मुख्यपृष्ठस्तंभउड़ता तीर : पाकिस्तान में ट्रेन हाईजैक ...बोया पेड़ बबूल का...!!

उड़ता तीर : पाकिस्तान में ट्रेन हाईजैक …बोया पेड़ बबूल का…!!

वीना गौतम

बीएलए का पलटवार
कुदरत का पुराना नियम है, ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।’ अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही आतंक का निर्यात कर रहे पाकिस्तान को यह बात आज तक समझ में नहीं आई कि खुद उसे आग से खेलने के इस आतंकी खेल की कितनी कीमत चुकानी पड़ी है?
पाकिस्तान में क्वेटा से चलकर पेशावर जानेवाली जाफर एक्सप्रेस ११ मार्च, २०२५ को सुबह ९ बजे क्वेटा से रवाना हुई थी। इसके सिबि पहुंचने का समय दोपहर १.३० बजे का था, लेकिन सिबि पहुंचे इसके पहले ही दोपहर करीब एक बजे बलूचिस्तान के बोलान जिले के माशकाफ इलाके में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी डीबीएलए के आतंकियों ने इसे हाईजैक कर लिया। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक करीब २६ घंटे से ज्यादा समय बीत चुका था, लेकिन पाक सेना बलूच विद्रोहियों के कब्जे से ट्रेन को अब तक छुड़ा नहीं पाई थी, जबकि अब तक पाकिस्तान से आनेवाली खबरों के मुताबिक ३० सैनिक, १६ आतंकी और तीन अन्य लोग मारे जा चुके थे। खबरों के मुताबिक, जिसमें ट्रेन का ड्राइवर भी शामिल था। जिस जगह घात लगाकर आतंकियों ने ट्रेन को हाईजैक किया है, वह जगह तीन तरफ पहाड़ और एक तरफ सुरंग से घिरी है। ऐसे में आतंकियों ने पाक सेना की तमाम कोशिशों को उन तक पहुंचने से नाकाम कर दिया है। ऐसे में पाकिस्तानी सेना का यह दावा भी सवालों से घिर गया है कि उसने १६ आतंकियों को मार गिराया है। ट्रेन से इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जो १०४ बंधक रिहा होकर आए थे, उनके मुताबिक उन्हें आतंकियों ने ही दया पर छोड़ा है, जबकि पाकिस्तानी सुरक्षा बल उससे एक किलोमीटर की दूरी पर ही डेरा डाले हुए हैं। हालांकि, इन रिहा हुए बंधकों के मुताबिक, यह भी सच है कि हाईजैक इलाके में पाकिस्तान सेना के जेट विमान, गन फ्लाइट हेलिकॉप्टर और अनेक ड्रोन मौजूद हैं, लेकिन जाफर एक्सप्रेस पर विद्रोहियों का ही कब्जा है। रिहा हुए बंधकों के मुताबिक, १२ मार्च, २०२५ की सुबह ७ बजे तक एक भी पाक सैनिक ट्रेन में नहीं था।
आतंक की पैâक्टरी
हालांकि, जल्द ही कोई न कोई वह पल आएगा, जब ट्रेन मुक्त होगी और पाक सेना ट्रेन पर कब्जा करेगी, लेकिन वह पल कितनी खूनी कीमत लेगा यह वक्त बताएगा। बीएलए ने बंधक बनाए गए पैसेंजर्स को युद्धबंदी कहा है और इनके बदले पाकिस्तान की जेलों में बंद बलूच कार्यकर्ताओं, राजनैतिक वैâदियों, गायब लोगों, लड़ाकों और अलगाववादी नेताओं की बिना शर्त रिहाई की मांग की है। इसके लिए बीएलए ने मंगलवार रात १० बजे पाकिस्तान सरकार को ४८ घंटे का अल्टीमेटम दिया है। बीएलए का कहना है कि यह पैâसला बदलेगा नहीं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक रिहा किए गए ५८ पुरुष, ३१ महिलाओं और १५ बच्चों ने भी आतंकियों के इरादों को पक्का और खूंखार बताया है। पाकिस्तान के मंत्री मोहसिन नकवी ने कहा है कि हम ऐसे जानवरों से कोई समझौता नहीं करेंगे, जिन्होंने बेकसूर यात्रियों पर गोलीबारी की, लेकिन आज ऐसी सैद्धांतिक जुबान बोलने वाले पाकिस्तानी मंत्री और पाक सरकार को तब ये जुमले और सिद्धांत याद क्यों नहीं आते जब वह पूरी दुनिया, खासकर पड़ोसी देश भारत में आतंक का निर्यात करते हैं। हालांकि, कुदरत का पुराना नियम है, ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।’ अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही आतंक का निर्यात कर रहे पाकिस्तान को यह बात आज तक समझ में नहीं आई कि खुद उसे आग से खेलने के इस आतंकी खेल की कितनी कीमत चुकानी पड़ी है? दशकों से आतंकवाद को एक रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे पाकिस्तान ने इस खूनी खेल में आज तक जितना गंवाया है, उतना शायद ही किसी दूसरे देश ने खोया हो। पाकिस्तान ने इस खूनी आतंक की अब तक आर्थिक, सामाजिक और अपनी अंतर्राष्ट्रीय साख के मिट्टी में मिलने की हद तक जितनी कीमत चुकाई है उतनी कीमत उसके पड़ोसी अफगानिस्तान तक ने भी नहीं चुकाई। आतंकवाद और अस्थिरता के कारण आज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इतनी बुरी तरह से टूट चुकी है कि पाकिस्तान को दुनिया के तमाम देश किसी भी कीमत पर कर्ज देने तक को राजी नहीं हैं, यहां तक कि मुस्लिम देश भी। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के अनुसार, साल २००१ से २०२३ तक पाकिस्तान ने १५०-१७० बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान झेला है, जबकि वह टर्की से लेकर सऊदी अरब तक से पांच अरब डॉलर की मदद के लिए चिरौरी, विनती करते घूमता है।
नहीं सुधरेगा
इसी खूनी आतंक का कारोबार करने के कारण पाकिस्तान की तरफ विदेशी निवेशक आंख उठाकर नहीं देखते, चीन जैसे जो देश देखते हैं वे कारोबार की नजर से नहीं देखते, बल्कि कब्जा जमाने और पाकिस्तान को अपना गुलाम बनाने के उद्देश्य से कर्जा देते हैं, वरना आम विदेशी निवेशक तो पाकिस्तान के बारे में अब सोचता भी नहीं है। आखिर, कौन ऐसा आंख का अंधा और गांठ का पूरा विदेशी निवेशक होगा जो अस्थिरता और आए दिन होनेवाले आतंकी हमलों के बावजूद पाकिस्तान में निवेश या व्यापार करने के बारे में भी सोचेगा। लालची से लालची बहुराष्ट्रीय कंपनियां पाकिस्तान में व्यापार करने से बचती हैं। वैश्विक संगठन ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ द्वारा ग्रे लिस्ट में डाले जाने के कारण पाकिस्तान में विदेशी निवेश और फंडिंग बिल्कुल शून्य पर है। सिर्फ विदेशी निवेश की ही बात क्यों करें पाकिस्तान ने अपनी आतंकप्रिय नीति के कारण भारी सैन्य सुरक्षा कीमत भी चुका रहा है। अपने जन्म के बाद से अब तक पाकिस्तान ने अपने लाखों नागरिक और हजारों सुरक्षा बल आतंकवादी संगठनों के हमलों की बलि चढ़ा दी है। सिर्फ साल २००७ से ही अब तक ८०,००० से अधिक लोग (सुरक्षाकर्मी और आम नागरिक) इन खूंखार आतंकी वारदातों में मारे गए हैं। टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) और अन्य आतंकी गुटों ने पाकिस्तानी सेना और पुलिस को निशाना बनाया है। सिर्फ आर्थिक और इंसानी जानों की कीमत ही पाकिस्तान ने अपनी आतंकप्रिय नीतियों के कारण नहीं चुकाई, बल्कि इसी के कारण पाकिस्तानी समाज में कट्टरवाद को इस हद बढ़ावा मिला है, जिससे आज पाक समाज में जरा भी सहिष्णुता नहीं बची। पूरे देश में हजारों लोग विस्थापित हैं, खासकर खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान जैसे इलाकों में।
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं इस कदर प्रभावित हुई हैं, खासकर स्वात और वजीरिस्तान में कि यहां लोग स्कूलों में जाने तक की नहीं सोच सकते। आतंकियों ने अस्पतालों को भी नष्ट कर दिया है। जहां दुनिया में पाकिस्तान की किसी तरह की इज्जत की बात है तो पूरी दुनिया में आज पाकिस्तान को एक आतंक समर्थक देश के रूप में जाना जाता है, जिस कारण यह वैश्विक मंच पर बुरी तरह से अलग-थलग पड़ गया है।

भारत ने ही नहीं पाकिस्तान के तथाकथित संरक्षक अमेरिका तक ने भी उसे कई बार आतंकवाद को बढ़ाने पर चेतावनी दी है। आतंकवाद के लिए सॉफ्ट कार्नर रखने के कारण पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति भी बुरी तरह से अस्थिर हो गई है। आतंकियों ने पाकिस्तानी राजनेताओं को ही इसका शिकार बनाया है। २००७ में बेनजीर भुट्टो की हत्या इसका बड़ा सबूत है। इसलिए यह महज एक ट्रेन का हाईजैक का मामला नहीं है, उससे ज्यादा खूनी और खूंखार है।
(लेखिका मीडिया एवं शोध संस्थान इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में कार्यकारी संपादक हैं।)

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