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संपादकीय : रेल दुर्घटना : जिम्मेदार कौन है?

मोदी के नेतृत्व में देश में तीसरी दफा सरकार बनी है। मोदी सरकार की ओर से दावा किया गया कि उसने पिछले दो कार्यकाल में बुनियादी ढांचे में सुधार के मामले में काफी काम किया है। रेलवे सुधारों को लेकर ‘मोदी की गारंटी’ भी दी गई थी। लेकिन प. बंगाल में हुए रेल हादसे ने यह साबित कर दिया है कि ये सारे दावे खोखले हैं। यह हादसा दो दिन पहले प. बंगाल के रंगपानी और निजबारी स्टेशन के बीच हुआ था। यहां खड़ी कंचनजंगा एक्सप्रेस को पीछे से तेज रफ्तार से आती मालगाड़ी ने टक्कर मार दी। इस हादसे में मरने वालों की संख्या अब १० से ज्यादा हो गई है। घायलों की संख्या बहुत बड़ी है। हमेशा की तरह रेल मंत्री ने कहा है कि हादसे के कारणों की जांच की जा रही है। जांच टीम अपनी रिपोर्ट रेल मंत्री को भेजेगी। मानवीय भूल पर दोष मढ़कर इस हादसे की फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी जाएगी। अगर यह मान भी लिया जाए कि हादसे या दुर्घटनाएं अचानक, अनजाने में हुई मानवीय भूल के कारण होती हैं, फिर भी इन दुर्घटनाओं के लिए जो कारण सामने आते हैं, वे रेल मंत्रालय के दावों की पोल खोल देते हैं। ‘मोदी-२’ सरकार ने सुरक्षित रेल यात्रा के लिए ‘कवच’ व्यवस्था को लेकर खूब ढोल पीटे थे। वर्तमान रेल मंत्री तब भी रेलवे महकमे को संभाल रहे थे। तब ढोल पीटे गए थे कि इस सिस्टम से रेल गाड़ियां आपस में नहीं टकराएंगी और पूर्व चेतावनी मिलने से दुर्घटनाओं से बचा जा सकेगा। लेकिन पिछले साल ओडिशा के बालासोर में हुए ‘ट्रिपल ट्रेन’ हादसे ने ढोल फोड़ दिया। उस भीषण दुर्घटना में तीन ट्रेनें आपस में टकरा गर्इं और लगभग २५० यात्रियों की मौत हो गई। हजारों यात्री घायल हो गए। यह बात सामने आने के बाद कि जिस ट्रैक पर यह जानलेवा हादसा हुआ, उस ट्रैक पर कोई ‘कवच’ सिस्टम नहीं था, रेलवे प्रशासन ने नींद से जागते हुए घोषणा की थी कि वह कवच सिस्टम के लिए टेंडर जारी करेगा। यह भी कहा गया कि यह सिस्टम रेलवे की कई ट्रेनों में लागू किया जाएगा। पर अब प. बंगाल में दुर्घटना-ग्रस्त ट्रैक पर कोई ‘कवच’ व्यवस्था नहीं थी। तो रेलवे विभाग ने पिछले साल क्या किया? बताया जा रहा है कि मालगाड़ी के लोको पायलट ने सिग्नल को नजरअंदाज कर दिया और उसी छोटी सी गलती के कारण बड़ा हादसा हो गया और टकराने वाली मालगाड़ी निर्धारित गति से काफी तेज चल रही थी। हालांकि, ‘कवच’ व्यवस्था की कमी के लिए रेल मंत्री अपनी जिम्मेदारी से हाथ नहीं झटक सकते। देश में अब तक बहुप्रचारित ‘कवच’ प्रणाली केवल दो फीसदी रेलवे नेटवर्क में ही काम करती रही है और ६ हजार किलोमीटर रेलवे लाइन की प्रक्रिया चल रही है। महाराष्ट्र में रेलवे लाइन पर कहीं भी कोई ‘कवच’ नहीं है। यानी देश में ९० फीसदी रेल यात्रा आज भी ‘रामभरोसे’ है। ‘कवच’ समेत कई रेलवे सुरक्षा परियोजनाएं आगे नहीं बढ़ पाई हैं। रेलवे में तीन लाख पद दस साल से खाली पड़े हैं। इंजीनियरों की भर्ती नहीं की गई है। लोको पायलटों की संख्या कम होने के कारण उन पर काम का बोझ बहुत ज्यादा है। रेलवे बोर्ड ने खुद माना है कि ट्रेन दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या का एक कारण ये बढ़े हुए काम के घंटे भी हैं। ‘वंदे भारत’ के यात्रियों को सुरक्षा का ‘कवच’ देनेवाली मोदी सरकार को क्या दूसरी ट्रेनों के लाखों यात्रियों की जान कीमती नहीं लगती है? मोदी सरकार के तथाकथित ‘अमृत काल’ के दौरान रेल दुर्घटनाओं में एक लाख से डेढ़ लाख यात्रियों की जान जा चुकी है। इसमें अब कंचनजंगा एक्सप्रेस का हादसा भी जुड़ गया है। इन सभी मासूमों की मौत का जिम्मेदार कौन है? रेल दुर्घटनाओं की सीरीज क्यों नहीं रुक पाई है? आप अब तक यात्रियों को सुरक्षित रेल यात्रा का ‘कवच’ क्यों नहीं दे पाए? पहले जनता को इन सवालों का जवाब दीजिए और फिर रेलवे सुधारों का खोखला ढोल बजाइए!

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