एक अफवाह कितनी खतरनाक व घातक हो सकती है, इसका दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण देश को बुधवार की ट्रेन दुर्घटना से मिला, जब लखनऊ से मुंबई जानेवाली पुष्पक एक्सप्रेस में आग लगने की अफवाह पैâल गई और इस झूठी सूचना के कारण जलगांव के परधाड़े गांव के पास मौत का तांडव मचा। आग लगने की जानकारी मिलते ही यात्री बिना जांच किए ट्रेन के दोनों ओर से कूद पड़े। इनमें से एक तरफ से कूदने वाले यात्री सौभाग्य से बच गए; लेकिन जो लोग दूसरी तरफ से कूदे उन्होंने मानो सीधे अपनी मर्जी से मौत को गले लगा लिया। कुछ युवा यात्री चलती ट्रेन से कूद गए, लेकिन ट्रेन की गति तेज होने के कारण सभी कूद नहीं सके। तभी किसी ने जंजीर खींच दी और लोग जितनी तेजी से संभव हो सका दरवाजे और खिड़कियों से नीचे कूद पड़े और भाग निकले। जब पुष्पक एक्सप्रेस से उतरे यात्री साइड ट्रैक पर थे, तभी बेंगलुरु से दिल्ली जा रही कर्नाटक एक्सप्रेस तेज गति से उसी ट्रैक पर आई और ट्रैक पर मौजूद यात्रियों को कुचलते हुए कुछ दूर आगे रुक गई। इस हादसे में
कुछ सेकंड में १३ यात्रियों की मौत
हो गई और २२ यात्री घायल हो गए। मरनेवालों की संख्या बढ़ने की आशंका है, क्योंकि कई घायलों की हालत गंभीर है। घटनास्थल का मंजर बेहद दर्दनाक और दिल दहला देनेवाला था। क्षत-विक्षत शव, बिखरे अंग और खून का मंजर देख बचाव कार्य में लगे अधिकारी व कर्मचारियों की रूह कांप गई। चूंकि उनके साथ कोई रिश्तेदार नहीं था इसलिए इन शवों के पास रोने वाला भी कोई नहीं था। यहां तक कि आग लगने की अफवाह सुनकर जो यात्री नहीं कूदे, मंजर देखकर उनके दिल की धड़कनें भी रुक-सी गर्इं। किसी ने सबसे पहले ट्रेन में चिंगारी की खबर पैâलाई और अफवाहखोरों ने यही खबर बढ़ा-चढ़ाकर एक कोच से दूसरे कोच तक पैâला दी। इसी बीच रेलवे की चाय वालों ने अफवाहों की आग में घी डालने का काम किया। ट्रेन में यात्रियों का कहना है कि चाय वालों ने यह झूठी सूचना देकर और भ्रम पैदा कर दिया कि ट्रेन में आग लग गई है और पेंट्री कार से धुआं निकल रहा है। अगर यह सच है तो अफवाह पैâलाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन
अफवाह पैâलानेवालों को ढूंढें वैâसे,
रेलवे प्रशासन के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है। हादसे के कुछ देर बाद पुष्पक एक्सप्रेस अपने गंतव्य के लिए रवाना हो गई, मतलब इस ट्रेन में न कोई आग लगी थी और न ही कोई खराबी थी। हालांकि, सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह भीषण रेल हादसा वैâसे हुआ और इस हादसे का जिम्मेदार कौन है। हालांकि, इस हादसे के लिए रेलवे प्रशासन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि, यह सच है कि रेलवे की तकनीकी और मानवीय त्रुटियों के कारण पिछले दो-चार वर्षों में कई रेल दुर्घटनाएं हुर्इं और कई लोगों की जान चली गई, लेकिन जलगांव रेल दुर्घटना में यात्रियों की गलती है। ऐसा ही लगता है। इस बारे में क्या कहा जा सकता है कि जब ट्रेन में आग न लगी हो तो यात्री केवल सुनी-सुनाई बातों पर भरोसा करके चलती ट्रेन से कूद जाएं? किसी वास्तविक आपदा में कूद पड़ना अलग बात है, लेकिन झूठी सूचनाओं पर विश्वास करके खुद को मौत के हवाले कर देना दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। जलगांव ट्रेन हादसे में मरनेवाले यात्री अफवाहों के शिकार हैं, लेकिन १३ लोगों की मौत के जिम्मेदार अफवाह पैâलाने वालों का पता वैâसे लगाया जाएगा?