उमेश गुप्ता/वाराणसी
काशी अपनी विभिन्नताओं के लिए प्रसिद्ध है। इसे देखने, समझने और घूमने के लिए लोग देश – विदेश से भी आते हैं। खास बात यह है कि सिर्फ मनुष्य ही नहीं बल्कि यहां पर सात समंदर पार से पक्षी भी घूमने और अपना परिवार बढ़ाने के लिए आते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं साइबेरियन पक्षी की जो सात समंदर पार से भी भारत सहित काशी में आकर प्रवास करते हैं। यह सुंदर दिखने वाले पक्षी समंदर पार से सर्दी के मौसम में पहुंचते हैं। इनके रहने और इनके प्रजनन के लिए ठंड का मौसम काफी अनुकूल होता है। इनके आने का सिलसिला शुरू हो चुका है। इन साइबेरियन पक्षी का कलरव पर्यटकों के लिए काफी कौतूहल का विषय होता है। लोग इसे आवाज देते हैं तो यह पक्षी उनके पास दौड़े चले आते हैं।
बता दें कि ये पक्षी रूस के साइबेरिया
इलाके से आते हैं। इन्हें साइबेरियन पक्षी कहते हैं। यह पक्षी जहां पानी में तैरते हैं तो वही हवा में उड़ते भी हैं। बात अगर इस पक्षी की करें तो इनका रंग सफेद होता है। इनकी चोंच और पैर नारंगी रंग के होते हैं। साइबेरिया बहुत ही ठंडी जगह है, जहां नवंबर से लेकर मार्च तक तापमान माइनस में चला जाता है। इस वजह से इनके जीवन पर संकट आ सकता है, इसीलिए ये पक्षी हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके भारत के विभिन्न क्षेत्रों में आकर अपना प्रवास के साथ ही प्रजनन का कार्य करते हैं। यहां पर जब धीरे-धीरे ठंडी समाप्त होती है और गर्मी बढ़ने लगती है तो यह पक्षी अपने परिवार के साथ वापस साइबेरिया चले जाते हैं। भारत आने के लिए ये पक्षी 4000 किलोमीटर से भी ज्यादा लम्बा सफर उड़कर पूरा करते हैं
ये पक्षी अफगानिस्तान और पाकिस्तान को पार करते हुए भारत आते हैं। इतना लम्बा सफ़र ये 10-20 के समूह में नहीं बल्की हजारों के समूह में उड़ते हुए पूरा करते हैं। भारत में भी इनका एक लैंडिंग स्थान है।
ये पक्षी सबसे पहले महाराष्ट्र के बारामती पहुंचते हैं। यानी अगर सफर में कोई पक्षी बाकियों से अलग भी हो गया तो उसे पता है कि उसके साथी उसे बारामती में स्थित ‘बिग बर्ड सेंचुअरी’ में मिलेंगे। यहां इकठ्ठा होकर ये पक्षी भारत के कोने-कोने में जाते हैं और पूरी ठंड यहीं बिताते हैं। काशी में चार महीने तक रहने के दौरान मेहमान परिंदे गंगा की लहरों और घाटों पर आकर्षण का केंद्र रहते हैं। पर्यटक दाना भी डालते हैं। पक्षी प्रजनन कर गंगा पार रेत पर अपने अंडे को सुरक्षित रखते हैं मार्च में अपने बच्चों के साथ स्वदेश वापस जाते हैं।