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विनाश की कगार पर वन संपदा! …मानव निर्मित आग के कारण गहराया संकट

-कार्रवाई करने में असफल वन विभाग
सामना संवाददाता / मुंबई
वायुमंडल में बढ़ते तापमान और मानव निर्मित कारणों के कारण पिछले कुछ दिनों से पालघर जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर आग लग रही है, जिससे वन संपदा को भारी मात्रा में नुकसान हो रहा है। उल्लेखनीय है कि इनमें से कई वन आग मानव निर्मित हैं और वन विभाग अभी तक आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहा है। गर्मी की शुरुआत के साथ ही वनों में आग लगने की घटनाओं में वृद्धि होने लगती है। पिछले कुछ दिनों से कासा, पालघर और वाडा वन क्षेत्रों के जंगलों में आग लग रही है।
बताया जाता है कि वन क्षेत्र के कुछ जगहों पर काम करने वाले किसानों के कारण जंगल में आग लग रही है। जंगल में आग लगने के कारण बड़ी संख्या में वन सूक्ष्मजीव, पशु-पक्षी, उनके घोंसले और अंडे, सरीसृप मारे जा रहे हैं और जंगल में छोटे-बड़े पौधे जलकर राख हो रहे हैं। पिछले सप्ताह महालक्ष्मी गढ़ क्षेत्र में आग लगने से करीब सात हेक्टेयर जंगल और जैव विविधता नष्ट हो गई और जिले में कई जगहों पर इसी तरह की जंगल में आग लगने की खबरें आई हैं।
जानबूझकर लगाई जाती है आग
कासा वन क्षेत्र में विक्रमगढ़ और पालघर तालुका के पोला, सोमता, नानीवली, वाडा-खड़कोना वन क्षेत्र शामिल हैं। कासा क्षेत्र में बड़े-बड़े पहाड़ हैं और घना जंगल करीब ५,४०० हेक्टेयर क्षेत्र में पैâला हुआ है। इन जंगलों में तेंदुए, खरगोश, बंदर जैसे कई जानवर, विभिन्न प्रकार के पक्षी और कई तरह के पौधे पाए जाते हैं। गर्मी शुरू होते ही कुछ जगहों पर आग लग जाती है, जबकि कुछ जगहों पर शिकार के लिए जानबूझकर आग लगाई जाती है।

आग बुझाने का सिस्टम लगाया जाए
यह देखा गया है कि वन विभाग के कर्मचारियों के पास आग बुझाने के लिए पर्याप्त उपकरण नहीं होते हैं। कासा वन परिक्षेत्र कार्यालय में आग पर काबू पाने के लिए चार ब्लोअर हैं। हालांकि, तीन साल पहले चंद्रपुर जिले में ऐसे ही ब्लोअर के फटने से दो वनरक्षकों की मौत हो गई थी। इसलिए इस ब्लोअर के इस्तेमाल से बचने के निर्देश हैं। वन्यजीव प्रेमियों की मांग है कि जंगलों में आग बुझाने का सिस्टम लगाया जाए, ताकि समय रहते आग बुझाई जा सके।

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