सामना संवाददाता / मुंबई
राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता डॉ. योगेश दुबे की याचिका केस क्रमांक 367/90/0/2025 दाखिल करने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने देश भर की विभिन्न जेलों में महिला कैदियों और उनके बच्चों सहित सभी कैदियों की कठिनाइयों पर संज्ञान लिया है। रिपोर्ट में महिला कैदियों और शिशुओं के साथ रहने वाली महिलाओं, दोषी और विचाराधीन महिला कैदियों, साथ ही एक वर्ष से अधिक समय से जेलों में बंद विचाराधीन महिला और पुरुष कैदियों की संख्या शामिल होनी चाहिए|
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने देश भर की जेलों में महिला कैदियों और उनके बच्चों सहित सभी कैदियों की विभिन्न कठिनाइयों पर बड़ी कार्यवाही की है। इनमें जेलों में क्षमता से अधिक कैदी होना, आधारभूत सुविधाओं और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव शामिल है| देश भर की विभिन्न जेलों का दौरा करने के बाद अपनी रिपोर्ट के साथ-साथ शिकायतों के माध्यम से श्री दुबे की रिपोर्ट द्वारा इन मुद्दों को आयोग के संज्ञान में लाया गया है|इस पर विशेष अध्ययन भी किया गया है, जिसमे कई मुद्दों को अहम् रूप से
दुबे द्वारा उठाया गया है
महिला कैदियों की गरिमा और सुरक्षा के अधिकारों का उल्लंघन, उनके खिलाफ बढ़ती हिंसा के कारण मानसिक कष्ट, पर्याप्त शौचालय, सैनिटरी नैपकिन, स्वच्छ पेयजल सुविधाओं के बिना अस्वास्थ्यकर स्थिति, खराब गुणवत्ता वाला भोजन जिसके कारण विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण, जेलों में उनके साथ रहने वाली महिला कैदियों के बच्चों के लिए शिक्षा के अवसरों की कमी, कानूनी सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण और पुनर्वास सहित उनके कल्याण कार्यक्रमों का कार्यान्वयन न होना अन्य चिंताओं में शामिल हैं इसलिए आयोग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए नोटिस जारी किया है। इसके पहले भी डॉ योगेश दुबे द्वारा जेलों में बंद बुजुर्ग कैदियों के लिए विशेष प्रयत्न निरंतर किये गए थे। पूर्व मे भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात के दौरान डॉ. योगेश दुबे ने उनका ध्यान भारत की जेलों में बंद बुजुर्ग कैदियों की तरफ दिलाते हुए कहा था कि सजा पूरी हो जाने के बावजूद जुर्माना न भरने के कारण अनेक बुजुर्ग कैदी जेलों की सजा काटने के लिए विवश हैं।
उन्होंने ऐसे कैदियों को नियमपूर्वक रिहा किए जाने की अपील की, ताकि वे अपने बचे हुए जीवन को अपने परिवार के साथ बिता सकें। साथ ही उन्होंने दिव्यांग लोगों को और अधिक सशक्तिकरण किए जाने तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनाए जाने की दिशा में उन्हें रोजगार देने तथा सरकारी नौकरियों में उनका आरक्षित कोटा भरने की अपील करते हुए कहा कि अभी भी दिव्यांग जनों को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है |