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आखिर कब तक अव्यवस्था व अदूरदर्शिता के हत्थे चढ़ते रहेगा आम आदमी !

मौनी अमावस्या पर प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ के कारण हृदयविदारक हादसे की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि अब भारी भीड़ के कारण दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ बस मचने से हृदयविदारक हादसा होना बहुत ही दुखद व दर्दनाक है । सबसे ज्यादा गम तो इस बात का होता है कि बार-बार ऐसे ही एक जैसे हादसों की पुनरावृत्ति हो रही है, यानी वहीं चाल बेढंगी जारी है । दिल्ली रेलवे स्टेशन पर क्षमता से अधिक यात्रियों की भीड़ होना रेलवे प्रशासन की अदूरदर्शिता का प्रमाण है ।
जब यह मालूम था कि दो गाड़ी रद्द हो गई है तो इतनी टिकटें जारी नहीं करना थी ताकि इतनी भारी-भरकम भीड़ स्टेशन पर जमा नहीं हो सकें। रेलवे प्रशासन मौनी अमावस्या की भगदड़ को जेहन में रखकर इतना श्रद्धालुओं का सैलाब देखकर सावधान हो जाता तो निश्चित ही यह हादसा नहीं होता। महाकुंभ के पहले रेलवे श्रद्धालुओं की सुविधाओं पर बड़े-बड़े दावे कर रहा था, लेकिन रेलवे के दावों व बड़बोले पन की पोल खुल गई है। रेलवे मंत्री अपनी जिम्मेदारी से पिंड नहीं छुड़ा सकते हैं। महाकुंभ पहले से ही इतना प्रचार-प्रसार किया गया व चकाचौंध व चाक-चौबंद व्यवस्था का इतना ढिंढोरा पीटा गया कि न चाहते हुए भी लोग महाकुंभ की तरफ खींचे चले गए। सारे के सारे ढिंढोरों की पोल खुल गई। बार-बार लाख टके का सवाल सामने आकर खड़ा हो जाता है कि हादसे-दर-हादसे कोई सबक व नसीहत नहीं ले रहा है।
कहते हैं कि जान है तो जहान है। हम सुरक्षित रहेंगे तो गंगा का अमृत स्नान सामान्य दिनों में भी कर सकते हैं। आस्था व श्रद्धा होना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन समय की नजाकत को देखते हुए लोगों को अपनी यात्रा करना चाहिए। वह आस्था व श्रद्धा भी क्या काम की जब जान व माल पर बन आए तथा उस आस्था व श्रद्धा के चलते हम गंगा मैया में डुबकी के लिए जीवित तक न रहे। शासन व प्रशासन, रेलवे सभी को ऐसे मौकों पर दूरदर्शिता के साथ तात्कालिक फैसला लेना होंगे, यह सबक है। क्षमता से अधिक भीड़ जमा न हो इसका आकलन पूर्व से ही करना बहुत जरूरी है। हादसों के पहले रो लेने से यह फायदा होता है की बाद में हताहत होने पर न रोना पड़ें, ना किसी को जान व माल से हाथ धोना पड़े।
-हेमा हरि उपाध्याय ‘अक्षत’,
उज्जैन, मध्य प्रदेश

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