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संपादकीय : क्या इस तरह से टिकेगा राज्य?

‘आचार संहिता लागू हो रही हैऽऽ’ इस डर से शिंदे सरकार रोजाना कैबिनेट बैठकें कर रही है और फैसलों का अंबार लगा रही है। साथ-साथ, कई परियोजनाओं का भूमिपूजन और लोकार्पण समारोह आयोजित किया जा रहा है। सच कहा जाए तो मौजूदा कैबिनेट बैठकों और बैठकों में थोक के भाव निर्णय उपहास का विषय बन गए हैं। जिस तरह से हर दिन कैबिनेट की बैठकें हो रही हैं, अगर इस डर से कि कल आचार संहिता लग जाएगी, एक घंटे में भी कैबिनेट मीटिंग हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सोमवार को कैबिनेट हुई। मुख्यमंत्री ने मुंबई में सभी पांच नाकों पर ‘टोल’ माफ करने के फैसले की घोषणा करके एक मास्टर स्ट्रोक मारा है कुछ इस तरह से हंगामा बरपाया गया जैसे बहुत बड़ा काम कर दिया हो। राज ठाकरे के लोग इस टोल माफी का श्रेय भी ले रहे हैं। टोल आदि माफ कर दिया गया यह ठीक है, लेकिन मुंबई और महाराष्ट्र में सड़क निर्माण के काम में जो भ्रष्टाचार हुआ और उसके कारण जगह-जगह जो गड्ढे हो गए, उसका क्या करें? समृद्धि हाई-वे पर मरम्मत करने की जरूरत पड़ी, अटल सेतु में दरार पड़ गई। मुंबई-नासिक, मुंबई-गोवा, मुंबई-पुणे की सड़कें क्षतिग्रस्त हो गईं। ये सब क्यों हुआ? क्योंकि सड़क कार्यों के लिए हजारों करोड़ रुपए स्वीकृत कर उसका पचास प्रतिशत ठेकेदारों के माध्यम से वसूलने की मंशा से राज्य में वसूली सरकार चलाई जा रही है। निर्णयों के मामले में शिंदे सरकार का वर्तमान में जो चल रहा है उसका कोई तोड़ नहीं है। सोमवार को कैबिनेट मीटिंग में विभिन्न सिंचाई योजनाएं, प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) २.०, पुणे मेट्रो रेलवे लाइन के दूसरे चरण के काम को मंजूरी, कौशल विश्वविद्यालय के लिए रतन टाटा का नाम जैसे कई फैसले लिए गए। लेकिन क्या इन फैसलों को लागू करने के लिए सरकार की तिजोरी में पैसा है? फिर भी शिंदे सरकार की चुनावी जुमलेबाजी जोरों पर चल रही है। सरकार ने मुंबई में प्रवेश करने वाले टोल बूथों पर टोल माफ करके भी ऐसा ही किया है। दरअसल, मुंबई आने वाली सड़कों पर टोल बंद करने में एग्रीमेंट के नियम और शर्तें परेशानी का सबब हैं, ऐसा जब देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने कहा था। तो इन नियमों तथा शर्तों और टोल बंद करने पर सरकार को जो हजारों करोड़ का मुआवजा देना होगा उसका क्या हुआ? इस टोल माफी से राज्य पर फिर से पड़ने वाले ५,००० करोड़ के बोझ का क्या? दूसरी ओर, इस सरकार ने राज्य में सभी जातियों और उपजातियों के विकास के लिए आर्थिक विकास मंडलों की घोषणा की है, लेकिन उस बाबत वित्तीय प्रावधान वैâसे किया जाएगा? हुक्मरान इसका खुलासा नहीं करते। फिर से, शासक राज्य में ईसाई समुदाय को भूल गए हैं। राज्य के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले ईसाई समुदायों की भी कई आर्थिक समस्याएं हैं। कई ईसाई भाइयों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, लेकिन उस समुदाय के आर्थिक उत्थान के लिए एक मंडल नियुक्त किया जाना चाहिए, शिंदे सरकार ने यह नहीं सोचा। यह भेदभाव क्यों? सरकार