छोड़ा ऐसे जैसे कोई अधिकार नहीं
दिल तोड़ा जैसे मेरा प्यार नहीं
पल भर का जो साथ था
हजारों पल का वो हाथ था
अब हम उनको स्वीकार नहीं
छोड़ा ऐसे जैसे कोई अधिकार नहीं
हर आहट पर आहत होती
होटों पर फीकी सी मुस्कराहट होती
खुशी में गम में उमड़ आते
आंसू पोछने की आदत होती
उनके लिए भी अब जज्बात नहीं
छोड़ा ऐसे जैसे कोई अधिकार नहीं
आंखों के घर बिठाया
फिर भी उसको समझ नहीं आया
सूख गया मन का आंगन
मन की गली से गुजरना अब आसान नहीं
छोड़ा ऐसे जैसे कोई अधिकार नहीं
तोड़ दिया मन का दर्पण
अब वो हमारे कदरदार नहीं
अब खड़े हैं ऐसे मोड़ पर
अब किसी पर ऐतबार नहीं
छोड़ा ऐसे जैसे कोई अधिकार नहीं
दिल तोड़ा जैसे मेरा प्यार नहीं
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा