छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार में इमरजेंसी सेवा पर ही इमरजेंसी लग गई है। सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन ऐसा ही हो रहा है। इमरजेंसी सेवा धूल खा रही है। इस स्थिति में एक दो नहीं बल्कि पूरी ४०० गाड़ियां हैं। एक तरफ सरकार कर्ज के बोझ से दबी जा रही है तो दूसरी तरफ पिछली सरकार से मिलीं ४० करोड़ की गाड़ियों की सुध भी नहीं ली जा रही। हैरानी की बात है कि सरकार तो नई है, लेकिन अफसर और सिस्टम तो पुराना है। क्या कोई भी इनकी सुध लेने वाला नहीं है। दरअसल, छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में सुरक्षा बल के परिसर में ४०० महिंद्रा बोलेरो एसयूवी बिना इस्तेमाल के सड़ रही हैं। ये गाड़ियां पिछले साल राज्य के २२ शहरों में इमरजेंसी डायल-११२ सर्विस के लिए खरीदी गई थीं। इनका काम एसओएस कॉल का जवाब देना था, जिसमें लोगों को अस्पताल ले जाना और आपदा प्रक्रिया में सहायता करना शामिल था। छत्तीसगढ़ में डायल-११२ आपातकालीन सेवा परियोजना के लिए २०२३ में खरीदे गए ४०० बोलेरो वाहन रायपुर में सीएएफ (छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल) के अमलेश्वर बटालियन मैदान में बेकार पड़े हैं और खराब हो रहे हैं। १५ महीने बाद भी ये गाड़ियां बिना इस्तेमाल के पड़ी हैं, धूल से ढकी हुई हैं, उनके टायर क्षतिग्रस्त हैं, बैटरियां खत्म हो चुकी हैं और तारों में चूहे घुसे हुए हैं। एक तरफ जहां ये ४०० गाड़ियां मैदान में बेकार पड़ी धूल खा रही हैं, वहीं राज्य के कई हिस्सों में आपदा प्रक्रिया में बड़ी खामियां और आपातकाल के दौरान सार्वजनिक वाहनों की अनुपलब्धता के उदाहरण देखने को मिल रहे हैं।
कांग्रेस द्वारा लाई गई डायल-११२ परियोजना हुई ठप
दरअसल, दिसंबर २०२३ में भाजपा के सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार द्वारा लाई गई डायल-११२ विस्तार परियोजना ठप हो गई थी। नई सरकार ने अनुबंधित कंपनी को डिफॉल्टर करार देते हुए कांग्रेस शासन में जारी टेंडर को रद्द कर दिया था, जिसके बाद से कांगेस और बीजेपी इस मुद्दे पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं। अभी तक कोई नया टेंडर जारी नहीं किया गया है, जिससे वाहन बेकार पड़े हैं और राज्य के ३४ जिलों में से केवल ११ में ही इमरजेंसी सर्विस चालू हैं।