अगले वर्ष के प्रारंभ में प्रयागराज में महाकुंभ मेला १३ जनवरी से शुरू होने जा रहा है। २०१३ के बाद आनेवाले महाकुंभ मेले का समापन २६ फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन होगा। चूंकि यह बारह वर्ष बाद आता है और इसकी मान्यता बहुत बड़ी है इसलिए इस मेले का इंतजार पूरी दुनिया के सनातनियों को बेसब्री से रहता है। प्रस्तुत हैं कुंभ के मेले को लेकर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी से वरिष्ठ पत्रकार योगेश कुमार सोनी की बातचीत के मुख्य अंश…
कुंभ को लेकर क्या तैयारी है?
हर बार की तरह तैयारी जोरों-शोरों पर है और सभी में बहुत उत्साह है। चूंकि इस मेले का संत समाज के अलावा हर सनातनी बेसब्री से इंतजार करता है। जैसा कि सब जानते हैं कि यह १२ वर्षों बाद आयोजित होता है तो इसके लिए सभी का मन ललायित होता है। करोड़ों सनातनी अपनी आस्था को लेकर यहां डुबकी लगाने आते हैं। रही बात विशेष की तो कुंभ का मेला तो अपने आप में ही विशेष है। इस बार हमने सोचा है कि हम लोगों को गौरक्षा का संकल्प दिलाएंगे। चूंकि गौ की रक्षा न कर पाना हिंदुओं की आस्था को कुंठित महसूस करा रहा है। गौरक्षा संकल्प अहम रहेगा।
क्या सरकार से सहयोग मिल रहा है?
अच्छा सहयोग मिल रहा है और कुंभ के मेले में कोई भी सरकार या नेता अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है तो यह उसके लिए ही सौभाग्य की बात है। मेले में सुरक्षा के अलावा हर उस इंतजाम की जरूरत पड़ती है जिससे श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार कोई समस्या न हो। यह मेला कोई आम मेला नहीं, इसे सनातनियों की आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक भी माना जाता है।
कुंभ या उसकी आस्था से किस चीज की प्राप्ति होती है?
कुंभ सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है। यहां लोग पापों की क्षय और पुन्य की प्राप्ति के लिए आते हैं। लेकिन उनके इकट्ठा होने का लाभ जो धर्माचार्य हैं वो उठाते हैं और लोगों को दिलवाते हैं। पहले तो सामवेद होते हैं और सामवेद होकर पिछले १२ वर्षों की स्थिति का आकलन करते हैं। इसमें देखना यह होता है कि पिछले कुंभ में आए थे और अब परिस्थितियां क्या हैं, इसकी समीक्षा होती है और कुंभ के लिए वहां से सनातनियों को संदेश मिलता है।
कुंभ की मान्यता व उत्पत्ति के विषय में बताइए?
बारह वर्ष एक युग माना जाता है और एक युग बीतने के बाद गंगा-यमुना के संगम में स्नान करते हैं। सत्संग और दान भी करते हैं, जिससे हमारे पाप खत्म हो जाते हैं। कुंभ की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है, जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तब जो अमृत निकला इस अमृत को पीने के लिए दोनों पक्षों में युद्ध हुआ, जो १२ दिनों तक चला था। यह बारह दिन पृथ्वी पर बारह वर्ष के बराबर थे इसलिए कुंभ का मेला १२ सालों में लगता है।
कुंभ के मेले का लाभ लेने का क्या तरीका है?
कुंभ के बारे में सुनकर वहां बहुत सारे लोग आते हैं लेकिन वे कुंभ का पूरा लाभ नही उठा पाते, क्योंकि कुंभ एक धार्मिक पर्व है, कोई घूमने-फिरने की जगह नहीं। यह लाभ जीवन में ज्यादा बार नहीं मिल पाता। वहां जो भी आएं वो धार्मिक आस्था के साथ ही आएं और सात्विकता के नियमों का पालन करें। जितना उपलब्ध हो जाए उतने में निर्वाह करने की भावना रखें। हम पूरी जिंदगी सांसारिक सुख को भोगते हैं लेकिन कुंभ में आने के बाद सुविधा का अत्यधिक प्रयोग न करें और जितने भी दिन आप यहां रहें, एक संन्यासी के आध्यात्मिक जीवन की तरह जीएं।