दीपावली का पर्व सदियों से अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का प्रतीक रहा है। यह त्योहार केवल बाहरी दुनिया को रोशनी से सजाने का नहीं, बल्कि हमारे भीतर के अज्ञान और अंधकार को दूर करने का अवसर है। इस पर्व का असली संदेश तब साकार होता है जब हम न केवल बाहरी अंधकार से बल्कि मन और आत्मा में बसे हर तरह के नशे और भ्रम से भी छुटकारा पाएं। नशा चाहे दारू का हो, गांजे का या फिर कट्टरता का — सबका अर्थ एक ही होता है: अपनी चेतना को बंद करके दूसरों के अनुसार जीना।
धर्म की कट्टरता भी एक प्रकार का नशा है, जो हमें अपनी सोच और विवेक से दूर कर देती है। जिस प्रकार शराब का नशा हमें वास्तविकता से दूर ले जाता है, उसी प्रकार धर्म की कट्टरता भी हमें अपने सही मार्ग से भटका देती है। कट्टरता के नशे में हम अपने तथाकथित धर्मगुरुओं की अंधभक्ति में डूब जाते हैं और अपने स्वयं के विवेक और सोच-समझ को ताक पर रख देते हैं। ऐसे में, एक धर्म छोड़कर दूसरे धर्म में जाना भी महज एक नशे से दूसरे नशे में डूबने जैसा होता है। असली जागरण तब होता है, जब हम किसी भी तरह के धार्मिक या सामाजिक भ्रम से बाहर निकलकर सच्चाई और तर्क की रोशनी में जीना शुरू करते हैं।
दीपावली का त्योहार हमें यह याद दिलाता है कि असली रोशनी बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर है। जिस प्रकार हम अपने घरों में दीये जलाकर अंधकार को दूर करते हैं, उसी प्रकार हमें अपने मन और आत्मा के अंधकार को भी दूर करना चाहिए। धर्म का असली उद्देश्य हमें सच्चाई, प्रेम और सहनशीलता की ओर ले जाना है, न कि कट्टरता और अंधभक्ति की ओर। जब हम धर्म को नशे की तरह जीते हैं, तो हम अपने विवेक, स्वतंत्रता और असली आत्म-ज्ञान से दूर हो जाते हैं।
असली जागरण तब होता है जब हम न केवल बाहरी बल्कि आंतरिक अंधकार से भी छुटकारा पाते हैं। दीपावली का यह अवसर हमें सिखाता है कि सच्ची रोशनी उस समय आती है जब हम नशों और कट्टरता से बाहर निकलकर सच्चाई और तर्क की ओर बढ़ते हैं। धर्म हमें जोड़ने के लिए है, तोड़ने के लिए नहीं। अगर हम धर्म को नशे की तरह प्रयोग करेंगे, तो वह हमें केवल और अधिक अंधकार में धकेलेगा। इसलिए, इस दीपावली पर, आइए हम इस अंधकार से निकलकर सच्चे जागरण की ओर बढ़ें, जहां धर्म का मतलब सच्चाई, प्रेम और मानवता हो।
असली दीपावली तभी होगी जब हम कट्टरता और अंधविश्वास के अंधकार से निकलकर ज्ञान और विवेक के प्रकाश में कदम रखें। यही सच्चे जागरण का संदेश है — नशे से बाहर निकलकर सच्ची रोशनी की ओर बढ़ने का।