भाजपा और उसकी शिंदे टोली का हिंदुत्व एक ढोंग है। सत्ता के लिए इस उंगली की थूक को उस उंगली पर करने में इनका कोई सानी नहीं है। इसका ताजा उदाहरण राज्यपाल द्वारा नियुक्त सात सदस्यों का जल्दबाजी में संपन्न हुआ शपथ ग्रहण समारोह है। ये नियुक्तियां और इनका शपथ ग्रहण पूरी तरह से अवैध है। फिर, इन सातों में से कई ऐसे हैं जिन पर भ्रष्टाचार, देशद्रोह और हिंदू विरोधी कृत्य करने के आरोप हैं। राज्यपाल द्वारा उन्हें भी शपथ दिलाए जाने से हुक्मरानों के हिंदुत्व और देशभक्ति के मुखौटे उतर गए हैं। राज्यपाल ने ‘महान विभूति’ इद्रीस नायकवडी की विधान परिषद में नियुक्ति की है। ऐसी नियुक्तियों के वक्त उनका पिछला इतिहास खंगालने के बाद ही निर्णय लेना होता है। इन महापुरुष ने सांगली-मिरज-कुपवाड महापालिका में ‘नगरपिता’ रहते हुए ‘वंदे मातरम’ का विरोध किया था। जब ‘वंदे मातरम’ शुरू हुआ तो ये सज्जन सभागार में बैठे थे। उसी दौरान हिंदूवादी संगठनों के दफ्तर पर हुए हमलों के वे मास्टरमाइंड थे। इद्रीस मियां की इस हरकत का विरोध उस वक्त भाजपा के मकरंद देशपांडे, शिवसेना के विकास सूर्यवंशी और तथाकथित हिंदुत्ववादी मनोहर भिड़े ने किया था। इद्रीस महाशय बाबरी मामले के बाद मिरज में भड़के दंगों के लिए रसद मुहैया कराने का काम कर रहे थे। इतने सारे ‘पदकों’ वाले व्यक्ति को भाजपा के शिंदे गुट ने सीधे राज्यपाल नियुक्त विधायक बना दिया। इद्रीस नायकवडी ने राष्ट्रगान ‘वंदे मातरम’ का विरोध किया और पच्चीस साल बाद फडणवीस और शिंदे ने संयुक्त रूप से नायकवडी को विधायक बनाकर सम्मानित किया। राष्ट्रीय गीत का विरोध करना राष्ट्रीय अपराध है और इस बाबत भाजपा के हिंदुत्ववादी बेहद सतर्क हैं। कल-परसों जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की वैâबिनेट का शपथ ग्रहण समारोह हुआ और इस समारोह में राष्ट्रगान के दौरान नेशनल कॉन्प्रâेंस के एक विधायक अकबर लोन खड़े नहीं हुए, जिसके चलते श्रीनगर पुलिस ने अनुच्छेद १७३ (३) के तहत उनकी जांच शुरू कर दी है। राष्ट्रगीत का अपमान दंडनीय अपराध है और इस अपराध से कोई समझौता नहीं करेगा। विधायक महोदय का कहना है, ‘मैंने राष्ट्रगान के दौरान खड़े होने की कोशिश की, लेकिन पीठ में दर्द होने की वजह से मैं ज्यादा देर तक खड़ा नहीं रह सका।’ हालांकि अकबर के इस खुलासे के बावजूद जम्मू-कश्मीर पुलिस ने राष्ट्रगान के अपमान का संज्ञान लेते हुए जांच शुरू कर दी है। लेकिन, महाराष्ट्र में राष्ट्रीय गीत का अपमान करने वालों को विधान परिषद में सीटें देकर शिंदे-फडणवीस सरकार ने देशवासियों की भावनाओं को पैरों तले कुचल दिया। इद्रीस नायकवडी के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत भाजपा और मनोहर भिड़े ने की थी। नायकवड़ी ने तब जो किया वह अब उलट गया है। नायकवड़ी अब दिखावा करते हैं, ‘साहेब, कुछ गलतफहमी हो रही है। मैं वो नहीं हूं!’ भाजपा में आए सभी भ्रष्ट लोग ‘मैं वो नहीं’ होने का नाटक कर रहे हैं। इद्रीस नायकवडी मामले में भाजपा के ऐरे-गैरे और खुद को ‘हिंदुओं का गब्बर’ आदि कहलाने वाले लोग मुंह में दूध की लुटिया लगाए चुप हैं। ‘वंदे मातरम’ का अपमान करने वाले इद्रीस नायकवडी को विधायक पद देने को लेकर उन्हें सांगली, मिरज जाकर राष्ट्रभक्तों या हिंदुओं की एकाध सभा करने की नहीं सूझी। यही तो उनका ढोंग है। राज्यपाल ने सात लोगों को मनोनीत किया। इन्हीं रत्नों में से एक हैं इद्रीस नायकवडी। बाकी पांचों का इतिहास भी अच्छा नहीं है। राज्यपाल ने भ्रष्टाचारियों की मदद करने वालों और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए दलबदल करने वालों को भी विधायक बनाया। एकनाथ शिंदे और अन्य लोगों ने संवैधानिक पदों पर पार्टी तोड़ने वालों और खोके से खरीदे गए लोगों को अवैध तरीके से संवैधानिक पदों पर बिठाकर न्याय देवता की बेइज्जती ही की है। राज्य सरकार अवैध है और राज्यपाल उस सरकार के अवैध कृत्यों पर पर्दा डाल रहे हैं। संविधान को घर-घर पहुंचाने की पहल करने के बजाय इन लोगों को पहले स्वयं संविधान पढ़ना चाहिए। अब न्याय की देवी को तलवार की जगह संविधान की किताब दे दी गई है, लेकिन आपके गले के ऊपर के घड़े में सिर्फ कूड़ा भरा है। केशव उपाध्याय और माधव भंडारी जैसे भाजपा के वफादारों को केवल दरी उठाने की जिम्मेदारी देकर बाहरी और ‘वंदे मातरम’ विरोधियों को विधायक पद मुहैया कराए जा रहे हैं। भाजपा में निष्ठा और विचारों का कोई मोल नहीं रह गया है। चूंकि भाजपा बाहरी लोगों के हाथों में, शिंदे गुट भ्रष्टाचारियों के हाथों में और अजीत पवार गुट ऐरे-गैरों के हाथों में चला गया है इसलिए विधानमंडल में असंगत अलग-सलग लोगों को भेजा जा रहा है। एक ओर लोग ‘वंदे मातरम’ के सम्मान के लिए लड़ते रहते हैं और दूसरी तरफ एकनाथ शिंदे ‘वंदे मातरम’ विरोधियों को पद देकर सौदेबाजी करते हैं। महाराष्ट्र में ‘वंदे मातरम’ का सौदा ही हो गया है।