मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनागरुड़ की प्रेरणा

गरुड़ की प्रेरणा

उड़ान भरता नभ में ऊंचा,
सूरज को भी चूमे गरुड़।
शक्ति, धैर्य, साहस जिसका,
हर बाधा को भूले गरुड़।
पंखों में थी गति अपार,
नजरें जिसकी दूर तलक।
बिजली-सा था वेग जिसका,
आंधी जिससे डरे झलक।
पर जब समय कठोर हुआ,
शरीर पुराना थकने लगा।
नाखून कुंद, चोंच थी भारी,
पंखों का बल घटने लगा।
शिकार कठिन, उड़ान भी मंद,
जीवन उसका व्यर्थ हुआ।
जो नभ का राजा कहलाता था,
अब माटी में निर्वरथ हुआ।
पर हार कहां गरुड़ ने मानी,
संकल्प लिया फिर नव जागरण का।
पीड़ा को उसने साथी माना,
समर्पित हुआ फिर परिवर्तन का।
चढ़ गया वह पर्वत शिखर पर,
जहां सन्नाटा गूंज रहा था।
धैर्य का दीपक संग जलाकर,
नवजीवन का बोध रहा था।
पहले अपनी चोंच को तोड़ा,
चट्टानों पर मारी वार-वार।
पीड़ा सही, पर मौन रहा,
स्वीकार किया खुद को संवार।
फिर झड़े पुराने पंख सभी,
नाखूनों को भी उसने बदला।
जो नया जन्म था संघर्षमय,
वह गरुड़ ने पूरे मन से जिया।
महीनों की इस कठिन साधना,
ने फिर उसको नव रूप दिया।
अब शक्ति नई, अब जोश नया,
स्वयं को उसने रूपांतरित किया।
हे मनुष्य! क्यों रोता है?
क्यों अपने दुख को ढोता है?
सीख इस गरुड़ से तू भी,
जो हर क्षण नव जीवन बोता है।
परिवर्तन में ही बल छुपा है,
संघर्ष में ही नव आशा है।
छोड़ दे डर, तोड़ दे जड़ता,
तेरी मेहनत ही परिभाषा है।
जब संकट में घिर जाए जीवन,
तू अद्भुत सा उपाय लगाना।
जो पुराना है, जो निर्बल है,
उसे छोड़ नया अपनाना।
जो टूट सके, वो जुड़ भी सकता,
जो गिर सके, वो उठ भी सकता।
बदलाव में जो पीड़ा झेले,
वही पुनः आकाश को छू सकता।
संघर्ष ही जीवन की पहचान है,
नव रूप लेना ही उड़ान है!
-रत्नेश कुमार पांडेय
मुंबई

अन्य समाचार