वातावरण

वातावरण सुहाना आया।
अब की इस बरसात में।।
नई रोशनी चमक रही है।
आज घनेरी रात में।।
रोता है विकलांग आदमी।
अपनों की बारात में।।
संख्याबल जो मिला हुआ है।
वह शायद सौगात में।।
खड़ी दुपहरी बोल रही है।
मौसम है आयात में।।
हम तो हरदम फंसे हुए हैं।।
बेशरमी की बात में।।
बातें तो अब बहुत हो गईं।
क्या रक्खा है बात में।।
कर्म हमारा फंसा हुआ है।
मुश्किल झंझावात में।।
थर्मामीटर लगा हुआ है।
अब मेरी औकात में।।
माप रहा है ताकतवाला।
हरदम यातायात में ।।
क्या करना है तुम्हीं बताओ।
अब अंतिम बेबात में।।
-अन्वेषी

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