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शिंदे राज में जंगल हो गए खाक! …दो वर्षों में वन विभाग के पास आग लगने की १६ हजार शिकायतें हुईं दर्ज

सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य में पर्यावरण संरक्षण के लिए महायुति सरकार बड़े-बड़े दावे करती है लेकिन वास्तव में पर्यावरण संरक्षण के नाम पर कुछ और ही धंधे हो रहे हैं। जबकि पर्यावरण का पूरी तरह से सत्यानाश हो रहा है और राज्य में जंगल समाप्त हो रहे हैं। जंगलों में आग लगने और भारी नुकसान होने की १६००० से अधिक घटनाएं मात्र दो सालों में सामने आई है। महायुति सरकार के कार्यकाल में पर्यावरण को बचाना मुश्किल ही है। सूत्रों के अनुसार, पिछले दो वर्षों में राज्य में जंगल की आग के १६००८ मामले सामने आए। इनमें से सबसे अधिक सात हजार ४२ जंगल की आग सिर्फ गढ़चिरौली जिले में लगी। इस साल भी गढ़चिरौली जिले में आग लगने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। जंगल की आग के कारण तीन राज्यों उत्तराखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर जंगल को नुकसान हुआ। इस क्रम में महाराष्ट्र पांचवें स्थान पर है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, नवंबर से जून तक की अवधि के बीच आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। इस दौरान हर साल जंगल में हजारों छोटी-बड़ी आग लगती है। मार्च माह में आग जलने से लगती है। पत्ते झड़ने के बाद सूखे जंगलों में आग अधिक तीव्र होती है, जबकि सदाबहार, समशीतोष्ण जंगलों में आग कम तीव्र होती है। यह जानकारी केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने शनिवार को भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट में प्रकाशित की।
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो वर्षों में जंगल की आग की सबसे अधिक घटनाओं वाले शीर्ष तीन राज्य उत्तराखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ हैं। उत्तराखंड में आग के २१ हजार ३३, ओडिशा में २० हजार ९७३ और छत्तीसगढ़ में १८ हजार ९५० मामले सामने आए, जबकि महाराष्ट्र में यह आंकड़ा १६ हजार के आसपास है। भारतीय वन सर्वेक्षण ने देश में ७०५ संरक्षित क्षेत्रों में जंगल की आग की सूचना दी है। उस समय राष्ट्रीय उद्यानों में जंगल की आग के ६ हजार ४६ मामले दर्ज किए गए थे। जंगल की आग के १८ हजार १७५ मामलों के साथ आंध्र प्रदेश चौथे स्थान पर और १६ हजार आठ मामलों के साथ महाराष्ट्र पांचवें स्थान पर है। नवंबर २०२३ से जून २०२४ के बीच वाइल्डफायर वॉर्निंग की सदस्यता लेने वाले लगभग नौ हजार ६७१ लोगों को अलर्ट चेतावनी मिली है।

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