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संपादकीय : छत्रपति को जन्म देने वाले महाराष्ट्र में केंचुओं की पैदाइश क्यों बढ़ी?

जो कोई आ रहा है वह महाराष्ट्र को ज्ञान सिखा रहा है और धमकियां भी दे रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की राजनीति ने महाराष्ट्र को नपुंसक बना दिया है। अन्यथा अमित शाह के महाराष्ट्र आकर दिए गए बयानों पर सामने के मराठी लोग तालियां नहीं बजाते। शिरडी में भाजपा सम्मेलन में अमित शाह ने कहा, ‘महाराष्ट्र में भाजपा को बड़ी जीत मिली। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शरद पवार की राजनीति को २० फीट जमीन में दफन कर दिया। उद्धव ठाकरे की धोखे की राजनीति खत्म हो गई।’ अमित शाह की भाषा अहंकारभरी है। वे महाराष्ट्र की जीत को विनम्रतापूर्वक पचा नहीं पाए और इसी कारण बेताल हो गए हैं। शरद पवार और उद्धव ठाकरे की आलोचना करना भाजपा की रोजी-रोटी है। लोकतंत्र में आलोचना का स्थान है। क्या यह सच नहीं है कि अमित शाह जिस मंच से दगाबाजी पर प्रवचन झाड़ रहे हैं, उस मंच पर आधे से अधिक नेता ‘दगाबाजी’ करके ही भाजपा के मंच पर विराजमान हुए थे और उसके लिए अमित शाह को ईडी, सीबीआई के बांबू का इस्तेमाल करना पड़ा? जब शिवसेना और भाजपा २५ वर्षों तक साथ थे उस वक्त शायद अमित शाह राजनीति में भी नहीं रहे होंगे। १९७८ में जनसंघ की मदद से शरद पवार पहली दफा मुख्यमंत्री बने और जब पवार के मंत्रिमंडल में जनसंघ था, तब भी अमित शाह शायद ‘चड्ढी’ में घूम रहे होंगे। यह एक रिश्ता था। अब जो लोग महाविजय के उन्माद में हैं उन्हें यह सच्चाई जान लेनी चाहिए कि उद्धव ठाकरे और शरद पवार को भारतीय जनता पार्टी ने नहीं हराया है। अगर आप ये समझना चाहते हैं कि भाजपा की इतनी बड़ी जीत वैâसे हुई तो श्री. शाह को सोलापुर जिले के मरकडवाड़ी जाना चाहिए और वहां के लोगों से बात करनी चाहिए। गांव ने ईवीएम वोटिंग के खिलाफ विद्रोह कर दिया और जब गांव ने खुद ही बैलेट पेपर पर चुनाव कराने की तैयारी की तो केंद्रीय पुलिस बल ने गांव पर धारा १४४ लाद दी। भारत का
चुनाव आयोग सच्चा
होता और अगर अमित शाह की पार्टी को मिले मतदान पर विश्वास होता तो वे यह आतंक और कायरता नहीं दिखाते। यदि भाजपा में हिम्मत है तो वह देश में ‘बैलेट पेपर’ पर चुनाव कराए। मोदी-शाह ये साहस कभी नहीं दिखाएंगे। भाजपा और उसके तथाकथित सहयोगियों ने वैâसे महाविजय हासिल की, इसका प्रत्यक्ष दर्शन देश की जनता ने परली विधानसभा में किया। हाथों में पिस्तौल, लाठियां और तलवारें लेकर ‘मुंडे’ के लोग मतदान केंद्र के बाहर खड़े रहे और लोगों को वोट नहीं देने दिया। महाराष्ट्र की ९५ विधानसभाओं की व्यवस्था पर इस तरह से कब्जा कर भाजपा ने महाविजय हासिल की और देश के गृहमंत्री साई दरबार में आकर इस भीड़तंत्र-गुंडागर्दी की प्रशंसा करते हैं। अब अमित शाह ने इसी भीड़तंत्र के बल पर ‘शत-प्रतिशत भाजपा’ का नारा दिया है, तो अजीत पवार और एकनाथ शिंदे के गुट क्या करेंगे? उनका भविष्य क्या है? मतदाता सूची में वास्तविक मतदाताओं के नाम हटाकर प्रत्येक बूथ के हिसाब से १००-१५० फर्जी मतदाता जोड़ने और इसी तरीके से प्रत्येक विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र की फेहरिस्त में २५-३० हजार बोगस मतदाताओं की गड़बड़ी करने वाले ‘वर्कशॉप’ भाजपा ने किए और उसी के बल पर ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ कार्यक्रम लागू किया गया। इस फर्जी वोटर लिस्ट पर काम करने के लिए संघ के लोगों को नियुक्त किया गया था। ये है भाजपा की महाविजय का गणित और ये फर्जी काम कोई व्यापारी वृत्ति वाला राजनेता ही कर सकता है। महाराष्ट्र में ही नहीं, भारत में विपक्षी दल को दवा तक के लिए नहीं छोड़ना है, ग्रामीण स्तर से लेकर संसद तक भाजपा ही जीतेगी, विपक्ष को एक भी सीट नहीं जीतने देना है ऐसा अमित शाह ने तय किया है। यानी कि उन्होंने यह एक तरह से
आतंक की राजनीति का
आगाज ही कर दिया है। इस तथ्य को समझना जरूरी है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा भारत में लोकतंत्र को खत्म करने और आजादी का गला घोंटने वाली राजनीति शुरू किए जाने के चलते ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में मोदी को नहीं बुलाया गया। भारतीय स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संविधान से दगाबाजी हर स्तर पर चल रही है। मोदी-शाह की राजनीति उद्योगपति अडानी के हित में है। उसके लिए आए दिन देश की तिजोरी पर हमला किया जा रहा है। यह भारतमाता से ही दगाबाजी है, विश्वासघात है। उसी भारतमाता को अपमानित करके अमित शाह महाराष्ट्र में दगाबाजी पर प्रवचन झाड़ रहे हैं। अमित शाह न तो चाणक्य हैं और न ही बलवान। अगर उनके हाथ और सिर में ईडी और सीबीआई की ताकत न होती तो अमित शाह को कोई नहीं पूछता। दूसरा ये कि हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे और श्री. शरद पवार ने संकट के समय मोदी-शाह की मदद की। इसकी कीमत उन्होंने दोनों की पार्टियों में फूट डालकर चुकाई। क्या यह धोखा, दगाबाजी नहीं है? महाराष्ट्र अपनी विनम्र, सभ्य और स्वाभिमानी राजनीति के लिए जाना जाता है। अमित शाह की राजनीति ने महाराष्ट्र की सभ्यता पर दाग लगा दिया है। यह त्रिकाल सत्य है कि कभी छत्रपति शिवराय को जन्म देने वाले इस महाराष्ट्र में अमित शाह ने ‘कायर’ और ‘केंचुए’ पैदा किए, लेकिन इस दुनिया में कोई भी अमर पट्टा लेकर नहीं आया और यहां तक ​​कि खुद अमित शाह भी अमृत प्राशन कर पैदा नहीं हुए। राम-कृष्ण भी आए और चले गए तो यहां तुम कौन हो?

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