डांस बार मुद्दे पर याचिका हुई रद्द
सामना संवाददाता / मुंबई
किसी डांस बार में महिलाओं को अश्लील तरीके से डांस करने के लिए प्रोत्साहित करना अपराध नहीं है। दरअसल, हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह कृत्य भारतीय दंड संहिता की धारा २९४ के तहत अश्लीलता के दायरे में नहीं आता है। साथ ही इस मामले में एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज मुकदमा भी रद्द कर दिया।
भारतीय दंड संहिता की धारा २९४ के अनुसार, किसी व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक स्थान पर अश्लील हरकतें करना या गाना गाना, अश्लील शब्द बोलना अपराध है। कांदिवली स्थित याचिकाकर्ता मितेश पुनमिया को इनमें से कुछ भी करते हुए नहीं पाया गया। इसलिए, जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस नीला गोखले की पीठ ने स्पष्ट किया कि फरवरी २०१६ में उनके खिलाफ दायर मामला रद्द किया जा रहा है।
पुलिस द्वारा दर्ज की गई शिकायत के अनुसार, सी प्रिंसेस बार एंड रेस्तरां पर फरवरी २०१६ में मुंबई पुलिस के सामाजिक कार्य विभाग द्वारा छापा मारा गया था। उस बार में कुछ आपत्तिजनक गतिविधियां होने की सूचना मिलने के बाद पुलिस ने छापेमारी की तभी उन्होंने देखा कि कुछ महिलाएं अश्लील डांस कर रही हैं, ग्राहक उनकी ओर नोट बढ़ा रहे हैं और पुरुष कर्मचारी पैसे वसूल रहे हैं। ग्राहकों को अश्लील इशारे करते और नृत्य कर रही महिलाओं को प्रोत्साहित करते हुए भी देखा गया। पुलिस ने दावा किया था कि याचिकाकर्ता भी उनमें से एक था।
दूसरी ओर, बार में आपकी मात्र उपस्थिति आप पर अश्लीलता के अपराध का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसे नृत्य करने वाली महिला की ओर पैसे देते या अश्लील इशारे करते हुए नहीं पाया गया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्क को भी स्वीकार कर लिया और इसी तरह के एक मामले में हाई कोर्ट द्वारा दिए गए पैâसले के आधार पर उसके खिलाफ मामला रद्द कर दिया।
इस बीच, याचिकाकर्ता ने इस मामले में पुलिस द्वारा दर्ज किए गए मामले को रद्द करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।