसके लिए एक मुहावरा है ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’। भाजपा जैसी पार्टियों की स्थिति बिल्कुल वैसी ही हो गई है। दाऊद इब्राहिम, इकबाल मिर्ची जैसे लोगों के साथ व्यापार करनेवालों को और उन्हें अपनी पार्टी में जगह देनेवालों की जुबां पर ‘राष्ट्रवाद’ जैसे लफ्ज शोभा नहीं देते। उनकी देशभक्ति तब तक उबाल नहीं मारती जब तक पाकिस्तान हमला करके हमारे पांच-पच्चीस हिंदुओं को मार न दे। उरी, पठानकोट, पुलवामा और अब पहलगाम हमला इसका ज्वलंत उदाहरण है। जब ये हमले हुए और हमारे सैनिक और नागरिक मारे गए तो दुश्मन को सबक सिखाने की बात की गई। वे दस साल से सत्ता में हैं तो इन दस वर्षों में उन्होंने दुश्मनों को निपटाने के लिए क्या किया? और अब भी यह ध्यान रखने की बात है कि भाजपा की लफ्फाज फौज सीमा पर जाकर पाकियों से बदला लेने की बहादुरी नहीं दिखाएगी। पिचकी हुई जांघों पर ताल ठोकते हुए रोज कहा जा रहा है कि हम पहलगाम का बदला लेंगे। यह कहना बड़ा आसान है कि सिंधु नदी का पानी रोक देने से पाकिस्तान जल बिना तड़प कर मर जाएगा, लेकिन यह ‘जल बम’ इतनी आसानी से नहीं गिराया जा सकता और सिंधु का पानी रोकने के लिए बड़े बांध बनाने होंगे, लेकिन लोगों को मूर्ख बनाना है और मूर्ख बनाते रहना है। यह अफवाह भी उड़ी कि वे पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं खेलेंगे, लेकिन जब दो महीने पहले दुबई में वर्ल्ड कप हुआ, तब जय शाह, महाराष्ट्र से मिंधे के बेटे, अन्य मंत्रियों के बेटे, भाजपा नेता दुबई के शेखों के बगल में बैठकर और पाकिस्तानी खिलाड़ियों को बगल बिठाकर
पाक-भारत क्रिकेट
मैच में राष्ट्रवाद पर ‘चार चांद’ लगा रहे थे क्या देश ने यह नहीं देखा? शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे द्वारा ‘भारत-पाकिस्तान क्रिकेट नहीं होगा, न ही होने दिया जाएगा’ ऐसी चेतावनी देते ही पाकिस्तानियों की हालत खराब हो गई थी। ‘तुम कश्मीर में हमारे हिंदुओं की हत्या करोगे और भारत हत्या करनेवालों के साथ क्रिकेट खेलते रहेगा, यह ढोंग नहीं चलेगा’ उस वक्त शिवसेनाप्रमुख की भूमिका ऐसी थी। हालांकि, ‘भाजपा’ परिवार बालासाहेब को मनाने के लिए मुंबई पहुंच गया। ‘साहेब, धर्म और खेल को राजनीति में मत लाइए। राजनयिक संबंध बनाए रखने पड़ते हैं। सबर रखिए,’ इस तरह की वकालत करनेवाले आज पाकिस्तान की दिल्ली स्थित एंबेसी बंद कर रहे हैं और उनके साथ क्रिकेट न खेलने के लिए कह रहे हैं। जय शाह फिलहाल दुबई में रहते हैं। उनकी तरह कई ‘देशभक्त’ भाजपाइयों के बच्चे व्यापार करने और भारत से लूट का पैसा उड़ाने के लिए दुबई, सिंगापुर, मॉरीशस में हैं और वहां से कश्मीर में हमले का विरोध कर रहे हैं। कह रहे हैं पाकिस्तान को सबक सिखाओ। हे महान देशभक्तों, यदि इतनी ही देशभक्ति उमड़ रही थी तो वे अपनी मातृभूमि छोड़कर विदेश क्यों चले गए? जैसे वीर सावरकर का हृदय मातृभूमि के लिए तड़पता था, क्या आपका हृदय केवल तभी तड़पता है या केवल तभी लालायित होता है जब भारत पर हमला होता है? क्या भारत के बेटों को देश के लिए मरना चाहिए और भाजपा के बेटों को विदेश में सुखी और सुरक्षित जीवन जीना चाहिए? हमारी भारत सरकार से राष्ट्र प्रेम की मांग है। यदि राष्ट्रभक्ति का जलजला इतना ही उफान मार रहा है, भाजपा और संघ परिवार के जिन शूरवीरों की बाहें और कलाइयां आज फड़क रही हैं और वे
‘युद्ध करो’ का स्यापा
कर रहे हैं, उनमें से कितने लोगों की पत्नियां विदेशी हैं? कितने लोगों के बच्चे रोजगार-व्यवसाय के लिए विदेश में स्थाई रूप से बस गए हैं? कितने लोगों ने विदेश में संपत्ति अर्जित की है? इसकी फेहरिस्त जारी करें। इतना ही नहीं, यह कानून बना दें कि जिनके बच्चे विदेश में हैं और जिनकी पत्नी विदेशी हैं, उन्हें भारत में सत्ता का कोई पद नहीं मिलेगा। इन सभी लड़कों को विदेश से बुलाकर जबरन सैन्य प्रशिक्षण देकर सीमा पर भेज दें। तब उन्हें पता चलेगा, देशभक्ति सिर्फ शब्दों के बुलबुले नहीं हैं। वर्तमान में भाजपा काल में देशभक्ति का जो दिखावा बढ़ा है, उससे देश में राष्ट्रवाद की बुनियाद ढह गई है। राष्ट्रवाद के नाम पर देश में कई ‘सेना’ और ‘संगठन’ स्थापित हो गए हैं और वे धर्म के नाम पर डर पैâला रहे हैं। इन वीरों को भी अर्जुन पुत्र अभिमन्यु की तरह शत्रु से लड़ने के लिए रावलपिंडी, इस्लामाबाद, लाहौर, कराची भेजना चाहिए। भारतीय सैनिक कश्मीर और सीमा पर बेहद कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें भी भारत की गंदी राजनीति में घसीटा जा रहा है। जब पुलवामा में ४० जवान शहीद हुए तब भी पाकियों से बदला नहीं लिया गया, बल्कि सिर्फ राजनीति की गई और अब पहलगाम के मामले में भी लफ्फाजी की जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी देशभक्ति का गुब्बारा हैं और गृहमंत्री अमित शाह हर दिन पिघलने वाली मोम की मूर्ति हैं। उन्हें ‘लौह पुरुष’ कहनेवालों से हमें चिढ़ होती है। पुलवामा और पहलगाम की घटनाओं के बाद मोदी-शाह को सत्ता में रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। अमित शाह सबसे असफल गृहमंत्री हैं। षड्यंत्रकारी, व्यापारिक सोचवाले व्यक्ति का गृहमंत्री जैसे संवेदनशील पद पर आसीन होना, देश के लिए खतरा है और ऐसे व्यक्ति को उस पद पर नियुक्त करना राष्ट्रीय अपराध है। इस अपराध की कीमत देश चुका रहा है। कश्मीर में २६ लोगों की मौत के बाद भी देश के प्रधानमंत्री २४ घंटे के अंदर बिहार में चुनाव प्रचार में भाग लेते हैं और वहीं से पाकिस्तानियों को चेतावनी देते हैं, उनकी राष्ट्रीयता एक ढोंग है!

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