योगेश कुमार सोनी
बीते सोमवार चुनाव आयोग ने भीषण गर्मी में चुनाव के दिन गुजरने को लेकर कहा कि अगली बार चुनाव अप्रैल महीने तक करा दिए जाएंगे। चुनाव के दौरान कई चुनाव अधिकारियों को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा था। इस पर चुनाव आयोग ने गलती मानी और यह भी कहा कि चुनाव गर्मी से पहले खत्म हो जाने चाहिए थे। बता दें कि तमाम मतदानकर्मियों के अलावा कुछ मतदाताओं की भी जान चली गई। दरअसल, देशभर से मिली आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में चुनाव ड्यूटी पर तैनात ३३ लोगों सहित ६० लोगों की शनिवार को गर्मी के कारण मौत हो गई। इस घटना से हर कोई दुखी है, क्योंकि जिन लोगों ने सुचारु रूप से चुनाव कराया उन्हीं की बलि चढ़ गई। इस मामले को लेकर न तो किसी नेता और न ही किसी अन्य ने सोशल मीडिया पर सवेंदनाएं जाहिर की। दरअसल, इस बार भी रिकॉर्ड तोड़ गर्मी से देश की संचालन प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ा है। मन में एक सवाल जरूर आता है, जो बेहद स्वभाविक सा भी लगता है। जब सरकार को पता है कि गर्मी में चुनाव कराना हर तरह से चुनौतीपूर्ण है तो हर बार इस मौसम में ही चुनाव क्यों कराती है? यदि ये चुनाव मात्र एक महीने पहले यानी अप्रैल के महीने में भी हो जाए तो मतदानकर्मियों व जनता को राहत मिल जाए। चुनाव आयोग हर स्तर पर मेहनत करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है तो वह गर्मी से होने वाली इतनी बड़ी समस्याओं को समझने व केंद्र सरकार को समझाने में कहां विफल हो जाता है? यदि यह मामला एक होता तो मात्र आकस्मिक घटना लगती लेकिन बिहार, ओडिशा और मध्य प्रदेश में हुई हैं और सबसे ज्यादा मौत उत्तर प्रदेश में हुई। उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिनवा ने मौतों की पुष्टि की और कहा कि मृतक होमगार्ड, सफाई कर्मचारी और अन्य मतदान कर्मचारी थे, जो दिन भर चलने वाली वोटिंग प्रक्रिया के दौरान ड्यूटी पर थे। बीते शुक्रवार यूपी में १५ मतदानकर्मियों की मौत हुई थी। शनिवार को कुल १,०८,३४९ मतदानकर्मियों को तैनात किया गया था। अधिकारी ने कहा कि जिनकी ड्यूटी पर मौत हुई है, उन्हें १५ लाख रुपए की मुआवजा राशि देने की प्रक्रिया चल रही है। अधिकारियों ने बताया कि १,३०० से अधिक लोग हीट स्ट्रोक की स्थिति के कारण अस्पतालों में भर्ती हैं और कुछ की हालत गंभीर भी बताई जा रही है। इसके अलावा बिहार में मतदान देने वाले तीन लोगों की मौत हो गई। इसके अलावा भी कई जगहों से इस तरह की खबर आई। इन मौतों से यह तो तय हो गया कि इन चुनावों ने कई लोगों की बलि ले ली। यह संचालन प्रक्रिया के सिपाहियों के साथ बेईमानी सी लगती है। होमगार्ड जैसी पोलिंग ड्यूटी के लिए एक दिन का मात्र पांच सौ रुपए दिया जाता है। वैसे जो घटना घट चुकी है, उसमें तो हम कुछ बदलाव नहीं कर सकते। जो एक बार गया तो वह वापस नहीं आ सकता, लेकिन भविष्य में किसी भी प्रकार के चुनाव के लिए इस तरह के मौसम में चुनाव कराने से परहेज करना होगा। कोई भी पर्व किसी इंसान की जान से बढ़कर नहीं हो सकता, चाहे वह कोई धार्मिक पर्व हो या राष्ट्रीय पर्व। बेहतर बदलाव की हर कोई कामना करता है और हमें हर उस बिंदु का ध्यान रखना होगा, जिससे सिस्टम अपडेट व अपग्रेड हो। हम किसी भी नुकसान की परवाह नहीं करते, लेकिन जब बात जान पर आ जाए, तब इस मामले में सोचना भी पड़ेगा और बोलना भी पड़ेगा। जहां एक ओर चुनाव आयोग लोगों को वोट डालने व अन्य प्रक्रिया पर करोड़ों रुपए खर्च करता है तो यहां भी उनका ध्यान केंद्रित होना चाहिए। मतदानकर्मियों की बुनियादी हर सुविधाओं को ध्यान रखना होगा। इस मामले को लेकर हर तरह की सुविधाओं को मद्देनजर रखते हुए आगामी चुनाव होने चाहिए।