का इस तरह उल्टा कारभार शुरू है। रोज कैबिनेट की बैठकें कर फैसले लिए जा रहे हैं, लेकिन उन फैसलों की जानकारी राज्य के वित्तमंत्री को ही नहीं होती। कुल मिलाकर बुझने से पहले दीया जिस तरह बड़ा होता है कुछ ऐसा ही चल रहा है। लाडली बहन योजना सिर्फ चुनाव के लिए है। इस योजना के माध्यम से बहनों के वोट वसूलने का काम जोर-शोर से चल रहा है। यह ध्यान रखना चाहिए कि लोकप्रिय निर्णय लेते समय राज्य का आर्थिक अनुशासन नष्ट न हो जाए। मूलत: सरकार पिछली कई घोषणाओं को पूरा नहीं कर पाई है। मुख्यमंत्री मिंधे ने आईसीसी-२० वर्ल्ड कप क्रिकेट में विश्व विजेता भारतीय टीम के कप्तान रोहित शर्मा समेत चार क्रिकेटरों सूर्यकुमार यादव, शिवम दुबे, यशस्वी जैसवाल को एक करोड़ रुपए का इनाम देने की घोषणा की थी, लेकिन कहा जा रहा है कि इन खिलाड़ियों को राज्य सरकार से यह राशि अभी तक नहीं मिली है। जनवरी में दावोस में हुए सम्मेलन में शिंदे की सरकार में शामिल कई लोगों ने ‘जिंदगी का स्विट्जरलैंड’ बना दिया था, लेकिन करोड़ों रुपए के खर्च का बिल, कइयों की देनदारी सरकार ने रोक रखी है। यदि आपके पास पुराने भुगतान करने के लिए ही पैसे नहीं हैं, तो आप घोषणाओं पर घोषणाएं क्यों कर रहे हैं? चुनाव आते ही घोषणाएं की जाती हैं और आचार संहिता लगते ही वे सूखे कचरे की तरह उड़ जाती हैं। किसानों के मामले में सरकार क्या करेगी, यह कोई मजबूती से नहीं कहता। धारावीकरों का पुनर्वास भी अधर में है। लेकिन शिंदे कैबिनेट ने मुंबई के सभी महत्वपूर्ण भूखंड अडानी की जेब में डालने का भी फैसला किया। लाडली बहनों के मुंबई शहर को इस तरह से अडानी को बतौर दान दे दिया गया। टोल माफ कर दिया गया, लेकिन शिंदे कैबिनेट ने मुंबई का स्वामित्व अडानी को देकर महाराष्ट्र के १०६ शहीदों का अपमान किया। पिछले महीने कैबिनेट के सभी फैसले केवल राजनीतिक स्वार्थ और कुर्सी के लालच के लिए लिए गए, लेकिन श्री फडणवीस कहते हैं, ‘पवार को केवल कुर्सी दिखती है।’ फडणवीस ने एक महान दर्शन प्रस्तुत करने का नाटक किया, ठीक है, लेकिन आपको क्या दिखाई देता हैं? या आपकी नजर में ठाकरे-पवार के प्रति द्वेष बढ़ गया है? गृहमंत्री फडणवीस अपना काम छोड़कर प्रपंचों में लगे हुए हैं। गृह विभाग के काम की धज्जियां रोज उड़ रही हैं। राज्य के बड़े-बड़े नेताओं की सरेआम सड़कों पर हत्या हो रही है। ऐसा नहीं लगता कि कैबिनेट की बैठक में इस पर कोई चर्चा हुई हो और इस पर कोई निर्णय लिया गया हो कि मुंबई और महाराष्ट्र में कानून व्यवस्था इतनी खराब क्यों हो गई है। ऐसी तस्वीर दिखाई देती है जैसे कि टोल माफी की तरह कई हत्यारों, बलात्कारियों, गुंडों के गिरोह के सरगनाओं को ‘माफी’ देने का फैसला मानो शिंदे कैबिनेट में लिया गया है और इसका ‘जीआर’ यानी सरकारी आदेश सभी पुलिस स्टेशनों को भेज दिया गया है। कुल मिलाकर महाराष्ट्र राज्य की कैबिनेट और कैबिनेट के फैसले देशभर में मजाक का विषय बन गए हैं। राज्य की इतनी दुर्गति और उपहास कभी नहीं हुआ। कैबिनेट की बैठकों के दौर और फैसलों की बौछार को देखकर सवाल उठ खड़ा होता है कि क्या इस तरह से ये राज्य टिकेगा।

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