चतुर बहुत हो गए हैँ लोग,
रहते हैं साथ में और
इर्ष्या भी करते हैं खूब!
निभाते हैं रिश्ता और
शत्रुता भी रखते हैं!
बनते हैं शुभचिंतक और
बुराई पीठ में भी करते हैं!
बनते हैं मिलनसार और
मुसीबत में आंख भी चुराते हैं!
सदाचारी भी बनते हैं और
रंग भी पल-पल बदलते हैं!
आश्वासन भी देते हैं और
अभिमान में ताली भी पीटते हैं!
अपनापन लिए मीठे भी होते हैं
और शर्तों पर रिश्ते भी निभाते हैं!
रहते खुद भी कांच के घरों मे हैं
और पत्थर दूसरों पर बरसाते हैं!
-मुनीष भाटिया
कुरुक्षेत्र