देश में कई संवेदनशील संस्थाएं हैं, जिनमें विदेशी निवेश को काफी सोच-समझकर अनुमति दी जाती है। इन्हीं में से एक है इसरो। इस वक्त दूर संचार तकनीक का बोलबाला है और हिंदुस्थान ने अंतरिक्ष विज्ञान में काफी तरक्की कर ली है। हिंदुस्थान बड़ी संख्या में उपग्रह निर्माण में जुटा हुआ है, जो कृषि व मौसम के साथ ही देश की सुरक्षा की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र में १०० फीसदी विदेशी निवेश का मार्ग खोल दिया है। आनेवाले दिनों में इस विदेशी घुसपैठ के क्या नतीजे होंगे, इसका अंदाज लगाया जा सकता है।
दुनिया की महाशक्तियां कभी नहीं चाहती कि हिंदुस्थान तरक्की करे, आत्मनिर्भर बने। अतीत में विदेशी शक्तियों ने इसरो का काफी नुकसान किया है और यह किसी से छुपी बात नहीं है। ताजा खबर के अनुसार हाल ही में उद्योग संवर्द्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ने अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेश निवेश (एफडीआई) के नियमों में संशोधन किए हैं।
डीपीआईआईटी ने उपग्रहों के लिए उपकरण बनाने में १०० प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति देने का निर्णय किया है। सरकार ने उपग्रह विनिर्माण एवं संचालन में ७४ प्रतिशत और प्रक्षेपण यान (लॉन्च व्हीकल) में ४९ प्रतिशत विदेशी निवेश को भी हरी झंडी दे दी है। देश में पिछले दो वर्षों के दौरान विदेश से आने वाला निवेश सुस्त रहा है। ऊंची महंगाई, विस्तारवादी मौद्रिक नीति एवं विकसित देशों में सुस्त आर्थिक क्रियाकलापों से उत्पन्न चुनौतियों के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था की नस ढीली पड़ने से देश में एफडीआई में कमी दर्ज की जा रही है। डीपीआईआईटी के आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में एफडीआई १३ प्रतिशत कमी के साथ ३२ अरब डॉलर के स्तर पर रहा। अभी तक अंतरिक्ष क्षेत्र में उपग्रह स्थापन एवं संचालन में ही सरकार के माध्यम से १०० प्रतिशत तक विदेशी निवेश की अनुमति रही है। अब इस नीति में ढील दिए जाने के बाद सरकार उम्मीद कर रही है कि विदेशी एवं निजी क्षेत्र की कंपनियां भी इस खंड में उतरेंगी। डीपीआईआईटी ने उपग्रह विनिर्माण एवं संचालन, उपग्रह डेटा उत्पाद एवं ग्राउंड एवं यूजर खंडों में भी ७४ प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति दी गई है। इससे अधिक एफडीआई के लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी।