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संपादकीय : बदला लेंगे; लेकिन कैसे?

पहलगाम आतंकी हमले के सदमे से देश अभी तक उबर नहीं पाया है। इस प्रचार के कारण कि हमने कश्मीर से आतंकवाद खत्म कर दिया है, पूरे देश से पच्चीस लाख पर्यटक कश्मीर पहुंचे और यह हमला हुआ। जनता में आक्रोश है कि कश्मीर में बहाए गए खून और आंसू की हर बूंद का बदला लिया जाये और पाकिस्तान को सबक सिखाया जाए। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह यह आभास दे रहे हैं कि पहलगाम घटना का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। पहलगाम हमले से सरकार के दावों का बुलबुला फूटने के चलते वे कहने लगे हैं कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण न करें। यदि इस मंडली ने पिछले दस वर्षों में किसी दुखद घटना का राजनीतिकरण न करने की नीति का पालन किया होता तो आज ऐसी दलीलें देने की नौबत नहीं आती। पहलगाम हमला अमानवीय है, घृणित है और इसका बदला लिया जाना चाहिए, लेकिन बदला लेने का मतलब क्या है? देश को असली खतरा उन सभी लोगों से है जो सोचते हैं कि चुनाव में भाजपा को वोट दें, मोदी को प्रधानमंत्री बनाएं और ऐसा करके ही ‘बदला’ पूरा होगा और पाकिस्तानी बिलों में छिप जाएंगे। बदला पाकिस्तान और आतंकवादियों से लेना है। क्या पहलगाम का बदला देश के मुसलमानों को चुनौती देकर और उनकी मस्जिदों और मदरसों पर हमला करके पूरा होगा? कुछ लोगों में ऐसा करने की तीव्र भावना होती है। लड़ाई पाकिस्तान के खिलाफ है, राष्ट्रवादी मुसलमानों के खिलाफ नहीं जो भारतीय नागरिक हैं। उरी और पुलवामा आतंकी हमले के बाद ‘हम बदला लेंगे, सबक सिखाएंगे’ जैसे भाषण हुए थे। संसद और सार्वजनिक सभाओं में हुंकार भरी गई। उरी का बदला लेने के लिए पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की गई। तब कहा गया था कि पाकिस्तान और आतंकवादियों की कमर टूट गई है और पाकिस्तानियों को सबक सिखा दिया गया, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इंदिरा गांधी ने
पाकिस्तान को पैदाइश का सबक
१९७१ में सीधे जंग कर पाकिस्तान के दो टुकड़े करके सिखाया। फिर भी पाकियों की पूंछ टेढ़ी ही रही। अब मोदी सरकार आखिर क्या करने जा रही है? सरकार को काम करना चाहिए, प्रचार नहीं। यदि वह इस नियम का पालन भी कर ले तो काफी होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने वैâबिनेट बैठक बुलाई और कुछ त्वरित पैâसले लिए। उन्होंने भारत में पाकिस्तानी दूतावास बंद कर दी है। भारत में मौजूद सभी पाकिस्तानी नागरिकों को चौबीस घंटे के भीतर देश छोड़ने का आदेश दिया गया। यहां तक ​​कि बाघा बॉर्डर को भी फिलहाल बंद कर दिया। कहा जा रहा है ये पाकिस्तान से कूटनीतिक रिश्ते तोड़ने की शुरुआत है तो फिर क्रिकेट का क्या करेंगे? भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच दुबई में खेले जाते हैं और भारत से बड़ी संख्या में लोग मैच देखने जाते हैं। जय शाह विश्व क्रिकेट के मुखिया हैं। उन्हें साफ कर देना चाहिए कि अब पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं खेलेंगे। यहां भारत में पाक मुर्दाबाद के नारे लगाना और भारत के बाहर पाकिस्तानियों के साथ क्रिकेट खेलना बंद किया जाना चाहिए। पहलगाम हमले से आहत हुए मोदी सऊदी अरब का दौरा छोड़ कर लौटे। राहुल गांधी अमेरिका का दौरा छोड़कर लौट रहे हैं। ‘पहलगाम’ हमले के बाद सरकार द्वारा सर्वदलीय बैठक बुलाना आम बात है। जो सरकार विपक्ष की आवाज दबाती है, कश्मीर से लेकर मणिपुर तक संसद में किसी भी मुद्दे पर चर्चा करने को तैयार नहीं है, वह सरकार सर्वदलीय बैठक बुलाकर कौन से तारे तोड़ लेगी? देश के गृह मंत्री राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं। वे लोगों के जीवन की रक्षा करने में विफल रहे। इन्हें हटाना सर्वदलीय मांग है। यदि सरकार उस मांग पर विचार नहीं करेगी तो बैठकों का दिखावा ही क्यों? आर्टिकल ३७० हटाया गया यह अच्छी बात है, लेकिन जम्मू-कश्मीर का
संपूर्ण राज्य का दर्जा हटाकर
क्या मिला? सरकार इसका जवाब नहीं देगी। सरकार ने सेना में भारी कटौती की, रक्षा विभाग के वित्तीय प्रावधान में कटौती की। यह खेल खतरनाक है। पुलवामा में सेना के जवानों को विमान उपलब्ध नहीं कराए गए और पहलगाम में हजारों सैलानियों की सुरक्षा को अधर में छोड़ दिया गया। अब जब हमला हो गया और निर्दोष लोगों के मारे जाने पर लोग आक्रोशित हैं तो सरकार दौड़-भाग रही है। पहलगाम हमला अमानवीय है, लेकिन इस मामले में हिंदू-मुस्लिम झगड़े को भड़काना उससे भी ज्यादा अमानवीय है। पहलगाम के ग्रामीणों ने तुरंत घायलों और उनके परिवारों की मदद करना शुरू कर दिया। एक स्थानीय युवक सईद हुसैन शाह ने आतंकवादियों का विरोध करने की कोशिश की। जब उन्होंने आतंकियों के हाथ से बंदूक छीनने की कोशिश की तो आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी। सईद ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘ये लोग हमारे मेहमान हैं, इन्हें मत मारो।’ आखिरकार उसे भी अपनी जान गवांनी पड़ी। सईद हिंदू नहीं था, लेकिन आतंकियों ने उसे मार डाला। जबकि सभी पर्यटकों का कहना है कि स्थानीय लोगों ने पहलगाम और उसके आसपास फंसे पर्यटकों की मदद की, बावजूद इसके यह धक्कादायक है कि इस घटना में भी भाजपा का ‘आईटी’ सेल हिंदू-मुसलमान का रंग लगा रहा है। पहलगाम में हमला सिर्फ पर्यटकों पर नहीं, बल्कि हम पर था। कश्मीरी लोगों ने मानवीय भावना व्यक्त करते हुए कहा कि इसमें हम भी घायल हुए हैं, उनकी इन भावनाओं की हमें कदर करनी होगी। हमारी लड़ाई पाकिस्तान और आतंकी गिरोहों से है। अगर कोई इस लड़ाई में भारतीय मुसलमानों और कश्मीरी लोगों को बदनाम करने जा रहा है तो यह मानना ​​होगा कि वे देश की समस्याओं का समाधान नहीं करना चाहते हैं और पुलवामा की तरह पहलगाम का राजनीतिकरण करना चाहते हैं। सरकार को अब केवल राष्ट्रहित के बारे में सोचना चाहिए। हिंदू और मुसलमान आपस में क्या करना है खुद ही समझ लेंगे।

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