मुख्यपृष्ठनए समाचारभाजपा की अंधभक्ति में तबाह हो गया गीता जैन का राजनीतिक भविष्य!

भाजपा की अंधभक्ति में तबाह हो गया गीता जैन का राजनीतिक भविष्य!

पिछले चुनाव में निर्दलीय जीतकर भी नहीं बचा पाईं अपनी प्रतिष्ठा
सामना संवाददाता / भायंदर
मीरा-भायंदर विधानसभा चुनाव में इस बार का परिणाम चौंकानेवाला रहा। जहां त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद की जा रही थी, वहीं जनता ने एकतरफा पैâसला करते हुए भाजपा के नरेंद्र मेहता को विजयी बना दिया। कांग्रेस के मुजफ्फर हुसैन और निर्दलीय उम्मीदवार गीता जैन को करारी हार का सामना करना पड़ा।
भाजपा के नरेंद्र मेहता को १,४४,३७६ वोट, कांग्रेस के मुजफ्फर हुसैन को ८३,९४३ वोट और निर्दलीय गीता जैन को २३,०५१ वोट मिले।
गीता जैन, जो पिछले चुनाव में निर्दलीय जीतकर विधायक बनी थीं, इस बार अपनी प्रतिष्ठा बचाने में नाकाम रहीं। उन्हें जनता ने न केवल नकार दिया, बल्कि उनके वोट प्रतिशत में भारी गिरावट भी देखने को मिली।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि गीता जैन की करारी हार का मुख्य कारण उनकी भाजपा के प्रति अंधभक्ति और आम जनता के प्रति उदासीनता रही। निर्दलीय विधायक बनने के बावजूद उन्होंने जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के बजाय भाजपा के करीब रहने की कोशिश की।
पिछले कार्यकाल में जैन ने कई बार भाजपा के साथ खड़े होने की कोशिश की, लेकिन जनता ने इसे नकारात्मक रूप में देखा। उन्होंने खुद को भाजपा का संभावित उम्मीदवार बताया और पूरी ऊर्जा भाजपा का टिकट पाने में लगा दी, लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें उलझाए रखा और अंतत: टिकट नहीं दिया।
निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कमजोर रणनीति
जब भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय चुनाव लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा, लेकिन इस बार जनता ने उन्हें पूरी तरह खारिज कर दिया। उनके पास कोई संगठन भी नहीं रहा।
चुनाव प्रचार के दौरान यह माना जा रहा था कि मुकाबला भाजपा के नरेंद्र मेहता, कांग्रेस के मुजफ्फर हुसैन और निर्दलीय गीता जैन के बीच होगा, लेकिन परिणाम ने साफ कर दिया कि जनता ने गीता जैन को वोट कटवा के रूप में देखा। उनकी हार इतनी बुरी रही कि उनकी जमानत तक जब्त हो गई। निर्दलीय उम्मीदवारों और छोटी पार्टियों को जनता ने इस बार पूरी तरह नकार दिया। भाजपा की रणनीति ने यह सुनिश्चित किया कि गीता जैन जैसे संभावित चुनौती देनेवालों का राजनीतिक भविष्य कमजोर हो। गीता जैन की हार से यह साफ हो गया कि जनता ने अपने विश्वास को पूरी तरह हटा लिया। उनकी राजनीतिक यात्रा का यह दौर उनके लिए आत्मविश्लेषण का समय है। भाजपा की कुटिल चालों और जनता की नाराजगी ने मिलकर मीरा-भायंदर की राजनीति में गीता जैन को हाशिए पर धकेल दिया है।

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