खुशहाल देशों की वार्षिक सूची जारी हो गई है और भारत उसमें ११८वें स्थान पर है। यह रैंकिंग संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा तैयार की जाती है। इसलिए भारत में मतदाता सूची की तरह इसमें धांधली होने की संभावना नहीं है। आश्चर्य की बात यह है कि पाकिस्तान और नेपाल जैसे देश भारत से अधिक खुश दिखाए गए हैं। नेपाल ९२वें स्थान पर तो पाकिस्तान १०९वें स्थान पर है। फिनलैंड सबसे खुशहाल देश है, यानी पहले स्थान पर है। उसके बाद डेनमार्क, आइसलैंड, स्वीडन, नीदरलैंड आदि देश हैं। रूस, अमेरिका जैसे देश खुश रहने के मामले में शीर्ष स्थान हासिल नहीं कर सके, लेकिन हमें उससे क्या लेना-देना है? दुनिया के कई देश आतंकवाद से जूझ रहे हैं, लेकिन वे भी ‘खुशी पेट में नहीं समा रही’ की तर्ज पर मस्ती से जी रहे हैं। हमारे देश में भी ८० करोड़ लोगों ने मोदी-योगी प्रायोजित कुंभ स्नान का आनंद लिया, लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई। साधु, संत-महात्माओं ने आशीर्वाद की बारिश की। कुंभ मेले में अरबों का आर्थिक व्यवहार बढ़ा, योगी महाराज ने इसका हिसाब भी दिया। तब भी भारत के चेहरे पर खुशी और लोग खुश हैं, यह संयुक्त राष्ट्र को नहीं दिखा। फिनलैंड पहले स्थान पर है। वहां आर्थिक समृद्धि है, लेकिन फिनलैंड की आबादी में आत्महत्या की प्रवृत्ति अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में बहुत अधिक है। इसके बावजूद इस देश का ‘खुशहाल सूचकांक’ अधिक है। भारत में किसानों और बेरोजगारों में सबसे अधिक आत्महत्याएं हो रही हैं। मोदी २०१४ से ‘अच्छे दिन’ यानी खुशहाल दिन लाने का वादा करते आ रहे हैं पर अब तक
गरीबी और महंगाई पर काबू नहीं
पा सके हैं। ८० करोड़ लोगों को प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार १० किलो मुफ्त अनाज देती है। महाराष्ट्र जैसे राज्य में महिलाओं को १,५०० रुपए देकर गुलाम बना दिया गया है। हिंदुस्थान में जाति, धर्म और भाषा के आधार पर रोज संघर्ष हो रहा है। इससे जनता त्रस्त और तनाव में है। मोदी और उनके पांच-दस उद्योगपति मित्रों को छोड़कर कोई खुश नहीं है। यह दुख अन्य देशों में भी होगा। फिर भी वे देश खुशी के मामले में हमसे आगे हैं। क्योंकि वहां के राजनेता हेराफेरी नहीं करते। वे जनता से झूठ नहीं बोलते। सामान्य जरूरतों को पूरा करने के लिए वहां की जनता को भ्रष्ट तरीकों का सहारा नहीं लेना पड़ता। भारत में व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए गए हैं। इससे लेखक, कलाकार और आम जनता तनाव में जी रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के मूर्ख अंधभक्तों को छोड़ दें तो बाकी जनता सुख के नाम पर शोर मचा रही है। अंधभक्तों के दिमाग और मुंह में धर्म की अफीम की गोली होने के कारण वे मदहोश हैं। यही मदहोशी उन्हें आनंद देती है। पूरी मानवजात, पूरी दुनिया सुख के लिए संघर्ष करती है। सुख पर हर किसी की परिभाषा अलग होती है। संयुक्त राष्ट्र ने जिस रिपोर्ट के आधार पर खुशहाल देशों की सूची तैयार की है, उसके कुछ निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं। कोई देश आर्थिक रूप से समृद्ध है, वहां के घरों से सोने का धुआं निकलता है, इसलिए वहां के लोग खुश हैं ऐसा नहीं है, बल्कि लोगों के बीच आपसी सौहार्द और समाज में
सकारात्मक भूमिका
उन देशों के लोगों के चेहरे पर खुशी लाती है। इन्हीं चीजों का भारतीय समाज में अभाव दिखता है। इसलिए लोगों में नकारात्मकता शक्ति तेजी से बढ़ रही है। खुशहाल देशों को कौन सी परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ता है? विभिन्न धर्म, समाज के लोगों को एक-दूसरे के प्रति विश्वास से देखना पड़ता है। समाज में असमानता और जातिगत भेदभाव है क्या? यह देखा जाता है। समाज ईमानदार है क्या? उदाहरण के लिए, जिन देशों के लोगों को यह विश्वास है कि उनका पर्स या बटुआ खो जाने पर उन्हें वापस मिल सकता है, वे देश खुशहाल और आनंदित माने जा सकते हैं। अभी जारी खुशहाल देशों की सूची में जिन देशों के नाम हैं, वहां चोरी नहीं होती, खोई हुई, भूली हुई चीज वापस मिल जाती है। खुशहाल देशों का सूचकांक ऐसी वजहों से बढ़ता है। हिंदुस्थान में हम यह उम्मीद कर सकते हैं क्या? देश के उद्योगपति बैंकों से कर्ज लेते हैं और डुबा देते हैं। मोदी गुट के २२ उद्योगपतियों के १६ लाख करोड़ रुपए के कर्ज माफ कर दिए गए, लेकिन गरीबों का कर्ज माफ नहीं होता और कर्जबाजारी के चलते उन्हें आत्महत्या करनी पड़ती है। जिन उद्योगपतियों के कर्ज माफ हुए, उनमें अंबानी, जिंदल जैसे उद्योगपति हैं। अमीरों को सभी सुविधाएं और गरीबों को कुछ नहीं। गरीबों ने कुछ मांगा तो उन्हें ‘हिंदू खतरे में’ का डर दिखाकर ‘शांत रहो’ कहा जाता है। इसलिए भारतीय जनता को सुखी और शांत करने की चाबी राजनेताओं को मिली है। प्रधानमंत्री मोदी के प्रवचन, उन प्रवचन पर सिर हिलाने और तालियां बजाने वाले लाखों अंधभक्तों को देखकर सवाल उठता है कि ‘सुख सुख मतलब वास्तव में होता क्या है?’ अपने देश में जो चल रहा है, वही तो सुख होता है! दुनिया को यह दिखाई नहीं देता, यह उनका दृष्टिदोष!