सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई आज एक बड़े निर्माण स्थल में तब्दील हो चुका है। हर गली, हर मोड़ पर खुदाई, मलबा और अधूरी सड़कें लोगों के सब्र का इम्तिहान ले रही हैं। महानगरपालिका दावा करती है कि शहर की सड़कों को कंक्रीट का बना रही है, लेकिन असल में तस्वीर कुछ और ही बयां करती है।
रिपोर्ट की मानें तो मनपा का कहना है कि ४१३ किलोमीटर सड़कें कंक्रीट की बनाई जाएंगी, लेकिन इसके लिए जिस तरह से बिना पूर्व योजना, समन्वय और पारदर्शिता के काम हो रहा है, वह कई सवाल खड़े करता है। बार-बार एक ही जगह खुदाई, बिना किसी चेतावनी के रास्ते बंद करना और निर्माण कार्यों में गुणवत्ता की भारी कमी लोगों को परेशान कर रही है।
सबसे गंभीर बात यह है कि नागरिकों की पहुंच और सुरक्षा को नजरअंदाज किया गया है। फुटपाथों का अस्तित्व जैसे खत्म हो चुका है। न तो दिव्यांगों के लिए सुविधाएं हैं, न ही बुजुर्गों या बच्चों के लिए कोई सुरक्षित रास्ता। कई इलाकों में न साइनबोर्ड हैं, न ट्रैफिक कंट्रोल, जिससे हादसों का खतरा बढ़ गया है। एक और अहम पहलू है-पारदर्शिता की कमी। नागरिक यह नहीं जान पाते कि किस ठेकेदार को काम मिला है, कब सड़क बनाई गई थी और उसकी गारंटी क्या है। विकास का अर्थ सिर्फ कंक्रीट बिछाना नहीं, बल्कि जीवन को सरल और सुरक्षित बनाना है। मनपा को चाहिए कि वह योजनाएं जमीनी हकीकत को समझकर बनाए, तकनीकी विशेषज्ञों और जनता को साथ लेकर चले।