मुख्यपृष्ठस्तंभउड़ता तीर : धर्म-नगरियों में शराबबंदी!

उड़ता तीर : धर्म-नगरियों में शराबबंदी!

प्रमोद भार्गव

अप्रैल-फूल!
मध्य-प्रदेश सरकार ने महाकाल उज्जैन और ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग समेत प्रदेश के १७ धार्मिक नगरों में पूरी तरह शराबबंदी लागू करने का निर्णय ले लिया है। एक अप्रैल २०२५ से इस पैâसले पर अमल शुरू हो जाएगा। इन नगरों को पवित्र क्षेत्र घोषित किया गया है। इस शराबबंदी से ४०० करोड़ रुपए का राजस्व घाटा होने की उम्मीद जताई गई है। इस घाटे की भरपाई आबकारी विभाग दुकानों के नवीनीकरण में २० प्रतिशत दर बढ़ाकर करेगा। इस नीति में यह शर्त भी जोड़ी गई है कि जिले की ८० प्रतिशत दुकानों की दर २० प्रतिशत बढ़ाकर नवीनीकृत कर दी जाएंगी। फिलहाल, प्रदेश सरकार को शराब से १३,९४१ करोड़ रुपए की आय होती है। नई शराब नीति में जो २० प्रतिशत की लाइसेंस शुल्क बढ़ाई गई है, उससे २,७८८ करोड़ रुपए अतिरिक्त मिलेंगे। इस राजस्व के १६,३२९ करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। जिन नगरों में शराबबंदी की गई है, वह केवल नगरीय निकाय सीमा के भीतर हैं। अतएव निकाय सीमा से बाहर होते ही आसानी से शराब मिल जाएगी। होम बार भी चालू रहेंगे। मसलन, घर में शराब लाकर पीने की सुविधा पूर्वत: जारी रहेगी। उज्जैन में भगवान कालभैरव भोग के रूप में शराब का सेवन करते हैं। यहां पर दो दुकानें खुली हैं। इन दुकानों में भी प्रसाद के रूप में शराब की बिक्री जारी रहेगी। यानी शराबबंदी भले ही कर दी गई है, लेकिन मदिरा की वैध उपलब्धता ५ से १० किमी की दूरी पर बनी रहेगी।
कुटिल चतुर शिवराज!
बहरहाल, ऐसा लगता है कि उमा भारती की शराबबंदी की बुलंदी नक्कारखाने की तूती बनकर रह गई है, क्योंकि जो शराब की दुकानें और शराब बिक्री के लिए नई आबकारी नीति सामने आई है, उसमें उमा भारती की धमकी के बाद भी सरकार ने कोई विशेष फेरबदल नहीं किया है। हां, अहाते जरूर बंद करने का पैâसला लिया गया है। तत्कालीन शिवराज मंत्रिमंडल द्वारा पारित इस आबकारी नीति में अनेक ऐसे लोचा हैं, जो सवाल खड़े करते हैं। नीति में यह स्पष्ट नहीं है कि जो शुष्क दिन हैं, मसलन गांधी जयंती, १५ अगस्त, २६ जनवरी, होली और चुनाव प्रक्रिया के दौरान घरों में शराब का बार खोलने की जो छूट चली आ रही है, वह यथावत जारी रहेगी। होम-बार की आड़ में उज्जैन, ओरछा, ओमकारेश्वर जैसे पवित्र नगरों में भी शराबखोरी चलती रहेगी। हालांकि, सरकार ने प्रत्यक्ष तौर पर कोई भी नई दुकान खोलने का निर्णय नहीं लिया है, परंतु पिछले दरवाजे से शराब बेचने की पगडंडियां पूर्व की तरह खुली रहेंगी। देसी शराब की दुकान पर विदेशी और विदेशी शराब की दुकान पर देसी शराब बेची जाती रहेगी। पैâसले से स्पष्ट होता है कि सरकार ने तकनीकी रूप से कानूनी झोल की सुविधा बरकरार रखकर यथास्थिति बनाए रखी है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती जब शराबबंदी के लिए शिवराज सरकार से लड़ रही थीं, तब अत्यंत कुटिल चतुराई से शिवराज ने ऐसी नीति बनाई थी कि सांप भी मार जाए और लाठी भी न टूटे। भारती ने खासतौर से ओरछा में राम राजा मंदिर के निकट खुली शराब की दुकान बंद करने की मुहिम चलाई हुई थी।
शराब का बायपास
शराबबंदी को लेकर अकसर यह प्रश्न खड़ा किया जाता है कि इससे होनेवाले राजस्व की भरपाई वैâसे होगी और शराब तस्करी को वैâसे रोकेंगे? ये चुनौतियां अपनी जगह वाजिब हो सकती हैं, लेकिन शराब के दुष्प्रभावों पर जो अध्ययन किए गए हैं, उनसे पता चलता है कि उससे कहीं ज्यादा खर्च इससे उपजने वाली बीमारियों और नशामुक्ति अभियानों पर हो जाता है। इसके अलावा पारिवारिक और सामाजिक समस्याएं भी नए-नए रूपों में सुरसामुख बनी रहती हैं। घरेलू हिंसा से लेकर कई अपराधों और जानलेवा सड़क दुर्घटनाओं की वजह भी शराब बनती है। यही कारण है कि शराब के विरुद्ध खासकर ग्रामीण परिवेश की महिलाएं मुखर आंदोलन चलाती रहती हैं इसीलिए महात्मा गांधी ने शराब के सेवन को एक बड़ी सामाजिक बुराई माना था। उन्होंने स्वतंत्र भारत में संपूर्ण शराबबंदी लागू करने की पैरवी की थी। ‘यंग इंडिया’ में गांधीजी ने लिखा था, ‘अगर मैं केवल एक घंटे के लिए भारत का सर्वशक्तिमान शासक बन जाऊं तो पहला काम यह करूंगा कि शराब की सभी दुकानें, बिना कोई मुआवजा दिए तुरंत बंद करा दूंगा।’ बावजूद गांधी के इस देश में सभी राजनीतिक दल चुनाव में शराब बांटकर मतदाता को लुभाने का काम करते हैं। ऐसा दिशाहीन नेतृत्व देश का भविष्य बनानेवाली पीढ़ियों का ही भविष्य चौपट करने का काम कर रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने शराब पर अंकुश लगाने की दृष्टि से राष्ट्रीय राजमार्गों पर शराब की दुकानें खोलने पर रोक लगा दी थी, किंतु सभी दलों के राजनीतिक नेतृत्व ने चतुराई बरतते हुए नगर और महानगरों से जो नए वायपास बने हैं, उन्हें राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करने की अधिसूचना जारी कर दी और पुराने राष्ट्रीय राजमार्गों का इस श्रेणी से विलोपीकरण कर दिया। मध्य-प्रदेश में भी यही किया गया। साफ है, शराब की नीतियां शराब कारोबारियों के हित दृष्टिगत रखते हुए बनाई जा रही हैं। जाहिर है कि शराब माफिया सरकार पर भारी हैं।
(लेखक, वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार)

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