हिंदुस्थान में देवी उपासना का बहुत महत्व है। मगर आप क्या ये जानते हैं कि हिंदुस्थान में नहीं अपितु पूरे ब्रह्माण्ड में शक्ति उपासना का प्रचलन है। यहां अंतर केवल नाम एवं पूजन विधि का है।
यूनान में नेमिशस व डायना नामक देवी की पूजा की जाती है। नेमिशस को वहां प्रतिशोध की देवी माना जाता है। मान्यता है कि यह शक्ति आसुरी प्रवृत्तियों का नाश करती हैं। वहां डायना को दुर्गा मानते हैं। यूनान के राजा शक्ति पूजा के रूप में लाल वस्त्र पहन नारी का श्रृंगार कर यानी नारी रूप धारण करके नेमिशस और डायना की पूजा करते थे। यूनान के राजा फिसियाड के समय में तो समूचे देश में शक्ति पूजा की जाती थी। वहां के ओलम्पिक पर्वत पर शक्तिपीठ है।
इधर, चीन में कात्यायनी देवी के रूप में नील सरस्वती की उपासना होती है। नील सरस्वती दस महाविद्याओं में शामिल देवी तारा ही हैं।
उधर, मिस्त्र की देवी का नाम आइसिस है। वे सर्पधारिणी रुद्राणी हैं। मान्यता है कि वे मिस्त्र पर आए संकटों को हरती हैं। मिस्त्रवासियों का मानना है कि उनकी महारानी हेप्त दुर्गा का अवतार थीं। रामयुग में भी इस क्षेत्र का वर्णन मिलता है। बताया जाता है सीताजी की खोज में वानर जिस लोहित सागर तक गए थे, वह वर्तमान में लाल सागर है।
वहीं, इटली में फेमिना सौंदर्य की देवी मानी जाती हैं। वे नारियों में उल्लास का संचार करती हैं। पर्व के अवसर पर देवी फेमिना की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती हैं।
फ्रांस की फ्लोरा देवी फूलों की देवी हैं। अफ्रीका में देवी कुशोदा की पूजा विभिन्न रूपों में होती है। पौराणिक कुश द्वीप आज के अफ्रीका को माना जाता है। वहां के आदिवासियों की प्रमुख देवी कुशोदा हैं।
रोम में वेस्ता की मान्यता थी। वेस्ता के मंदिर की वेदी में सदैव अग्नि जलती थी। विवाह की कामना से कुमारियां वेस्ता की पूजा करती थीं। कोरिया में औषधि देवी की पूजा होती थी। वे कोरिया की शक्ति देवी हैं। उत्तरी कोरिया में सूर्यादेवी की पूजा होती थी।
शीतल अवस्थी